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नरमपंथी ईरानी राष्ट्रपति रोहानी

३ अगस्त २०१३

ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति हसन रोहानी एक मुश्किल वक्त में पद संभाल रहे है. इस नरमपंथी धार्मिक नेता से सबने काफी उम्मीदें लगा रखी हैं, लेकिन घरेलू और विदेशी दोनों ही मोर्चों पर उनका सामना जटिल चुनौतियों से है.

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तस्वीर: Atta Kenare/AFP/Getty Images

सूची लंबी है. परमाणु विवाद में प्रगति, प्रतिबंधों में ढील, आर्थिक संकट का सामना, मानवाधिकारों का पालन, सेंसरशिप में ढील. ये कुछ मुद्दे हैं तो नए राष्ट्रपति के अजेंडे पर हैं. उनसे देश के अंदर और बाहर बदलाव लाने की उम्मीद की जा रही है. वे निराधार नहीं हैं. नरमपंथी रोहानी ने चुनावी जीत के बाद 14 जून को अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में विश्व समुदाय को संदेश दिया था, "ईरान ने संयम का एक नया अध्याय शुरू किया है."

तार्किक नीतियों की उम्मीद

खासकर पश्चिमी देशों के साथ चल रहे परमाणु विवाद में 64 वर्षीय रोहानी ने अधिक पारदर्शिता का वादा किया है. रोहानी ने जोर दिया है कि उनके विचार से इस विवाद का यह एकमात्र कूटनीतिक समाधान है. जर्मन संसद में विपक्षी एसपीडी के विदेश नीति प्रवक्ता रॉल्फ मुत्सेनिष कहते हैं, "सचमुच रोहानी के साथ तार्किक संवाद की संभावना बढ़ गई है."

सच्चाई यह है कि पश्चिमी देशों का वास्ता एक ऐसे राष्ट्रपति से है जो खुद 2003 से 2005 तक परमाणु वार्ताओं में ईरान का मुख्य प्रतिनिधि था और जिसे कूटनीतिक आचरण का पता है. बर्लिन के निज्ञान और राजनीति फाउंडेशन के ईरान विशेषज्ञ वाल्टर पॉश कहते हैं, "सबसे बढ़कर जर्मनी नए ईरानी राष्ट्रपति से धैर्य, बेहतर रवैये और मौकों का इस्तेमाल करने की क्षमता की उम्मीद कर सकता है. यह परमाणु विवाद पर भी लागू होता है."

ईरान का आखिरी मौका

पूर्व राष्ट्रपति अहमदीनेजाद की तरह रोहानी भी अपने देश के विवादित परमाणु कार्यक्रम को वैध बताते हैं और यूरेनियम संवर्धन जारी रखना चाहते हैं. पॉश का कहना है कि जब रोहानी ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के महासचिव थे, तो ईरान ने सचमुच परमाणु तकनीक के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है, जिसे वे छोड़ना नहीं चाहेंगे.

फिर भी ईरान के खिलाफ भारी प्रतिबंधों में ढील परमाणु वार्ता में ईरान के समझौते के बिना संभव नहीं होगी. पॉश के अनुसार ईरान के लिए पूरी तरह अलग थलग होने और व्यापक आर्थिक नाकेबंदी से बचने का यह अंतिम मौका होगा. लेकिन ऐसी आवाजें भी हैं जो पश्चिमी देशों से अधिक सकारात्मक संकेतों की मांग कर रही हैं. मसलन ग्रीन पार्टी के सुरक्षा नीति प्रवक्ता ओमिद नूरीपुर कहते हैं, "हम काफी समय से प्रोत्साहन और दबाव के एक पैकेज की बात कर रहे हैं. लेकिन ये प्रोत्सान अब नहीं हैं और अच्छी बात है कि अमेरिकी ईरान के साथ उच्च स्तर पर सीधी बातचीत करना चाहते हैं." (ईरान पर खासः ईरान-इस्लाम और गणतंत्र)

खमेनेई के बिना कुछ नहीं

अपनी रणनीति में रोहानी को एक अन्य कारक का ध्यान रखना होगा, देश के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातोल्लाह अली खमेनेई का. अपने पहले औपचारिक संदेश में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने कहा था, "विदेश नीति राष्ट्र के सभी अधिकारों को ध्यान में रखते हुए और धार्मिक नेता के निर्देश में चलाई जाएगी." खमेनेई अब तक अमेरिका के साथ सीधी बातचीत का विरोध करते रहे हैं और परमाणु विवाद जैसे मामलों में कठोर नीति पर चलते रहे हैं. लेकिन प्रतिबंधों के भयानक नतीजों, अनुदारवादी ताकतों के बीच झगड़े और पूर्व राष्ट्रपति अहमदीनेजाद के साथ विवाद ने उस पर भी असर डाला है.

