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कानून और न्याय

न्यायपालिका में भ्रष्टाचार पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

मारिया जॉन सांचेज
१० नवम्बर २०१७

भारत में न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं. अब सुप्रीम कोर्ट ने पांच सदस्यीय बेंच बनाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है.

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Indien Entscheidung des Obersten Gerichtshofes zu muslimischen Scheidungsregeln PK Farha Faiz in Neu Delhi
तस्वीर: Reuters/A. Abidi

सभी जानते हैं कि भारत की अदालतों में भ्रष्टाचार व्याप्त है लेकिन आम धारणा यह है कि निचली अदालतों में वह बहुत अधिक है और जैसे-जैसे ऊपर की अदालतों में जाते हैं, वह कम होता जाता है. आम तौर पर माना जाता है कि देश की सबसे ऊंची अदालत सुप्रीम कोर्ट भ्रष्टाचार से मुक्त है. लेकिन क्या वाकई ऐसा है?

प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार में कानून मंत्री रह चुके और देश के अग्रणी वकीलों में गिने जाने वाले शांतिभूषण ने सात साल पहले सुप्रीम कोर्ट में ही खुली अदालत के सामने आरोप लगाया था कि देश के कम-से-कम आठ प्रधान न्यायाधीश भ्रष्ट थे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में संवेदनशीलता दिखाते हुए उन पर अदालत की अवमानना का अभियोग नहीं लगाया. सुप्रीम कोर्ट भ्रष्टाचार के मामले में आज भी बेहद संवेदनशील है. 2005 में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल और सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज ने मिलकर एक सर्वेक्षण कराया था. इसकी रिपोर्ट में कहा गया था कि जिन लोगों से सवाल पूछे गए उनमें से 59 प्रतिशत ने वकीलों को, पांच प्रतिशत ने जजों को और 30 प्रतिशत ने अदालत के कर्मचारियों को रिश्वत दी थी. जब जम्मू-कश्मीर से संबंधित अंश को वहां के अंग्रेजी अखबार ‘ग्रेटर कश्मीर' ने छाप दिया तो उस पर अदालत की अवमानना का मुकदमा दायर कर दिया गया. इस वर्ष फरवरी में इसकी सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अदालतों में भ्रष्टाचार के बारे में लोगों की राय को अखबार में छापना अदालत की अवमानना नहीं है.

इसी दिशा में आगे कदम बढ़ाते हुए बृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक असाधारण फैसला लिया और उस मुकदमे की सुनवाई के लिए एक पांच-सदस्यीय संविधान पीठ का गठन करने का निर्देश दिया जिसमें हाईकोर्ट के एक अवकाशप्राप्त जज के ऊपर भ्रष्टाचार का आरोप है. जज पर यह आरोप भी है कि उसने लखनऊ के एक प्रतिबंधित मेडिकल कॉलेज के प्रबंधकों को यह आश्वासन दिया कि वह अपने संपर्कों के जरिये सुप्रीम कोर्ट से उसके अनुकूल फैसला करवा लेगा. इस बात को मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की दो-सदस्यीय खंडपीठ ने बहुत गंभीरता से लिया और एक पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के गठन का निर्णय लिया. न्यायपालिका में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम साबित होगा.

जैसा कि ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल ने भी कहा है, भारतीय अदालतों में भ्रष्टाचार के तीन कारण हैं. पहला कारण तो यह है कि यहां न्यायप्रक्रिया बेहद लंबी और जटिल है, पुराने और नए बन रहे कानूनों की संख्या बहुत अधिक है और जजों की संख्या बहुत कम है. नतीजतन मुकदमें  दशकों तक चलते रहते हैं. बरसों तक तारीखें ही लगती रहती हैं और सुनवाई तक शुरू नहीं होती. ऐसे में लोग दलालों और बिचौलियों की मदद लेते हैं ताकि मुकदमे की सुनवाई में तेजी आए और जल्दी फैसला हो. जो भी व्यक्ति कभी भी निचली अदालतों में गया है, उसने देखा है कि वहां खुलेआम कदम-कदम पर रिश्वत ली जाती है और हर काम का रेट तय है. मसलन जिस मुकदमे की बारी आ गई है, उसकी आवाज लगाने वाले को पैसा देना पड़ता है वरना वह बिना आवाज लगाए ही अंदर जाकर कह देगा कि वादी या प्रतिवादी आए ही नहीं हैं और मुकदमा खारिज हो जाएगा या जज बिना एक पक्ष को सुने एक्स-पार्टे यानि एकतरफा फैसला दे देगा.

यदि सुप्रीम कोर्ट अदालतों में फैले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के प्रयास जारी रखेगा तो लोगों का अदालतों में विश्वास बढ़ेगा. क्योंकि भारत में न्यायपालिका को विधायिका और कार्यपालिका से अलग रखने की अच्छी व्यवस्था की गई है, इसलिए यहां न्यायपालिका ने अपनी स्वतंत्रता बनाए रखी है और अनेक बार वह सरकारों द्वारा बनाए गए क़ानूनों को असंवैधानिक घोषित कर चुकी है. भ्रष्टाचार में कमी आने से यह स्वतंत्रता और भी अधिक बढ़ सकेगी.