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नशाखोरी के खिलाफ जंग में हार

८ फ़रवरी २०१६

एक ऐसा प्रदेश जो नानक की वाणी और सूफी संतों की भक्ति के लिये जाना जाता हो और जहां धार्मिक पंथ का अनुसरण करने वाली पार्टी राज करती हो आज ऐसी भयानक नशाखोरी की चपेट में है जिससे उबरना असंभव हो चुका है.

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तस्वीर: DW/D. Babar

कभी देश भर में खुशहाली का प्रतीक माने गए पंजाब की युवा पीढ़ी का एक बड़ा हिस्सा आज तबाह हो रहा है. यहां के अस्सी फीसदी से अधिक युवा अफीम, चरस और शराब के लती हो चुके हैं जिससे परिवारों की सुख-शांति भंग हो चुकी है, समाज जर्जर और अर्थव्यवस्था डांवाडोल है. ये जानना और भी खतरनाक है कि इस समस्या से निबटने के लिये कोई ठोस अभियान नहीं चलाए जा रहे हैं. एम्स के नेशनल ड्रग्स डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर की एक रिपोर्ट के अनुसार पंजाब सरकार जिस ढुलमुल तरीके से इस समस्या को काबू में करने की कोशिश कर रही है उससे तो लगता है कि ये राज्य नशाखोरी के खिलाफ अपनी लड़ाई शुरू करने के पहले ही हार चुका है.

रिपोर्ट के मुताबिक सरकार की मौजूदा नीतियों के तहत ड्रग ऐडिक्शन से निबटने के लिये सिंगल कोर्स ट्रीटमेंट देने में भी दस साल लग जाएंगे. इस उपचार के तहत चार से छह सप्ताह तक नशे के लती का वैकल्पिक दवाओं से उपचार करने की कोशिश की जाती है ताकि वो ड्रग्स की लत से बाहर आ सके. ध्यान देने की बात है कि संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस चिकित्सा पद्धति को मान्यता देता है.

बर्बाद हुई युवा पीढ़ीं

रिपोर्ट के अनुसार पंजाब के शहरी और ग्रामीण इलाके में नशे के लती व्यक्तियों के परिजन उन्हें ये चिकित्सा देना चाहते हैं लेकिन उन्हें ये उपलब्ध ही नहीं हो पाता है. सरकार का ध्यान सिर्फ पुनर्वास और सुधार केंद्रों पर टिका है जो कि हास्यास्पद है. 2015 में नशे की तस्करी के एक मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर गंभीर चिंता प्रकट की थी कि ड्रग्स तस्करों ने पंजाब की युवा पीढ़ी को बर्बाद कर दिया है. इसी पीठ ने अपनी सुनवाई में कहा था कि आइंदा से नारकोटिक्स ऐक्ट की हर धारा का उपयोग करके ऐसे मामलों में कड़ी से कड़ी सजा सुनाई जाएगी.

Afghanistan Behandlungszentrum für Drogenabhängige
अफगानिस्तान में नशे के लती का इलाजतस्वीर: Reuters/A. Masood

ऐसा नहीं है कि पंजाब की ये विस्फोटक स्थिति आज हुई है. 2011 में इसी मसले पर बनी एक डॉक्यूमेंटरी ‘ग्लट- द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ पंजाब' में इस समस्या का खौफनाक चित्रण किया गया था. उसी वक्त पंजाब के करीब 74 प्रतिशत युवा नशे की चपेट में बताए गए थे और वहां शराब की सालाना खपत 29 करोड़ बोतल की थी जो देश में सबसे अधिक थी. फिर भी सरकारें सजग और सतर्क नहीं हुई और न ही इसे जड़ से मिटाने के कोई उपाय किए गए. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक आरोप तो ये भी लगते हैं कि ये तस्करी बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स की नाक के नीचे और उसकी मिलीभगत से हो रही है और नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो और इंटेलीजेंस ब्यूरो इसके मूक दर्शक बने हुए हैं.

कानून हैं, पर अमल नहीं

नशाखोरी की ये समस्या सिर्फ पंजाब तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसी विकराल तरीके से कई दूसरे राज्यों में भी फैल रही है. पड़ोसी राज्य हरियाणा भी इस संक्रमण की गिरफ्त में आ चुका है, दिल्ली के स्कूलों और कॉलेज से भी ऐसी खबरें मिलती रहती हैं. केरल में भी पंजाब की तर्ज पर शराबखोरी युवाओं को तबाह कर रही है, राजस्थान में कोटा, ड्रग्स का गढ़ माना जाने लगा है और उत्तराखंड की राजधानी देहरादून समेत कई इलाकों में निजी और सरकारी स्कूलों और कॉलेजों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों के इर्दगिर्द नशे का एक दमघोंटू कुहासा फैलता जा रहा है. सरकारें और पुलिस प्रशासन भले ही ऑन रिकॉर्ड न मानें लेकिन अंदरखाने इस समस्या ने सबको हैरत और चिंता मे डाल दिया है कि आखिर युवाओं को नशे के चंगुल में जाने से कैसे बचाएं.

कानून कई हैं लेकिन बात वही ढाक के तीन पात वाली है. अमल होता है लेकिन सुस्ती रहती है, सजाएं सख्त नहीं हैं, कार्रवाई का स्तर कमजोर और रफ्तार धीमी है. समाज में मोटीवेशन की प्रक्रियाएं अब एक मजाक बन कर रह गई हैं. ऐसा लगता है मानो पतन ही इस दौर का हासिल है. पारिवारिक ढांचे के बिखराव, स्वच्छंद जीवनशैली, सामाजिक अलगाव, हिंसा भरे माहौल, शिक्षा प्रणाली की जर्जरता, प्रेम और सौहार्द जैसे नैतिक मानवीय मूल्यों के ह्रास ने एक ऐसा समाज तैयार कर दिया है जो आधुनिकता की आड़ में चमकता भले ही हो लेकिन अंदर से वो काला और खोखला हो रहा है. ये एक भीषण आपदा है, लेकिन जब तक समझें, तब तक कहीं बहुत देर न हो जाए.

ब्लॉग: शिवप्रसाद जोशी