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हिंसक माता पिता

१० फ़रवरी २०१४

आईसीयू में मशीनों के सहारे लेटा हुआ एक बच्चा, जो जिंदगी की ओर लौटेगा या नहीं इसमें भी शक है. उसकी इस हालत का कारण, घरेलू हिंसा. जर्मनी में हर साल दो लाख बच्चे अपने ही मां बाप का शिकार बन जाते हैं.

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तस्वीर: Fotolia/Gerhard Seybert

फोरेंसिक पैथोलॉजिस्ट मिषाएल सोकोस को जब बुलाया जाता है, तो मामला हाथ से निकल चुका होता है, एक और बच्चा जीवन से हार चुका होता है. बच्चों के साथ दुर्व्यवहार का नया आंकड़ा दो लाख सालाना है. विशेषज्ञ इन आंकड़ों पर तो असहमत हैं ही इस बात पर भी असहमत हैं कि बच्चों को घरेलू हिंसा का शिकार होने से कैसे बचाया जाए.

सोकोस फिर पता लगाते हैं कि शरीर पर पड़े नीले, हरे दागों या बाकी जख्मों का क्या कारण है. ये दुर्घटना हुई कैसे. सोकोस के मुताबिक, "पहले तो रिश्तेदार कहते हैं कि बच्चा सोफे से गिर गया. फिर जब आप मां बाप से कहते हैं कि यह संभव नहीं है, तो वो दूसरी कहानी लेकर आते हैं कि बच्चा अलमारी पर चढ़ गया था और गिर गया."

सोकोस इन दलीलों को अच्छी तरह पहचानते हैं, वो हमेशा एक जैसी होती हैं. "जब मैंने 20 साल पहले, मेडिकल असिस्टेंट के तौर पर फोरेंसिक काम शुरू किया, तो मुझे लगता था कि ये कम मामले हैं, लेकिन इस तरह की घटनाएं बार बार होने लगीं."

आज मिषाएल सोकोस बर्लिन की शेरिटे यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में फोरेंसिक मेडिसिन संस्थान के निदेशक हैं. अपने करियर में उन्होंने शारीरिक दुर्व्यवहार से हुए घावों से मरने वाले 80 बच्चों का पोस्टमार्टम किया है. इसके अलावा ऐसे भी कई बच्चे थे, जो बच तो गए लेकिन गंभीर रूप से अपंग हो गए.

Rechtsmediziner Michael Tsokos
फोरेंसिक पैथोलॉजिस्ट सोकोसतस्वीर: picture-alliance/dpa

एक दिन सोकोस ने सोचा कि अब वह एक उदाहरण दुनिया के सामने रखना चाहते हैं. अपनी साथी सास्किया गुडाट के साथ उन्होंने अपने अनुभवों के बारे में किताब लिखी. इसका नाम उन्होंने उकसाने वाला रखा, "अपने बच्चों को मारता है जर्मनी".

आंकड़ों का पता नहीं

पुलिस के आपराधिक आंकड़ों के मुताबिक जर्मनी में हर हफ्ते तीन बच्चे शारीरिक अत्याचार के कारण जान से हाथ धो बैठते हैं. ऐसा दुर्व्यवहार करने वाले कोई और नहीं, उसके अपने रिश्तेदार होते हैं, माता पिता या फिर नया ब्वायफ्रेंड. 2012 में ये आंकड़ा सालाना 3,450 बच्चों का था. पुलिस ने चेतावनी दी थी कि असली नंबर और ज्यादा हो सकते हैं क्योंकि कई मामले तो दर्ज ही नहीं होते.

कानूनी सुरक्षा

वैसे तो साल 2000 से जर्मन कानून में बच्चों की अहिंसक परवरिश सुनिश्चित की गई है. शारीरिक सजा, मानसिक चोट या अपमानजनक तरीके अमान्य हैं. सोकोस कहते हैं कि जब तक परिवार पर कार्रवाई हो, उससे पहले अति हिंसा होती रहती है, जिसका घर से बाहर भी पता चलने लगता है.

सोकोस यह भी कहते हैं कि यूथ सर्विस की कार्रवाई भले ही हो जाए, लेकिन जर्मनी में बच्चों को सुरक्षा नाकाफी होती है. बार बार मीडिया में बच्चों के साथ बुरे व्यवहार और उनकी हत्या की खबरें छपती हैं. सरकारी महकमे को इसकी गंभीरता भी काफी लंबे समय से पता होती है. लेकिन...

हाल का ऐसा मामला यागमुर केस है. तीन साल की तुर्क बच्ची लीवर फटने और आंतरिक रक्तस्त्राव के कारण मर गई. अधिकारियों का कहना है कि ये चोट उसे उसके अपने पिता ने पहुंचाई थी. पहले भी यागमुर के माता पिता पर बच्चों के साथ दुर्व्यवहार का संदेह था. केयर टेकर मां से उस बच्ची को फिर अपने परिवार में भेज दिया गया.

पैरेंट लाइसेंस?

बर्लिन में क्रिश्चन डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष काई वागनर ने माता पिता के लिए लाइसेंस की पैरवी की है. उनके मुताबिक होने वाले माता पिता को अनिवार्य ट्रेनिंग दी जानी चाहिए.

लेकिन सोकोस जर्मनी में एक अलग ही समस्या देखते हैं. एक मुद्दा तो यह है कि बच्चों के साथ बुरे बर्ताव वाले मामले से पैसा कमाया जाता है, जितने हो सके उतने दिन. "बच्चों की पीड़ा पर पैसे कमाए जाते हैं." वह आलोचना करते हैं कि यूथ सर्विस समस्याग्रस्त परिवारों में स्वतंत्र एजेंट भेज देती हैं और "ये लोग तब तक किसी भी केस पर पैसे कमा सकते हैं, जब तक कि बच्चा परिवार में है." लेकिन मैर्षेल इससे असहमत हैं, "सुरक्षा के लिए दूसरे परिवारों में जाने वाले बच्चों की संख्या बढ़ रही है." वह दलील देते हैं कि बच्चों और माता पिता की मदद के लिए सरकार ने कई तरीके अपनाए हैं. और भले ही कई स्थानीय प्रशासन आर्थिक संकट से जूझ रहे हों, यूथ सर्विस में काम करने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है. उनका कहना है, "भले ही समाज में बहुत अच्छी सेवाएं हों, लेकिन दुर्भाग्य से ये बात उतनी ही सच है कि फिर भी बच्चों के साथ बुरे बर्ताव और उसके कारण जानलेवा चोटों के मामले भी होते रहेंगे."

रिपोर्टः मार्कुस लुटिके/आभा मोंढे

संपादनः ए जमाल

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