Hassan Rohani und Ali Larijani
ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी (बाएं) और संसद के अध्यक्ष अली लारिजानीतस्वीर: ICANA

बहुत से विशेषज्ञ रोहानी की जीत को खमेनेई के समझौते की तैयारी का नतीजा मानते हैं. वाल्टर पॉश कहते हैं, "खमेनेई ने वह हासिल कर लिया है जिसके लिए वह 2010 से काम कर रहे हैं." और यह है घरेलू राजनीतिक विवादों को शांत करना. रोहानी के खमेनेई के साथ रिश्ते बेदाग हैं. वे लंबे समय से सहयोगी हैं. पॉश का कहना है कि खमेनेई रोहानी का सम्मान करते हैं, जो मुख्य रूप से टेक्नोक्रैट हैं और यह लोकतांत्रिक परीक्षण से बेहतर है, जिसमें पता नहीं कि नतीजा क्या होगा.

परमाणु विवाद ही नहीं सीरिया विवाद में भी पश्चिमी देशों को ईरान से सकारात्मक संकेतों की उम्मीद है. जेनेवा में होने वाले दूसरे सीरिया सम्मेलन में ईरान की भागीदारी रोहानी की जीत के बाद ज्यादा संभव लगने लगी है. एसपीडी सांसद रोल्फ मुत्सेनिष कहते हैं कि यदि हम ईरान को सीरिया विवाद का बाहरी भागीदार बताते हैं तो हमें उसे इस विवाद के निबटारे में भी शामिल करना होगा.

मानवाधिकार और आर्थिक संकट

घरेलू तौर पर भी रोहानी का सामना बड़ी चुनौतियों से है. पिछले सालों में ईरान सिर्फ परमाणु विवाद के कारण ही नहीं, मानवाधिकारों के बढ़ते हनन के कारण भी सुर्खियों में रहा है. इसकी वजह से उसे संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों की आलोचना का शिकार होना पड़ा है. रोहानी के चुनावी वादों में राजनीतिक बंदियों की रिहाई, सेंसरशिप और नैतिक पुलिस की निगरानी में ढील के अलावा महिला अधिकारों की मजबूती भी शामिल थी.

जर्मनी में ग्रीन पार्टी के सांसद ओमिद नूरीपुर को आशंका है कि रोहानी लोगों को छोटी मोटी व्यक्तिगत आजादी देकर गंभीर मुद्दों को बाहर निकाल सकते हैं. वे कहते हैं कि सबसे जरूरी यह देखना है कि पिछले सालों में जबरन गिरफ्तार किए गए लोगों को कितनी जल्दी रिहा किया जाता है. "यह मसरीन सोतूदेह जैसे प्रमुख लोगों और पूर्व उम्मीदवार मुसावी से शुरू होता है. यह रोहानी और उनके चुनावी वादे का का पहला असली टेस्ट होगा."

लेकिन रोहानी की सबसे बड़ी चुनौती देश की बदतर आर्थिक हालत को बेहतर करना होगी. पद संभालने से पहले उन्होंने कार्यकाल के पहले सौ दिनों में आर्थिक समस्याओं का यथार्थवादी और सच्चा विश्लेषण करने और उसके समाधान का नक्शा सुझाने का वायदा किया है. परमाणु विवाद में प्रगति की स्थिति में प्रतिबंधों में ढील अर्थव्यवस्था को सांस लेने की मोहलत दे सकती है. लेकिन बहुत सी समस्याएं अहमदीनेजाद की सरकार के कुप्रंबध की वजह से पैदा हुई है. वाल्टर पॉश को उम्मीद है, वे कहते हैं, "सभी राजनीतिक गुटों के साथ संबंधों के कारण रोहानी निश्चित तौर पर सही व्यक्ति हैं."

रिपोर्ट: शाहराम आहादी/एमजे

संपादन: आभा मोंढे

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