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नोटबंदी नहीं नाकेबंदी से बेहाल मणिपुर

प्रभाकर मणि तिवारी
२२ दिसम्बर २०१६

नोटबंदी और उससे होने वाले शोर की वजह से पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में डेढ़ महीने से भी ज्यादा समय से चलने वाली आर्थिक नाकेबंदी, बंद और उससे आम लोगों के जीवन में पैदा संकट की आवाज दब गई है.

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तस्वीर: DW/Prabhakar

मणिपुर में नए जिलों के गठन के विरोध में 1 नवंबर से शुरू आर्थिक नाकेबंदी के बाद अब हाल की ताजा हिंसा ने हालात बिगाड़ दिए हैं. राज्य के कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया है और मोबाइल इंटरनेट सेवा रोक दी गई है. मणिपुर में पेट्रोल 350 रुपए लीटर बिक रहा है तो रसोई गैस का सिलेंडर दो हजार में. ताजा हिंसा के बाद केंद्र ने चार हजार सुरक्षा कर्मियों को वहां भेजा है. नगा संगठनों ने केंद्र से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की है. अगले साल यहां होने वाले विधानसभा चुनावों में नाकेबंदी और नए जिलों के गठन का मुद्दा नोटबंदी पर भी भारी पड़ेगा.

ताजा हालात

मणिपुर में नए जिलों के गठन की मांग बहुत पुरानी है. लेकिन तमाम सरकारें अशांति के अंदेशे से पांव पीछे खींचती रही हैं. राज्य में वर्ष 2002 से ही कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री रहे ओकराम ईबोबी सिंह ने इस साल राज्य में प्रशासनिक सहूलियत के लिहाज से सात नए जिलों के गठन का फैसला किया था. लेकिन खासकर सदर हिल्स, जिसका नया नाम अब कांगपोक्पी हो गया है, को जिले का दर्जा देने के सवाल पर राज्य की नगा जनजाति ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया. नगा संगठनों ने, जिनको उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड के इसाक-मुइवा गुट (एनएससीएन-आईएम) का समर्थन हासिल है, पहले इस फैसले के खिलाफ आवाज उठाई और फिर पहली नवंबर से राज्य में बेमियादी आर्थिक नाकेबंदी शुरू कर दी. इससे भी बात नहीं बनी तो सबसे बड़े नगा संगठन यूनाइटेड नगा काउंसिल (यूएनसी) ने दूसरे संगठनों के साथ मिल कर मणिपुर बंद की अपील कर दी. दूसरी ओर, नए जिलों के गठन का समर्थन करने वाले मैतेयी और कूकी जनजाति के लोगों ने नगा संगठनों की नाकेबंदी का विरोध शुरू कर दिया.

नगा संगठनों के विरोध और हिंसा के बावजूद सरकार ने इस महीने नौ तारीख को सात नए जिलों के गठन की अधिसूचना जारी कर दी. इसके बाद अब राज्य में कुल 16 जिले हो गए हैं. इसके बाद हुई हिंसा के सिलसिले में यूएनसी अध्यक्ष गाइडन कामेई और सूचना सचिव स्टीफन लामकांग को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है.

बीते सप्ताह एनएससीएन काडरों के हमले में कम से कम तीन सुरक्षाकर्मी मारे गए थे और दर्जनों घायल हो गए. इसके बाद नाकेबंदी के विरोधियों ने बीते रविवार को 20 से ज्यादा वाहनों में आग लगा दी. इसके बाद इम्फाल पूर्व जिले में कर्फ्यू लागू कर दिया गया. सरकार ने अफवाहों पर अंकुश के लिए मोबाइल इंटरनेट सेवाएं भी रोक दी हैं. राज्य में हालात संभालने के लिए केंद्र ने वहां अर्धसैनिक बलों के चार हजार जवानों को भेजा है. लेकिन हालात सुधरने की बजाय बिगड़ते ही जा रहे हैं.

