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समाज

नापाम गर्ल को ड्रेसडेन का शांति पुरस्कार

१२ फ़रवरी २०१९

दुनिया की सबसे प्रसिद्ध तस्वीरों में उसकी तस्वीर भी है. वह दुनिया में नापाम गर्ल के नाम से मशहूर हुई और वियतनाम युद्ध की बर्बरता का प्रतीक बन गई. उसे अब ड्रेसडेन में शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.

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Kim Phuc - erhält den Dresden-Preis 2019
तस्वीर: DW/G. Ketels

उन दिनों की याद करते हुए किम फुक फान थी कहती है, "मैं मरना चाहती थी." 8 जून 1972 को उनके गांव त्रांग बांग पर आसामन से आग बरसी था. युद्ध रिपोर्टर निक उट तस्वीर खींच रहे थे. उन्होंने अमेरिका समर्थित दक्षिण वियतनामी सेना के नापाम बम हमले के बाद दर्द से चिल्लाती सड़क पर भागती 9 साल की लड़की की तस्वीर खींची थी. पृष्ठभूमि में तबाही का गुबार. बाद में पुलित्सर पुरस्कार से सम्मानित ये तस्वीर वियतनाम युद्ध का प्रतीक बन गई और अमेरिकी नागरिकों की सोच में बदलाव की वजह बनी.

अब 55 साल की फुक कहती हैं, "जब मैं अकेली होती हूं तो तस्वीर से बचती हूं. लेकिन मैं उसके साथ शांति के लिए काम कर सकती हूं. ये मेरा सपना है." शुरू में तो वह बाहर निकलना पसंद नहीं करती थी, लेकिन अब सालों से वह मेलमिलाप के लिए सक्रिय हैं और युद्धक्षेत्र के प्रभावित बच्चों के लिए एक संस्था में काम करती है. उनके इन कार्यों के लिए उन्हें जर्मनी के ड्रेसडेन शहर का 10,000 यूरो का शांति पुरस्कार मिला है. वे कहती हैं, "मेरा सपना है कि ये दुनिया जीने की बेहतर जगह बने."

Kim Phuc Vietnam Napalm Angriff
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. Ut

फुक संयुक्त राष्ट्र की राजदूत के रूप में दुनिया भर में जाती है, अपनी कहानी सुनाती हैं और उन बच्चों की ओर से बोलती हैं जिनकी आवाज नहीं है. हालांकि कभी कभी उनके जख्म आग की तरह जलते हैं. फुक की संस्था 2002 से पूरी दुनिया में अनाथ बच्चों के लिए स्कूल, अनाथालय और अस्पताल बना रही है. इस समय उस गांव में एक पुस्तकालय बन रहा है जहां वह नापाम गर्ल के रूप में मशहूर हुईं. फुक कहती हैं, "शिक्षा इतनी जरूरी है. हर बच्चे को सीखने का मौका मिलना चाहिए." उस दिन जब फोटोग्राफर ने उन पर पानी डाला था और उन्हें अस्पताल ले गया था, उन्हें खुद अपना आखिरी लम्हा लगा था. "मैं मरना चाहती थी. जीने की और भविष्य की कोई उम्मीद नहीं थी, सिर्फ तकलीफ थी."

दस साल तक उनके दिल में सिर्फ नफरत थी, नाराजगी थी और नकारात्मक सोच थी. वह बताती है, "मैं आभारी हूं कि मैं जी रही हूं, अपने अनुभव से मैंने सीख ली है और अपमान, दर्द और तकलीफ से निकलने का रास्ता पाया है." उन्होंने फैसला किया कि वे अब पीड़ित नहीं बनी रहेंगी. उनका जीवन अब उम्मीद, प्यार और क्षमा से भरा है. वे कहती हैं कि हर कोई शांति के लिए काम कर सकता है और बेहतर समाज बनाने में योगदान दे सकता है. उन्हें पूरा भरोसा है कि उनकी कहानी दूसरों को सोचने पर मजबूर करेगी. वे कहती हैं, "जब एक छोटी लड़की ऐसे अनुभव के बाद प्यार, उम्मीद और माफ करने की क्षमता सीख सकती है तो ये हर कोई कर सकता है."

एमजे/आईबी (डीपीए)

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