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चुनौतियों का अंबार होगा मोदी का दूसरा कार्यकाल

२८ मई २०१९

दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के लिए नरेंद्र मोदी को मिला भारी जन समर्थन उनके लिए तमाम चुनौतियां लेकर आया है. जानकारों के मुताबिक ना केवल घरेलू स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मोदी के सामने मुश्किलों का पहाड़ होगा.

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Indien Neu-Delhi | Narendra Modi, Premierminister
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma

लोकसभा चुनावों में बीजेपी को मिली अपार सफलता ने अगले पांच सालों तक के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रास्ता साफ कर दिया है. चुनावों के पहले बेरोजगारी जैसे तमाम घरेलू मुद्दों पर सरकार को घेरा जा रहा था लेकिन पुलवामा हमले के बाद सरकार की प्रतिक्रिया ने मतदाताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा और लोगों का ध्यान बेरोजगारी जैसे कई मुद्दों से हट गया. हालांकि चुनावी जीत प्रधानमंत्री मोदी के लिए चुनौतियों का अंबार लेकर आई है. जानकार मान रहे हैं कि इस कार्यकाल में उन पर कई तरह के अंतरराष्ट्रीय दबाव बन सकते हैं.

मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी चीन और अमेरिका के बीच बढ़ती कारोबारी जंग में भारत की स्थिति को मजबूती से बनाए रखना. वहीं अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ती तल्खियां भी भारत पर भारी पड़ सकती हैं. ईरान भारत को सस्ता तेल देता रहा है और ईरान और भारत के मजबूत कूटनीतिक संबंधों का लंबा इतिहास रहा है. ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी के सामने दक्षिण एशिया में भारत की पारंपरिक जगह बनाए रखना आसान नहीं होगा.

Indien Wahl 2019 | Westbengalen, Anhänger der Bharatiya Janata Party
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay

मोदी समर्थक मानते हैं कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भारत की स्थिति विदेशों में मजबूत हुई है. चुनाव जीतने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन समेत इस्राएल जैसे कई अन्य मुल्कों के राष्ट्र प्रमुखों की ओर से मिली बधाइयां मोदी समर्थकों के सामने उनकी मजबूत छवि के सबूत भी पेश करती है.

अमेरिका में भारत के राजदूत रह चुके ललित मानसिंह मानते हैं कि विदेश नीति नरेंद्र मोदी के कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक रही है. मानसिंह के मुताबिक, "जिस तरह का जोश मोदी के दौर में नजर आया, वैसा अब तक किसी भी प्रधानमंत्री के साथ नहीं देखा गया है."

जानकार यह भी कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत से यह उम्मीद की जाएगी कि वह बड़ी जिम्मेदारियों को उठाए, मसलन जलवायु परिवर्तन जैसे मसलों पर वह बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले. साथ ही विदेशी कंपनियों को अपने बाजार तक सुलभ पहुंच दे.

रिटायर भारतीय कूटनीतिज्ञ दिलीप सिन्हा कहते हैं, "मौजूदा अंतरराष्ट्रीय माहौल मोदी के सामने बेहद ही कठिन चुनौती बनकर उभरेगा. अमेरिका चाहेगा कि भारत की भागीदारी बढ़ाकर एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव पर लगाम कसी जा सके. साथ ही अमेरिका यह भी चाहेगा कि मोदी सरकार विदेशी कंपनियों को कारोबारी सुलभताएं मुहैया कराए."

विश्व आर्थिक मंच के मुताबिक भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बनने की ओर बढ़ रहा है. भारत का 1.5 ट्रिलियन डॉलर का मौजूदा बाजार साल 2030 तक छह ट्रिलियन डॉलर का हो जाएगा. सिन्हा कहते हैं कि खाड़ी देशों में बढ़ता तनाव भारत के लिए तेल तो महंगा करेगा ही, साथ ही वहां रहने वाले 70 लाख भारतीयों की सुरक्षा को भी खतरे में डाल सकता है. इसके अलावा पिछले 25 साल से फलफूल रहे भारत-इस्राएल रिश्तों के चलते भी मध्यपूर्व में भारत की स्थिति नाजुक रह सकती है.

इसके साथ ही अमेरिका से भारत का हथियार खरीदना, पाकिस्तान और चीन के करीब जा रहे रूस को भारत से और भी दूर कर सकता है. इन सब के अलावा भारत के लिए सबसे बड़ी मुश्किल चीन ही खड़ी कर रहा है जिसने दक्षिण एशिया में बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए बड़ा निवेश किया है.

चीन के इतर भारत के सामने श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और मालदीव के साथ संबंध बनाए रखना भी आसान नहीं है. इन देशों में भारत को अपनी परियोजनाएं पूरी करने में वक्त लगता है. वहीं चीन अपने वादों को तुरंत पूरा कर देती है. ऐसे में भारत का प्रभाव लगातार घट रहा है.

भारत और पाकिस्तान के बीच पैदा हुए तनाव को भी मोदी की चुनौतियों से अलग नहीं रखा जा सकता. मुस्लिम बहुल भारत प्रशासित कश्मीर में लोग मान रहे हैं कि मोदी का जीतना उनके लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है. वहीं कुछ लोग मानते हैं कि मोदी की कश्मीर पर रणनीति यहां के लोगों के भीतर अपने आंदोलन को लेकर और भी ऊर्जा पैदा कर रही है. कश्मीर के एक स्कूल टीचर सज्जाद अहमद कहते हैं, "कश्मीर को लेकर भारत की नीतियों का कोहरा अब साफ होता जा रहा है और इसके लिए मोदी और कंपनी का धन्यवाद."

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एए/आईबी (एपी)

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