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तस्वीर: DW/Prabhakar

आवश्यक वस्तुओं की किल्लत

आर्थिक नाकेबंदी और बंद के लंबे दौर से राज्य में आवश्यक वस्तुओं और खाद्य सामग्री की भारी किल्लत पैदा हो गई है. राज्य को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली सड़कों-नेशनल हाइवे 2 और 37 पर वाहनों की आवाजाही ठप है. यह पर्वतीय राज्य सब्जियों और खाने-पीने की दूसरी चीजों के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर है. लेकिन वाहनों की आवाजाही ठप होने की वजह से आवश्यक वस्तुएं बाजार से गायब हैं. इससे आम जनजीवन ठहर गया है. वैसे, इस राज्य में नाकेबंदी का इतिहास बेहद पुराना है. लेकिन अबकी इसके लंबा खिंचने की वजह से संकट गहरा गया है.

नाकेबंदी और उसके बाद नोटबंदी की मार से राज्य के सीमावर्ती शहर मोरे से होकर म्यांमार के साथ होने वाला सीमा व्यापार भी ठप है. इससे म्यांमार की करेंसी कयात के मुकाबले भारतीय मुद्रा की कीमत गिरी है. पहले जहां एक सौ भारतीय रुपए की कीमत 19 सौ कयात थी वहीं अब यह आठ सौ कयात रह गई है.

विरोध की वजह

लेकिन नगा संगठन आखिर नए जिलों के गठन का विरोध क्यों कर रहे हैं. दरअसल, मणिपुर के सदर हिल्स इलाके में सौ साल से भी लंबे अरसे से नगा जनजाति के लोग रहते हैं. उनका दावा है कि यह उनके पुरखों की जमीन है. नगाओं को अंदेशा है कि नए जिलों के गठन के बहाने सरकार उनसे पुरखों की जमीन छीन लेना चाहती है. नगा संगठनों का कहना है कि सरकार प्रशासनिक सहूलियत के बहाने हमारे घावों पर नमक छिड़क रही है. राज्य के अखिल नगा छात्र संघ का कहना है कि नए जिलों के गठन पर उसे कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन इस प्रक्रिया में नगा लोगों को भी शामिल किया जाना चाहिए था. दूसरी ओर, मुख्यमंत्री ईबोबी सिंह कहते हैं, "सरकार बातचीत के जरिए इस समस्या को सुलझाने का प्रयास कर रही है. लेकिन यूएनसी इसके लिए तैयार नहीं है." लेकिन यूएनसी नेता तो पुलिस हिरासत में है? इस सवाल पर उनका कहना है कि कानून अपना काम करेगा.

चुनावी मुद्दा

नए जिलों का गठन राज्य में अगले साल की शुरूआत में अहम चुनावी मुद्दा बन सकता है. सरकार के इस फैसले ने राज्य की तीनों प्रमुख जनजातियों, मैतेयी, नगा और कूकी को बांट दिया है. असम के बाद मणिपुर की सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही बीजेपी ने मुख्यमंत्री पर चुनावों को ध्यान में रखते हुए नए जिलों के गठन का आरोप लगाया है. बीजेपी का सवाल है कि समुचित आधारभूत ढांचे के बिना नए जिलों का गठन कैसे हो सकता है. बीजेपी नेता एम. डोरेंद्र सिंह कहते हैं, "मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार की नाकामी छिपाने के लिए चुनावों से पहले यह सस्ती चाल चली है. लेकिन इससे वोटरों को भरमाना मुश्किल है. राज्य के लोग बदलाव चाहते हैं."

पड़ोसी नगालैंड में नगा पीपुल्स फ्रंट की अगुवाई वाली साझा सरकार में शामिल होने के बावजूद बीजेपी ने मणिपुर में अगला चुनाव अकेले लड़ने का एलान किया है. शायद उसे महसूस हो गया है कि राज्य की दो-तिहाई सीटों पर मैतेयी जनजाति के वोट ही निर्णायक हैं और यह लोग नए जिलों के समर्थन में हैं. बीते अक्तूबर में हुए एक सर्वेक्षण में 60 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी को 31 से 35 सीटें मिलने की बात कही गई थी.

दूसरी ओर, कांग्रेस को उम्मीद है कि मुख्यमंत्री के इस साहसिक फैसले से मैतेयी व कूकी वोटरों के बीच पार्टी की छवि निखरेगी और प्रतिष्ठान-विरोधी लहर पर अंकुश लग सकेगा. लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अगर मौजूदा नाकेबंदी और हिंसा जारी रही तो तमाम राजनीतिक दलों के चुनावी समीकरण गड़बड़ा सकते हैं.

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