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परिवारवाद की बलि चढ़ता डीएमके

३० जनवरी २०१४

डीएमके टूट के कगार पर है और पार्टी अध्यक्ष एम करुणानिधि इसे रोकने में असमर्थ नजर आ रहे हैं. करुणानिधि इस वर्ष जून में 90 वर्ष के हो जाएंगे और स्पष्ट है कि शीघ्र ही पार्टी को नए नेता की जरूरत पड़ेगी.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

उनके दो बेटों एमके अलागिरी और एमके स्टालिन के बीच चल रही भीषण राजनीतिक प्रतिस्पर्धा ने यह स्थिति पैदा की है क्योंकि बड़े भाई अलागिरी इस बात को पचा नहीं पा रहे हैं कि उनके पिता ने छोटे भाई को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान उन्होंने पार्टी संगठन धीरे धीरे कोषाध्यक्ष स्टालिन के हाथों में सौंप दिया है. अलागिरी का असर दक्षिणी तमिलनाडु तक ही सीमित है. हाल ही में अलागिरी ने मदुरै जिला पार्टी सचिव मूर्ति के खिलाफ अनुसूचित जाति एवं जनजाति उत्पीड़न निरोधक कानून के तहत शिकायत दर्ज की थी. करुणानिधि का कहना है कि 24 जनवरी की सुबह छह बजे अलागिरी उनके शयनकक्ष में आए और अपनी शिकायतें बताने लगे. इसी क्रम में अलागिरी ने आवेश में आकर यह भी कहा कि अगले तीन चार माह के भीतर स्टालिन की मृत्यु हो जाएगी.

करुणानिधि ने कहा कि किसी भी पिता का दिल तोड़ने के लिए यह काफी है. उन्होंने अलागिरी को पार्टी के सभी पदों से हटा कर प्राथमिक सदस्यता से भी निलंबित कर दिया. उन्होंने इस बात से भी इनकार नहीं किया है कि अलागिरी को पार्टी से निकाला जा सकता है और कहा कि इस बारे में फैसला पार्टी की सामान्य परिषद और कार्यकारिणी करेगी. दरअसल अलागिरी की तात्कालिक शिकायत यह थी कि उनके समर्थकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा रही है.

Indien Tamil Nadu, M. Karunanidhi, M. K. Stalin und K. Anbazhagan
तस्वीर: UNI

तमिलनाडु में कई जगह उनके समर्थकों ने स्टालिन के विरोध में पोस्टर भी लगाए हैं. कहा जाता है कि अलागिरी अभिनेता विजयकांत की डीएमडीके पार्टी के साथ गठजोड़ करने के विचार के भी खिलाफ हैं. अभी तक तीन सांसद उनके साथ खुलकर आए हैं. पार्टी में इस समय ऐसे वरिष्ठ नेताओं का अभाव है जो दोनों खेमों के बीच सुलह सफाई करा सकें. इसलिए संभावना व्यक्त की जा रही है कि निष्कासित किए जाने का इंतजार न करके अलागिरी डीएमके तोड़कर अलग पार्टी बना सकते हैं. करुणानिधि के बयान के बाद राज्य भर में स्टालिन समर्थकों ने अलागिरी के पुतले जलाने शुरू कर दिए हैं. उधर करुणानिधि ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर स्टालिन के लिए अधिक सुरक्षा की मांग की है क्योंकि लोकसभा चुनाव के प्रचार के लिए उन्हें लगातार जनता के बीच रहना होगा और अलागिरी की धमकी के मद्देनजर उनकी सुरक्षा को खतरा है.

ब्राह्मणवादविरोध और द्रविड़ अस्मिता एवं स्वाभिमान का झंडा बुलंद करके अपार जन समर्थन प्राप्त कर सत्ता में आने वाली डीएमके अब करुणानिधि के कुनबे के इर्द गिर्द सिमट कर रह गई है. उनके पुत्र अलागिरी और स्टालिन एवं पुत्री कनिमोझी के अलावा उनके नजदीकी रिश्तेदार मारन परिवार का पार्टी पर कब्जा है. अब करुणानिधि की बढ़ती उम्र के साथ साथ उत्तराधिकार की लड़ाई भी तेज होती जा रही है क्योंकि राजनीति से अधिक धन कमा कर देने वाला व्यवसाय इस समय कोई दूसरा नहीं है. यह अलग बात है कि कभी कभी इसके लिए जेल भी जाना पड़ जाता है. डीएमके के एराजा, जो मनमोहन सिंह की सरकार में संचार मंत्री थे, और करुणानिधि की सांसद पुत्री कनिमोझी 2जी घोटाले के कारण काफी अरसे तक जेल में रहने के बाद अब जमानत पर हैं.

यह भारतीय राजनीति की विडंबना है कि ऊंचे आदर्शों के आधार पर व्यापक जन समर्थन वाली पार्टियां अंत में परिवारवाद और निर्बाध भ्रष्टाचार के भंवर में फंस कर रह जाती हैं. इस प्रवृत्ति की शुरुआत कांग्रेस से हुई और एक समय था जब सभी विपक्षी पार्टियां कांग्रेस के परिवारवाद और भ्रष्टाचार का मुखर विरोध किया करती थीं. लोहियावादी समाजवादी राजनीति के भीतर से उभरी समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जेडीयू, लोकजनशक्ति पार्टी और समता पार्टी, चौधरी चरण सिंह की स्थापित लोक दल जो अब उनके पुत्र के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल और हरियाणा में देवीलाल के पुत्र ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व में इंडियन नेशनल लोक दल के नाम से चल रहा है, शिरोमणि अकाली दल (बादल), झारखंड मुक्ति मोर्चा, शायद ही कोई पार्टी हो, जो इस बीमारी से मुक्त हो. बीजेपी में भी नेताओं के रिश्तेदारों को संगठन में पद और चुनाव में ताकत देने की परंपरा जोर पकड़ती जा रही है.

डीएमके में चल रहे घमासान से राजनीतिक दलों को सीख लेनी चाहिए और संगठन के भीतर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के पुनर्नवीकरण के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए. मुलायम सिंह यादव के परिवार के सदस्यों की आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण पैदा होने वाली राजनीतिक समस्याएं सबके सामने हैं. लालू यादव को भी अपने साले साधु यादव के विद्रोह का सामना करना पड़ा था. जब तक पार्टियों के भीतर स्वस्थ लोकतंत्र विकसित नहीं होगा, यह स्थिति बनी रहेगी.

ब्लॉगः कुलदीप कुमार

संपादनः अनवर जे अशरफ

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