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नवनाजी हत्याकांड, मुकदमा शुरू

६ मई २०१३

भारी भीड़ और कड़े सुरक्षा बंदोबस्त के बीच म्यूनिख में नवनाजी गिरोह एनएसयू द्वारा किए गए हत्याकांडों का मुकदमा शुरू हुआ. दस मृतकों में 8 तुर्क और एक ग्रीक मूल का था तो एक पुलिसकर्मी थी. मुकदमा एक हफ्ते के लिए स्थगित हुआ.

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तस्वीर: Reuters/Michael Dalder

4 नवम्बर 2011 को पूर्वी जर्मन शहर आइजेनाख में एक बैंक पर हमला हुआ. दोनों अपराधियों ने 70,000 यूरो लूटे और साइकिल पर भाग गए. चौकस चश्मदीदों ने पुलिस को अहम संकेत दिए. घटना के दो घंटे बाद ही पुलिस की टीम एक संदिग्ध कारावैन के पास पहुंची लेकिन उसमें आग लग गई. मलबे में से दो मर्दों की लाशें मिली जिन्होंने आत्महत्या कर ली थी. मृतकों की शिनाख्त हुई तो पता चला कि वे 1990 के दशक के लापता नवनाजी ऊवे मुंडलोस और ऊवे बोएनहार्ट थे.

उस समय किसी को अंदाजा भी नहीं था कि बैंक लूट का यह मामला कितना महत्वपूर्ण है. मामला और भी रहस्यमय हो गया जब उसी शाम पास के स्विकाऊ शहर में एक घर में धमाका हुआ जहां दोनों उग्र दक्षिणपंथी बैंक लुटेरे, बेआटे चैपे नाम की एक महिला के साथ रहते थे. सबूत जुटाने के दौरान पुलिस को वह हथियार हाथ लगा जिससे अप्रैल 2007 में हाइनब्रोन में पुलिस अधिकारी मिशेल कीजेवेटर की हत्या हुई थी.

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मुख्य जज मानफ्रेड गोएत्सेलतस्वीर: Reuters/Michael Dalder

अप्रत्याशित खुलासा

पुलिस को उस घर के मलबे में एक अजीब सा वीडियो भी मिला, जिसमें वीडियो बनाने वालों ने सितंबर 2000 के बाद से की गई हत्याओं की शेखी बघारी थी. मरने वालों में महिला पुलिस अधिकारी के अलावा विदेशी मूल के 9 मर्द थे. अपराध मानने वाला यह वीडियो एक हत्याकांड की पहेली सुलझाने की कुंजी है, जिसे पुलिस बरसों से हल नहीं कर पा रही थी. बैंक लूट के तार तुर्क मूल के 8 और एक ग्रीक मूल के लघु उद्यमियों की हत्या से जुड़े. शक हुआ कि हत्याएं एक नवनाजी तिकड़ी ने की थी जो अपने गिरोह को नेशनल सोशलिस्ट अंडरग्राउंड एनएसयू कहता था.

हत्या का उद्देश्य विदेशियों से घृणा और अमानवीय नस्लवाद था. लेकिन जांच के दौरान लंबे वक्त तक अधिकारियों को ऐसा भी लगा कि हत्याकांड की वजह तुर्क दबदबे वाले माफिया की बदले की कार्रवाई है. एक संदेह जो सालों तक मीडिया रिपोर्टों में भी झलका. हत्याकांड को मीडिया के एक तबके में डोएनर हत्याकांड कहा गया. डोएनर तुर्कों का लोकप्रिय फास्टफूड है. जांच किस दिशा में की जा रही थी, इसका एक सबूत यह भी है कि जांच दल का नाम बोसपोरस था.

नवंबर 2011 में हत्याकांड के असली कारणों का पता चलने के बाद तत्कालीन जर्मन राष्ट्रपति क्रिस्टियान वुल्फ ने पूछा था, "क्या हमारा देश पीड़ितों और उनके परिजनों को न्याय दे पाया है? क्या हमें उग्रदक्षिणपंथी पृष्ठभूमि का शक करना चाहिए था और क्या उग्र दक्षिणपंथी तबकों की पर्याप्त निगरानी की गई? क्या हमने पूर्वाग्रहों का असर होने दिया? हमें क्या करना चाहिए कि सरकार सुरक्षा की अपनी जिम्मेदारी हर सामाजिक क्षेत्र में निभाए? हमें मृतकों के रिश्तेदारों के सामने अवाक नहीं रहना चाहिए. "

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बचाव पक्ष के वकीलतस्वीर: Getty Images/Johannes Simon

सुरक्षा एजेंसियां में कमी

डेढ़ साल बाद भी इन सवालों का जवाब नहीं दिया गया है. खासकर सुरक्षा एजेंसियों के काम में कमियों की तादाद बहुत ही ज्यादा है. घरेलू खुफिया एजेंसी को संदिग्ध अपराधियों का 1990 के दशक से ही पता था, लेकिन गहन निगरानी के बावजूद वे उसकी नजरों से ओझल हो गए. सुरक्षा एजेंसियों की विफलता की जांच पिछले एक साल से कई संसदीय और प्रांतीय विधायी समितियां काम कर रही हैं.

