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नए आर्थिक सुधारों की जरूरत

९ जुलाई २०१४

कमजोर आर्थिक विकास, भारी महंगाई और गिरता निवेश भारतीय अर्थव्यवस्था को पिछले सालों में परेशान करता रहा है. अब नरेंद्र मोदी की सरकार को घरेलू और विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के कदम उठाने होंगे.

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तस्वीर: Andrew Caballero-Reynolds/AFP/Getty Images

पांच प्रतिशत की विकास दर आम तौर पर कम नहीं होती लेकिन भारत के लिए यह परीक्षा की घड़ी साबित हुई और चुनावों में मनमोहन सिंह की सरकार की हार की वजह. कभी लगभग 10 फीसदी तक पहुंचे भारत के विकास दर में लगातार कमी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट के कारण तो हुई लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार उसे रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने में नाकाम रही. सरकारों से समय पर अपेक्षित कदम की उम्मीद की जाती है ताकि सुधारों के जरिए अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे असर को कम किया जा सके. लेकिन कांग्रेस सरकार दिक्कतों को पहचानने और उचित कदम उठाने में देर करती रही.

अब नरेंद्र मोदी की सरकार पर विकास दर को और तेज करने की जिम्मेदारी है. मध्यवर्ग की बढ़ती आकांक्षाओं और हर साल बेरोजगारों की लंबी कतार में शामिल हो रहे नौजवानों को उम्मीद की किरण देने के लिए मैनुफैक्चरिंग पर जोर दिए जाने की जरूरत है. रेल, रोड और नौवहन जैसे ढांचागत संरचनाओं में भी भारी निवेश की मांग काफी समय से होती रही है. देश के विशाल बाजार में माल हर जगह नहीं पहुंचा सकने की कमजोरी विकास को प्रभावित कर रही है. अब तेज फैसला लेने की जरूरत होगी.

लेकिन मनमोहन सिंह के कार्यकाल के आखिरी सालों में विदेशी निवेशकों का भरोसा गिरा है. वोडाफोन पर करोड़ों के टैक्स जुर्माने के लिए कानून बदलने और दवा के पेटेंट पर बायर के साथ लंबे मुकदमे जैसी घटनाओं से विदेशी निवेशकों में असुरक्षा की भावना आई है. निवेशकों के लायक माहौल बनाने के लिए अब आर्थिक सुधारों के नए चरण की जरूरत होगी. पिछले सालों में विदेशी निवेशक न्याय प्रणाली में सुधार की भी मांग करने लगे हैं क्योंकि भारत में मुकदमा काफी लंबा खिंचता है.

भारत अभी भी विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक बना हुआ है. मोदी सरकार के साथ जल्द से जल्द संबंध बनाने की पश्चिमी देशों और यहां तक कि चीन के भी प्रयास दिखाते हैं कि भारतीय बाजार से कोई वंचित नहीं रहना चाहता. कारोबार का मकसद मुनाफा होता है. लाभ न दिखे तो कोई भी किसी बाजार में दिलचस्पी नहीं दिखाएगा. इसलिए भारत को बातचीत के जरिए सभी पक्षों के लिए मान्य समाधान ढूंढने के रास्ते खोजने होंगे.

मोदी सरकार के सामने पहला मौका इस साल के बजट का होगा जब वह अपने इरादे साफ कर पाएगी. जरूरत ऐसे बजट की है तो आम लोगों को राहत पहुंचाए, उनकी क्रयशक्ति बढ़ाए, मुद्रास्फीति पर काबू पाए और नए रोजगारों के सृजन के लिए उद्यमियों को प्रोत्साहन मिले. मोदी सरकार के पहले बजट को इसी कसौटी पर परखा जाएगा.

ब्लॉग: महेश झा

संपादन: अनवर जे अशरफ