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"नोटबंदी के दौरान लोगों ने मेरे 22 कुर्ते फाड़ दिए"

ओंकार सिंह जनौटी
१७ मई २०१९

असली और नकली का फर्क पूछा जाए तो लोग कहते हैं कि दिखते दोनों एक जैसे हैं लेकिन फर्क इस तरह का होता है. समानता और अंतर के ऐसे ही घेरों में नरेंद्र मोदी के हमशक्ल अभिनंदन पाठक भी रहते हैं.

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Indien Varanasi Modi Doppelgänger
तस्वीर: DW/O. S. Janoti

अभिनंदन पाठक जैसे ही बनारस के दशाश्वमेध घाट पर पहुंचे वैसे ही लोग फुसफुसाने लगे. कोई कहने लगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिना सुरक्षा के गंगा तट पर आए हैं. खादी का बाजू कट कुर्ता, कलाई पर उल्टी बंधी फीता घड़ी, मेटल फ्रेम चश्मा, सफेद बाल और दाढ़ी. शक्ल और कद काठी भी बिल्कुल नरेंद्र मोदी जैसी.

बहुत कम लोग अभिनंदन पाठक का असली नाम जानते हैं. वे उन्हें मोदी ही कहते हैं. ज्यादातर लोग "सर एक फोटो.." कहते हुए उनके पास आते हैं और फोटो या सेल्फी लेकर चलते बनते हैं. घाट पर प्रधानमंत्री का प्रचार कर रहे पाठक ने बच्चों को गोद में लेकर फोटो खिंचवाने में जरा भी संकोच नहीं किया. ऐसा वह बिना किसी संकोच प्रेम भाव से कई बार करते रहे.

Indien Varanasi Modi Doppelgänger
तस्वीर: DW/O. S. Janoti

2014 में जैसे ही बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया, वैसे ही सहारनपुर के मोदी कहे जाने वाले पाठक की किस्मत भी टिमटिमाने लगी. लोकसभा चुनावों के दौरान पाठक मोदी के चुनाव क्षेत्र बनारस पहुंच गए. बनारस में मोदी लुक में वह नरेंद्र मोदी का प्रचार करने लगे. पाठक लोगों में भी चर्चित हुए और मीडिया में भी.

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पाठक की लोकप्रियता और बढ़ती गई. अब वह नए नए इलाकों में जाकर कौतूहल, सेल्फियाना माहौल पैदा करने लगे.

लेकिन लोकप्रियता अपने साथ मुश्किलें भी लाती है, इसका पता पाठक को 2016 की नोटबंदी के दौरान चला. पाठक के मुताबिक, "नोटबंदी के दौरान मुझे जनता का रोष, क्रोध झेलना पड़ा. मेरे 22 कुर्ते लोगों ने फाड़ दिए. मुझे भाग कर अपनी जान बचानी पड़ी.

Indien Varanasi Modi Doppelgänger
तस्वीर: DW/O. S. Janoti

थाने में एफआईआर दर्ज करानी पड़ी." उसके बाद कुछ समय के लिए पाठक, मोदी नहीं बल्कि अभिनंदन पाठक बन कर रहने और बाहर निकलने लगे.

अभिनंदन कहते हैं, "मैंने लोगों की शिकायतों से अवगत कराने के लिए उत्तर प्रदेश बीजेपी से समय भी मांगा लेकिन नहीं दिया गया. इसकी वजह से मैं निराश हुआ और कुछ समय के लिए दूर हो गया." लेकिन सुर्खियों में बने रहने की आदत शायद उन्हें फिर खींच लाई.

जब हमने अभिनंदन से पूछा कि इस आभासी जिंदगी के पीछे जीवन कैसा है तो वह कहने लगे नरेंद्र मोदी के संघर्ष जैसा. 53 साल के पाठक कहते हैं कि वह जवानी के दिनों में राजनीति में उतरे. 1999 में उन्होंने सहारनपुर से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा. हार हुई लेकिन हिम्मत नहीं टूटी.

2012 में उन्होंने फिर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा. कामयाबी का घोड़ा इस बार दगा दे गया. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने मानवतावादी पार्टी का गठन किया.

Varanasi  Narendra Modi Indien
तस्वीर: IANS

इस दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी राजनीति की सीढ़ियों में शीर्ष की ओर बढ़ रहे थे, लेकिन उनके हमशक्ल अभिनंदन पाठक उन्हीं गलियारों में नीचे फिसलते जा रहे थे. पाठक ने दो बार पार्षद का चुनाव भी लड़ा, एक बार एक वोट से दूसरी बार दो वोट से हार मिली.

खुद को हर मामले में नरेंद्र मोदी के समानान्तर बताते हुए पाठक कहते हैं, "माननीय प्रधानमंत्री जिस तरह चाय बेचा करते थे, उसी तरह मैं भी छात्र जीवन में सहारनपुर और मुजफ्फरनगर के बीच ट्रेन में खीरा बेचा करता था." इसी दौरान आस पास खड़े लोगों में से किसी एक ने पक्के बनारसी अंदाज में कहा, "ई भी वैसा ही फेंकते हैं." लोगों की हंसी फूट पड़ी.

तभी उन्हें भरोसा दिलाने के लिए पाठक ने एक पॉकेट डायरी निकाली. तस्वीरें दिखाते हुए उन्होंने दावा किया कि वह गांधीनगर जाकर नरेंद्र मोदी की मां से मिल चुके हैं. मां से बातचीत के बाद पाठक ने दावा किया कि नरेंद्र मोदी और उनके खान पान की आदतें भी एक जैसी ही हैं. दर्शक मंडल से इस दौरान एक और प्रतिक्रिया आई, जिसे पाठक ने भी नजरअंदाज

करना बेहतर समझा और हमने भी. वह टिप्पणी सुबह नित्यकर्म से जुड़ी थी. यह बनारसी आबोहवा का असर था कि टिप्पणियां चुभने के बजाए चुटीली लग रही थीं.