फरवरी 2012 में बर्लिन में नाजी हत्याकांड के शिकारों के लिए केंद्रीय शोक समारोह हुआ. इसमें जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने मृतकों के परिजनों को सांत्वना दी. "जर्मनी के चांसलर के रूप में मैं आपको वचन देती हूं, हम हत्याकांड की जांच और उसके मददगारों और साजिश रचने वालों का पता करने और उन्हें उचित सजा दिलवाने के लिए सब कुछ कर रहे हैं." अपने भाषण में अंगेला मैर्केल ने लंबे समय तक पुलिस अधिकारियों द्वारा मृतकों पर किए गए गलत संदेह की ओर भी ध्यान दिलाया कि गलत जांच के कारण सालों तक कुछ परिवार वाले भी पुलिस के संदेह के घेरे में रहे. चांसलर ने इसके लिए क्षमा मांगी.

मृतकों के परिजनों के शब्द पीड़ा और वेदना से भरे हैं. हत्याकांड का पहला शिकार होने वाले अनवर सिमसेक थे जिन्हें सितंबर 2000 में उनकी फूलों की दुकान में गोली मार दी गई. उनकी बेटी समिया सिमसेक ने सरकारी शोक सभा में अपनी तकलीफ का इजहार करते हुए कहा था, "आज मैं यहां खड़ी होकर सिर्फ अपने पिता का शोक ही नहीं मना रही हूं, यह सवाल भी पूछ रही हूं, क्या जर्मनी मेरा घर है? हां, ऐसा है, लेकिन मुझे इसका भरोसा कैसे होगा, जबकि यहां ऐसे लोग हैं, जो मुझे यहां नहीं देखना चाहते और सिर्फ इसलिए हत्यारे बन जाते हैं कि मेरे माता पिता दूसरे देश से आए हैं. क्या मैं चली जाऊं? लेकिन यह कोई हल नहीं है. या मैं यह सांत्वना दूं कि सिर्फ कुछेक ऐसे अपराध के लिए तैयार हैं? यह भी कोई हल नहीं है."

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नस्लवाद विरोधी प्रदर्शनतस्वीर: Reuters/Kai Pfaffenbach

मुश्किल मुकदमा

सहानुभूति के संकेत भी हैं. बर्लिन की पूर्व विदेशी मामलों की आयुक्त केंद्र सरकार की ओर से मृतकों के परिजनों की मदद कर रही हैं. मानसिक सांत्वना के अलावा हर्जाने की भी बात है, मसलन पीड़ितों को मिलने वाला भत्ता. अपराधी को सजा देने की कार्रवाई की 6 मई को म्यूनिख के हाई कोर्ट में शुरुआत हुई है. बेआटे चैपे मुख्य अभियुक्त है जिसने एनएसयू का पता चलने के कुछ ही दिनों बाद पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. चैपे के अलावा चार अन्य लोगों पर अपराध में मदद देने के लिए मुकदमा चल रहा है. उन पर आतंकवादी संगठन बनाने का आरोप भी है.

एक अभियुक्त राल्फ वोललेबेन नाजी हलकों में जाना माना नाम है. वह उग्र दक्षिणपंथी एनपीडी पार्टी का अधिकारी था और एनएसयू के संदिग्ध हत्यारों के साथ उसका निकट संपर्क था. कुछ लोग इस पार्टी को हिंसा पर उतारू नवनाजियों का राजनीतिक मोर्चा मानते हैं. केंद्र और प्रांतीय सरकारों के गृह मंत्री एक साल से इस पार्टी के खिलाफ संविधान विरोधी गतिविधियों के सबूत जुटाने में लगे हैं. लेकिन चांसलर अंगेला मैर्केल जैसे राजनीतिज्ञों को पार्टी पर प्रतिबंध लगाने में सफलता मिलने पर संदेह है.

1964 में स्थापित पार्टी पर प्रतिबंध लगाने का पहला प्रयास 2003 में इसलिए विफल हो गया था कि एनपीडी के नेतृत्व में बहुत सारे सरकारी मुखबिर थे. अब सबकी निगाहों म्यूनिख में शुरू हुए मुकदमे पर है. शुरुआती खींचतान के बाद अब उसमें तुर्की के पत्रकार भी भाग ले रहे हैं.

रिपोर्ट: मार्सेल फुर्स्टेनाऊ/एमजे

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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