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नौकरी बनाए रखने के नए तरीके

२५ अक्टूबर २०१३

बढ़ती बेरोजगारी और आर्थिक संकट के बीच फ्रांस में मजदूर संगठन नए समझौते करने को मजबूर है. नए समझौते से वेतन तो नहीं बढ़ेगा लेकिन कारखाने भी बंद नहीं होंगे.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/dpaweb

फ्रांस की ऑटोमोबाइल कंपनी पीएसए पजो सिट्रोएन का मजदूर संघ अगले साल वेतन स्थिर रखने पर राजी हो गया है. इसके लिए मजदूर संघ ने कंपनी से वादा लिया है कि कारखाना बंद न किया जाए. मजदूरों की हड़ताल को लेकर मशहूर फ्रांस में ये समझौता मजदूर संगठनों की तरफ से नरमी का संकेत है. मजदूरों में इस तरह का विचार तेजी से फैल रहा है कि कठिन वैश्विक अर्थव्यवस्था में इस तरह के समझौते फ्रांस में नौकरियां बचाने के लिए अहम हैं. कार बनाने वाली पजो सिट्रोएन कंपनी घाटे से गुजर रही है. कंपनी का कहना है कि इस समझौते से 100 करोड़ यूरो बचाने में मदद मिलेगी. फ्रांस के करीब दर्जन भर कारखानों में मजदूर संघ के वेतन, छुट्टी और काम करने के लचीले घंटे पर रजामंद होने से कंपनी को लाभ होने की उम्मीद है.

Peugeot Citroen Werk in Poissy Paris
घाटे से निपटने के लिए मजबूर कंपनीतस्वीर: Reuters

नौकरी बचाने के लिए

जून में ही इस समझौते को लेकर मैराथन बातचीत शुरू हो गई थी. पजो अपने कारखानों में बिना हड़ताल के उत्पादन बढ़ाना चाहती है. जर्मनी में भी औद्योगिक घराने इस तरह से ही समझौते करते हैं. जानकारों का कहना है कि फ्रांस भी जर्मन शैली के औद्योगिक संबंध के रास्ते पर चल रहा है.

श्रम मामलों के जानकार ऑतोअन सोलोम कहते हैं, "धीरे-धीरे हम जर्मन प्रणाली की तरफ बढ़ रहे हैं.'' सोलोम के मुताबिक मजदूर संघ और मालिक के बीच आम सहमति के मॉडल के कारण ही जर्मनी यूरो जोन में अर्थव्यवस्था पर शीर्ष पर है. सोलोम कहते हैं, ''यह पूरी तरह से कभी भी एक जैसा नहीं हो सकता क्योंकि दोनों देश अलग है, लेकिन जमीनी स्तर पर मजदूरों और मालिकों में अधिक आम सहमति को लेकर वास्तविक परिवर्तन हुआ है.''

Peugeot Logo
तस्वीर: Reuters

संकट में उत्पादन क्षेत्र

फ्रांस में बेरोजगारी दर करीब 11 फीसदी है जबकि जर्मनी में सिर्फ 7 फीसदी है. फ्रांस की विकास दर एक फीसदी के नीचे अटक गई है. पिछले साल सत्ता में आए फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद ने ज्यादा रोजगार पैदा करने का वादा किया था. सोसायटी जनरल के विश्लेषक फिलीप बैरियर के मुताबिक नए श्रमिक समझौते कारखानों को बंद करने के लिए अपरिहार्य हो रहे थे. बैरियर का कहना है, ''आर्थिक संदर्भ बदल गया है जिस कारण ये समझौता पाने के लिए आसान हो जाता है. मजदूर संगठनों को ये बात समझ में आ गई है कि नौकरी बनाए रखने के लिए ये जरूरी है." आंकड़ों से पता चलता है कि हड़तालों में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है. साथ ही पजो भी उन कंपनियों में से एक है जिनका अस्तित्व खतरे में है. पिछले कुछ दशकों में फ्रांस के उत्पादन क्षेत्र में पांच लाख कर्मचरारियों की नौकरी जा चुकी है. नए समझौते के मुताबिक कंपनी को मजदूरों के निकालने के पहले बातचीत करनी होगी. हालांकि इन समझौते के बावजूद फ्रांस के ओलाने-सु-बोआ स्थित सिट्रोएन के ऐतिहासिक कारखाने में आखिरी कार का उत्पादन हुआ. कर्मचारियों ने कारखाना बंद किए जाने के खिलाफ विरोध मार्च किया. घाटे से गुजर रही कंपनी इस कारखाने को अगले साल बंद करना चाहती है. इस कारखाने में 85 लाख सिट्रोएन सी3 मॉडल कारों का उत्पादन हो चुका है.

एए/एनआर (रॉयटर्स)

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