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दो बहरों के बीच संवाद होगी भारत-पाक वार्ता

२० अगस्त २०१५

अधिक संभावना यही है कि रविवार को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और पाकिस्तान के राष्ट्रीय एवं विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज के बीच नई दिल्ली में होने जा रही वार्ता दो बहरों के बीच संवाद ही सिद्ध होगी.

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Wagah Punjab
तस्वीर: BEHROUZ MEHRI/AFP/Getty Images

जहां पाकिस्तान की भारत नीति में स्पष्टता, सुसंगतता और निरंतरता है, वहीं भारत की पाकिस्तान नीति अस्पष्ट, असंगत और कभी गर्म-कभी नर्म की तर्ज पर है. 1947 से ही पाकिस्तान की घोषित नीति किसी भी तरह से कश्मीर पर कब्जा करने की है. क्षेत्रफल, आबादी एवं आर्थिक-सामरिक शक्ति की दृष्टि से भारत से काफी छोटा होने के बावजूद उसका जोर हमेशा भारत के साथ बराबरी के दर्जे पर हक जमाना रहा है. भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन का मूल कारण भी यही था कि आबादी में हिंदुओं के मुकाबले काफी कम होने के बावजूद मुस्लिम समुदाय के नेता राज्य विधानमंडलों, केंद्र सरकार और सरकारी नौकरियों में अपने समुदाय के लिए समान प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे थे. समानता का यह बुखार पाकिस्तान से अभी तक लिपटा हुआ है.

जहां पाकिस्तान की नीति शांतिवार्ता, जबर्दस्ती घुसपैठ, आतंकवादी हमले, नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर गोलीबारी और भारत को आहत करने वाला हर काम करके सभी तरह के हथकंडे अपनाने की रही है, वहीं भारत अभी तक यही तय नहीं कर पाया है कि वह पाकिस्तान के साथ बात करे या न करे, और करे तो किन परिस्थितियों में करे. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार हो या नरेंद्र मोदी की, सभी सरकारें किसी न किसी वक्त पर यह घोषणा कर चुकी हैं कि आतंकवाद और वार्ता एक साथ नहीं चल सकते और यदि पाकिस्तान भारत के साथ वार्ता चाहता है तो उसे अपनी धरती से भारत के खिलाफ होने वाली आतंकवादी गतिविधियों पर रोक लगानी होगी. इस घोषणा के बाद कुछ समय के बाद वार्ता रुकी रहती है और फिर से अचानक शुरू हो जाती है. लेकिन स्थिति ज्यों-की-त्यों बनी रहती है. पाकिस्तान के आक्रामक रवैये में कोई अंतर नहीं आता.

पिछले साल मोदी सरकार ने पाकिस्तान से वार्ता इसलिए तोड़ दी थी क्योंकि पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने हुर्रियत नेताओं को भी भेंट के लिए आमंत्रित कर लिया था. लेकिन ऐसा तो उसने अब भी किया है. यही नहीं, पिछले कुछ सप्ताह के दौरान पंजाब के गुरदासपुर और जम्मू-कश्मीर के ऊधमपुर में पाकिस्तान से आए आतंकवादियों के हमलों में कई पुलिसकर्मी मारे गए हैं और अनेक अन्य घायल हुए हैं. नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर होने वाली गोलीबारी में कम से कम 20 भारतीय सैनिक और नागरिक मारे जा चुके हैं. फिर मोदी सरकार बात करने को राजी क्यों है? कारण स्पष्ट है, और वह यह कि भारत अभी तक पाकिस्तान के प्रति कोई सुचिंतित, सतत और सुसंगत नीति नहीं बना पाया है.

पाकिस्तानी मामलों की अमेरिकी विशेषज्ञ क्रिस्टीन सी फेयर का मानना है कि यदि पाकिस्तान को कश्मीर मिल भी जाए, तो भी भारत के साथ उसके संबंध नहीं सुधर पाएंगे क्योंकि पाकिस्तानी सेना को ऐसा वैचारिक और पेशेवर प्रशिक्षण मिला है जो उसे तब तक भारत से लड़ने के लिए मजबूर करता है जब तक उसमें लड़ने की क्षमता है. पाकिस्तान के लिए यह एक अस्तित्ववादी समस्या है.

इसीलिए रविवार को होगा यह कि अजित डोभाल हाल में हुए आतंकवादी हमलों में पाकिस्तान की भूमिका के बारे में सरताज अजीज को एक डोसियर देंगे और जवाब में अजीज कश्मीर का मामला उठा देंगे. डोभाल 26/11 के मुंबई हमलों की साजिश रचने वाले जकीउर्रहमान लखवी की रिहाई का मामला उठाएंगे तो अजीज समझौता एक्सप्रेस और असीमानंद का मसला खड़ा कर देंगे. डोभाल पाकिस्तान द्वारा नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा के लगातार उल्लंघन की बात करेंगे तो अजीज सियाचिन और सर क्रीक की बात करेंगे. और अगले दिन सरताज अजीज खुश-खुश स्वदेश लौट जाएंगे जहां उनकी शान में कसीदे पढ़े जाएंगे कि वे भारत को अंगूठा दिखा कर और उसके साथ पाकिस्तान की समतुल्यता सिद्ध करने में सफल होकर वापस आए हैं.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार