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"नक्सल इलाकों में सेना नहीं"

२७ मई २०१३

भारत सरकार ने साफ किया है कि नक्सल प्रभावित इलाकों में फिलहाल सेना तैनात करने की कोई योजना नहीं है. रक्षा मंत्री ने कहा कि इसकी जगह स्थानीय इकाइयों को मजबूत किया जाना चाहिए.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

रक्षा मंत्री एके एंटनी से जब यह पूछा गया कि क्या नक्सल प्रभावित इलाकों में सेना की तैनाती सही कदम होगा, उन्होंने कहा, "इस तरह का कोई प्रस्ताव नहीं है. हम सीधे दखल देने के बगैर भी मदद दे सकते हैं. सही जवाब है कि स्थानीय संगठनों को मजबूत किया जाना चाहिए."

छत्तीसगढ़ में पिछले दिनों नक्सलियों के कथित हमले में कांग्रेस नेता नंद कुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल और कांग्रेस नेता महेंद्र सिंह कर्मा सहित 27 लोग मारे गए. रक्षा मंत्रालय पहले भी इन इलाकों में सेना और वायु सेना की तैनाती से इनकार कर चुका है.

रक्षा मंत्रालय का साथ

एंटनी का कहना है, "मंत्रालय पूरा समर्थन दे रहा है. असल में तो घटना से ठीक पहले भी वायु सेना के हेलिकॉप्टरों ने वहां रात में उड़ान भरी थी. हम हमेशा वहां समर्थन दे रहे हैं." हालांकि केंद्र सरकार ने करीब 2000 अर्धसैनिक बल छत्तीसगढ़ भेज दिए हैं. सरकारी अधिकारियों ने बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार की मांग के बाद यह कदम उठाया गया है.

छत्तीसगढ़ में कुल 30,000 से ज्यादा अर्धसैनिक बल नक्सली ताकतों के खिलाफ कार्रवाई में लगी हैं. नक्सली हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में छत्तीसगढ़ भी शामिल है, जहां पिछले आठ साल में लगभग 2000 लोगों की जान गई है.

इस बीच भारत की प्रमुख जांच एजेंसी एनआईए ने माओवादियों के इस हमले की जांच शुरू कर दी है. इसकी एक टीम हादसे की जगह पहुंच चुकी है. भारत के गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह ने बताया, "मैंने एनआईए से कहा है कि वह जांच शुरू करे. कहीं पर यह सिलसिला रुकना चाहिए."

Paramilitärische Sicherheitskräfte marschieren vor der ersten Phase der Landtagswahlen im indischen Bundesstaat Jharkand
तस्वीर: UNI

शनिवार को छत्तीसगढ़ में नक्सिलयों ने घात लगा कर हमला किया. उन्होंने पहले एक बारूदी सुरंग में विस्फोट किया और उसके बाद वहां से गुजर रहे 25 कारों के कारवां पर अंधाधुंध फायरिंग की. यह इलाका प्रदेश की राजधानी रायपुर से 345 किलोमीटर दूर है. पुलिस का दावा है कि इसके बाद उन्होंने लोगों को कार से खींच खींच कर बाहर निकाला और उनकी हत्या की.

भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने इलाके का दौरा किया. सिंह ने इसे कायराना हरकत बताया. इससे पहले 2010 में नक्सलियों के एक बड़े हमले में 77 पुलिसवाले मारे गए थे. प्रधानमंत्री सिंह इसे देश के अंदर की सबसे बड़ी मुश्किल बताते हैं.

एनआईए के एक अधिकारी का कहना है कि इलाके में सुरक्षा बहुत अच्छी नहीं थी और नक्सलियों ने इसका फायदा उठाया, "हम लोग इस हमले के हर पक्ष की जांच करेंगे. विद्रोहियों ने अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया. स्थानीय पुलिस वालों ने सुरक्षा का सही से जिम्मा नहीं उठाया."

सरकार का दावा है कि इस इलाके में 8000 से 10,000 माओवादी हैं, जो घात लगा कर हमला करने में माहिर हैं. माओवादियों ने 1967 से सशस्त्र आंदोलन छेड़ रखा है और वे शासन की व्यवस्था बदलना चाहते हैं. चार साल पहले सरकार ने उनके खिलाफ एक ताकतवर मिशन "ऑपरेशन ग्रीन हंट" की शुरुआत की थी लेकिन ट्रेनिंग की कमी की वजह से इसमें कामयाबी नहीं मिल पाई.

एजेए/एमजी (एएफपी, पीटीआई)

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