1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

ध्यान से बड़े फायदे

Diehn, Sonya Angelica२१ जनवरी २०१४

ध्यान करने से उत्तेजना पैदा करने वाले जीन्स की क्रियाशीलता दबाई जा सकती है. एक ताजा रिसर्च में सामने आया है कि इससे तनाव पर काबू पाया जा सकता है. कैंसर से निपटने में भी ध्यान से मदद मिलने की उम्मीद की जा रही है.

https://p.dw.com/p/1AuMd
Symbolbild Meditation
तस्वीर: Deklofenak/Fotolia.com

स्पेन, फ्रांस और अमेरिकी वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस शोध में सामने आया है कि ध्यान की मदद से इंसान के शरीर में उन जीन्स को दबाया जा सकता है जो उत्तेजना पैदा करते हैं. ये जीन्स हैं RIPK2 और COX2 हैं. इनके अलावा हिस्टोन डीएक्टिलेज जीन्स भी हैं जिनकी सक्रियता पर ध्यान करने से असर पड़ता है.

इस शोध में पता चलता है कि लोग ध्यान की मदद से अपने शरीर में जेनेटिक गतिविधियों को नियंत्रित कर सकते हैं, जिसमें गुस्से को काबू करना, सोच, आदतें या सेहत को सुधारना भी शामिल है. इस शोध का मोलिक्यूलर बायोलॉजी के क्षेत्र 'एपिजेनेटिक्स' से भी सीधा संबंध है, जिसके अनुसार आसपास के माहौल का जीन के मॉलिक्यूलर स्तर पर स्थायी प्रभाव पड़ सकता है.

1990 में जब 'एपिजेनेटिक्स' मोलिक्यूलर बायोलॉजी के एक क्षेत्र के रूप में उभर कर सामने आई तो इसने उन मान्यताओं को हिला दिया जिनके अनुसार मनुष्य के जीन्स उनका भाग्य निर्धारित करते हैं. कोशिका नाभिक में मौजूद अणुओं की जांच कर एपिजेनेटिक्स में यह समझा जा सका कि डीएनए सीक्वेंस में परिवर्तन किए बगैर भी जीन्स को दबाया या उत्तेजित किया जा सकता है.

Meditation im Gefängnis
ध्यान की मदद से जेनेटिक गतिविधियों को नियंत्रित किया जा सकता हैतस्वीर: DW/Li Fern Ong

ध्यान से उत्तेजना में कमी

जर्मनी के माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर इम्यूनोबायोलॉजी एण्ड एपिजेनेटिक्स में रिसर्च कर रहे समूह के प्रमुख रित्विक सावरकर ने समझाया कि क्रोमैटिन के स्तर पर होने वाले परिवर्तन कैसे स्थायी और वंशानुगत बन जाते हैं. फिर वे मां से बच्चे में या एक ही शरीर के अंदर एक सेल से दूसरे सेल में भी स्थानांतरित हो सकते हैं.

फरवरी में इस शोध पर आधारित रिपोर्ट 'साइकोन्यूरोएंडोक्राइनोलॉजी' पत्रिका में छपने जा रही है. परीक्षण करने पर आठ घंटे ध्यान करने के बाद उत्तेजना पैदा करने वाले जीन्स की क्रियाशीलता के स्तर में कमी पाई गई. इसके अलावा जीन रेग्यूलेटरी मशीनरी में और भी कई परिवर्तन देखे गए. इससे तनावपूर्ण स्थिति से जल्दी उबरने में मदद मिलती है.

सावरकर को इस रिसर्च से काफी उम्मीदें हैं. उन्होंने कहा, "इंसान के बर्ताव और उसकी कोशिका के अंदर क्या हो रहा है, इन दोनों के बीच पहली बार कोई रिसर्च संबंध स्थापित करती है." उन्होंने आगे कहा कि इस बारे में और रिसर्च की जरूरत है. उन्होंने कहा उनकी रिसर्च अभी सिर्फ तीसरे स्तर पर हो रहे परिवर्तनों पर प्रकाश डालती है जिसमें इंसान किसी चीज को महसूस करता है, सिग्नल भेजता है और उसका फिर एक परिणाम होता है जिससे कि परिवर्तन होते हैं. सावरकर ने बताया कि ध्यान से होने वाले परिवर्तन एपिजेनेटिक यानि स्थायी हैं या नहीं इसका पता उनकी रिसर्च में नहीं लग पाया है, जबकि इस बात की संभावना है. उन्होंने कहा, "यह एक अच्छा प्रयोग होगा अगर लोगों के एक समूह को लंबे समय तक ध्यान कराया जाए और फिर उन्हें तनाव दिया जाए और फिर उनकी कंट्रोल ग्रुप (सामान्य लोगों से) तुलना की जाए."

कैंसर पर प्रभाव

हाइडलबर्ग में एसोसिएशन फॉर बायोलॉजिकल रेसिस्टेंस टू कैंसर की निदेशक यॉर्गी इर्मी ने डॉयचे वेले को बताया, "कैंसर की बीमारी कई बार उत्तेजना से जुड़ी होती है." उन्होंने बताया कि वह अपने मरीजों को ध्यान की सलाह देती हैं. उन्होंने कहा, "ठीक होने की प्रक्रिया में मरीज का रवैया बहुत महत्व रखता है."

सावरकर ने कहा कि इस दिशा में अभी आगे और भी रिसर्च की जरूरत है. उन्हें उम्मीद है कि इस तरह के शोध की मदद से हम बीमारियों से निपटने के बेहतर तरीके ढूंढ सकते हैं.

एपिजेनेटिक्स के मशहूर वैज्ञानिक ब्रूस लिप्टन भी मानते हैं कि हम अपने आपको विश्वास और अपने रवैये से ठीक कर सकते हैं. उन्होंने 2008 में हुई उस रिसर्च की याद दिलाई जिसमें कहा गया था कि पोषण और जीवनशैली में परिवर्तन से कैंसर के लिए जिम्मेदार जीन्स को दबाया जा सकता है.

लिप्टन कहते हैं, "दिमाग कुछ देखता है और उसे रसायनशास्त्र में परिवर्तित कर देता है, रसायन शरीर की कोशिकाओं तक पहुंचते हैं और एपिजेनेटिक्स के लिए जिम्मेदार होते हैं." उन्होंने अंत में कहा कि लोगों को इस बारे में और जानकारी हासिल करने की जरूरत है. सेहत का ख्याल रखना सीधे तौर पर जीवनशैली से जुड़ा है, और जीवनशैली बदलना हमारे हाथ में है.

रिपोर्ट: एस डीन/एसएफ

संपादन: महेश झा

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी