1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

2 से 4 होने की जुगत में है भारत-ऑस्ट्रेलिया सामरिक साझेदारी

राहुल मिश्र
१० सितम्बर २०२१

ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री भारत के अहम दौरे पर हैं. पहली बार भारत और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री आमने-सामने बैठकर सुरक्षा, कूटनीति, और सामरिक महत्त्व के मुद्दों पर चर्चा करेंगे.

https://p.dw.com/p/40B2G
USA Quad Gipfel Biden, Harris, Blinken
तस्वीर: Jim LoScalzo/CNP/AdMedia/picture alliance

विदेश मंत्री मरीस पेन और रक्षा मंत्री  पीटर डटन से भारत के मंत्रियों की यह बातचीत 10 से 12 सितम्बर तक चलेगी. सरसरी तौर पर देखा जाय तो ऐसा लग सकता है कि मंत्री-स्तर की इस बातचीत में इतना भी खास क्या ही होगा? लेकिन गौर फरमाइयेएगा तो मालूम चलेगा कि इस मुलाकात ने शुरू होने के साथ ही भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों ने कई मील के पत्थर पार कर लिए हैं. मिसाल के तौर पर यह कि 2+2 फॉर्मेट में बैठकें कुछ खास देशों के लिए ही होती हैं. भारत अब तक इस प्रकार की बैठकें अमेरिका, जापान, और रूस के साथ करने को ही राजी हुआ है.

गौरतलब है कि यही वो देश हैं जिनके साथ भारत के सामरिक, सुरक्षा और कूटनीतिक तौर पर सबसे मजबूत रिश्ते हैं. जाहिर है, भारत और ऑस्ट्रेलिया के संबंधों के लिए यह एक बड़ा अवसर है. दूसरी बहुत महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इस मुलाकात के साथ ही भारत के क्वाड (क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलाग) के हर देश के साथ २+२ फॉर्मेट में बातचीत होने लगेगी.

अगर क्वाड के चारों देशों के बीच अलग-अलग द्विपक्षीय संबंधों पर गौर किया जाए तो साफ दिखता है कि इन तमाम समीकरणों में भारत और ऑस्ट्रेलिया के संबंध सबसे कमजोर नजर आते रहे हैं. यह ऑस्ट्रेलिया ही था जिसने एक दशक से ज्यादा पहले क्वाड से यह कहकर हाथ जोड़ लिए थे कि वह चीन को नाराज नहीं करना चाहता. ऑस्ट्रेलिया के अमेरिका और जापान के साथ पहले से ही सैन्य और परमाणु सुरक्षा से जुड़े समझौते थे. साफ है कि सवाल सिर्फ भारत का था और भारत और चीन के बीच तब ऑस्ट्रेलिया ने चीन को चुना था?

Quadrilateraler Sicherheitsdialog I Joe Biden I Yoshihide Suga I Narendra Modi I Scott Morrison
क्वाड की बैठकतस्वीर: Kiyoshi Ota/REUTERS

याद कीजिये 1998 का भारत का परमाणु परीक्षण, तब भी ऑस्ट्रेलिया का व्यवहार सबसे रूखा और गैरजरूरी था. जबकि जापान और अमेरिका ने अपनी प्रतिक्रिया में कूटनीतिक शिष्टाचार दिखाया था. ऑस्ट्रेलिया तब कुछ ज्यादा ही परेशान हो उठा था और ऑस्ट्रेलिया में स्टाफ कोर्स कर रहे भारतीय सेना के अफसरों को वापस भेजने का बेजा कदम उठा लिया. बहरहाल, इस लिहाज से भी देखें तो पिछले कुछ साल भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच संबंधों के लिए काफी अच्छे रहे हैं

जाहिर है कि मोदी की ऐक्ट ईस्ट नीति से भारत को फायदा हुआ है. प्रधानमंत्री मोदी और ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन के बीच दोस्ती - खासा तुअर से मॉरिसन के भारत प्रेम ने इन संबंधों में काफी मिठास घोली है. जून 2020 में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच कॉम्प्रीहेंसिव स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप पर समझौता हुआ. यह 2+2 मंत्री-स्तरीय वार्ता उसी समझौते की उपज है.

दोनों देशों ने नौसेना के बीच सहयोग को तेजी से बढ़ाया है इस सन्दर्भ में "जॉइंट गाइडेंस फॉर नेवी टू नेवी रिलेशनशिप डॉक्यूमेंट" और "म्यूच्यूअल लॉजिस्टिक्स सपोर्ट" समझौते पर भी हस्ताक्षर भी किये गए हैं जिसके तहत दोनों देशों ने एक दूसरे के सैन्य बंदरगाहों पर पारस्परिक बराबरी के लेन-देन के आधार पर सहयोग का वादा किया है. क्वाड देशों के बीच संयुक्त युद्ध अभ्यास को बीते अभी दो हफ्ते भी नहीं हुए हैं और 5 सितम्बर से दोनों देशों के बीच पांच दिवसीय आसिन्डेक्स AUSINDEX  द्विपक्षीय युद्धाभ्यास जारी है.  

Militärmanöver "Malabar"
मालाबार में क्वाड का सैन्य अभ्यासतस्वीर: AP Photo/picture alliance

2+2 ने चार देशों के सामरिक कूटनीतिक जोड़े को तो पूरा कर दिया है लेकिन अभी सिर्फ शुरुआत हुई है अभी कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर तो सिर्फ बातचीत की सिर्फ शुरू हुई है. इस फेरहिस्त में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है सालों से ठंडा पड़ा भारत - ऑस्ट्रेलिया के बीच व्यापार समझौता. एक झटके में तो व्यापार समझौता होना संभव नहीं है, दूसरी तरफ बातचीत जारी जारी रखना असंभव है, लेकिन यह सच है कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती.

एक और बात यह भी है कि 2+2 का यह पैटर्न कई देशों ने अपना रखा है. भारत जैसे भारी भरकम ब्यूरोक्रेसी या लोकशाही से युक्त देशों के लिए अक्सर यह काफी मुश्किल मुद्दा रहता है कि कोई मुद्दा एक मंत्रालय से संस्तुति के लिए जाए और फाइलों की भूल भुलैय्या में ही अटक कर ही रह जाय. बाबूडम के इस मायाजाल से निपटने में भी 2+2 मंत्रियों की बैठक एक रचनात्मक भूमिका निभा सकती है.

विदेश नीति और इससे जुड़े महकमों की एक खास बात होती है इनकी कार्यप्रणाली में अकसर लच्छेदार दूरगामी और रिटोरिकल बातों की खासी मौजूदगी. प्लस 2 डायलागों ने देशों के बीच रिटोरिकल मुद्दों के बेवजह जिक्र को कुछ हद तक कम किया है. इन फॉर्मेटों के कम से कम भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में और दोनों देशों के बीच हुए समझौतों के तेजी से कार्यान्वयन को सुनिश्चित किया है. जापान के साथ संबंधों में भी इस फॉर्मेट ने सटीक भूमिका अदा की है. उम्मीद की जाती है कि कुछ ऐसा ही भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच संबंधों में भी देखने को मिलेगी.

(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.)