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पांच साल बाद भी सूनामी के गहरे निशान

१० मार्च २०१६

जापान में भयानक भूकंप से पैदा हुई सुनामी और परमाणु हादसे को पांच साल हो गए लेकिन उसका असर अभी भी बरकरार है. देश के उत्तर पूर्वी इलाके में तटीय इलाकों में जगह जगह सूनामी से हुई बर्बादी के निशान अब भी बाकी हैं.

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Fukushima Zerstörung Frau mit Blumen
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K.Kamoshida

जापान का उत्तर पूर्वी इलाका. पांच साल पहले आई सूनामी को यहां अब भी महसूस किया जा सकता है. मलबों के बड़े-बड़े पहाड़ तो अब नहीं दिखाई देते लेकिन स्थानीय लोग अब भी अपनी जिंदगी को पुराने ढर्रे में लाने के लिए जूझ रहे हैं.

उत्तर-पूर्वी जापान के एक छोटे से शहर यामामोटो में रहने वाली कैका हाबू को फिर से स्वस्थ हो अपने खेतों में जाकर पूरी तरह काम करने में लगभग पांच साल लग गए. 11 मार्च 2011 को जब समुद्र की भयानक लहरों ने उनके घर और खेतों को तबाह किया, तो उनके परिवार का खेती का कारोबार और उनकी पूरी जिंदगी तबाह हो गई. रिष्टर स्केल पर 9 मैग्नीट्यूट के भूकंप से उभरी उस भयानक सूनामी की गवाह रहीं हाबू कहती हैं, ''तब से अब तक इन पांच सालों में मैंने एक दिन भी ठीक से नहीं गुजारा है.''

Tschernobyl Sperrzone Archivbild 2011
तस्वीर: picture-alliance/dpa

भूकंप और सूनामी की इस भयावह दोहरी आपदा ने उत्तरपूर्वी जापान के तटीय इलाकों में 18500 लोगों की जान ले ​ली थी. इसमें से 636 यामामोटो शहर में भी मारे गए. हाबू का परिवार इस हादसे में ​इसलिए बच गया क्योंकि सूनामी की चेतावनी मिलने के बाद वे भागकर दूर एक पहाड़ी पर चढ़ गए थे और यहां अपनी कार में ही उन्होंने रात गुजारी. हाबू याद करते हुए कहती हैं, ''अगले दिन, मेरे पति हमारे घर को देखने गए और जब वे वापस लौटे तो उन्होंने बताया वहां कुछ भी नहीं बचा था.''

हाबू के साथ अगली त्रासदी तब हुई जब उनके पिता ने फुकुशिमा डायची परमाणु संयंत्र के पास ही मौजूद अपने घर को छोड़ने की मजबूरी में हुए तनाव से आत्महत्या कर ली. सुनामी के बाद इस संयंत्र के तबाह होने से वहां आपदा और बढ़कर आई थी. वे कहती हैं कि उस इलाके से लोगों को बाहर निकाले जाने के कारण उनके पिता ''गहरे अवसाद से जूझ रहे थे.'' इस परमाणु दुर्घटना के असर से खुद उबर कर आई हाबू कहती हैं कि डर के मारे, ''अब भी कई ऐसे लोग हैं जो तटीय इलाकों में नहीं जा सकते.''

Fukushima 3 Jahre
तस्वीर: Reuters

आपदा के ठीक अगले दिन लोगों की मदद करने यामामोटो पहुंचे सहायता कर्मी फुकुहारू फुकूई कहते हैं, ''इस शहर को जो नुकसान हुआ है आप यकीन नहीं कर पाएंगे. सारी की सारी रिहायशी ​इमारतें सड़कों पर पसर गई थीं.'' उत्तरी टोकियो के रहने वाले चर्च से जुड़े फुकूई ने यामामोटो में आपदा राहत के लिए एक स्वयंसेवी शिविर लगाया था.

बेहतरीन स्ट्रॉबेरी के लिए मशहूर इस शहर में खेती पर भी जबरदस्त मार पड़ी. स्ट्रॉबेरी के सारे कांचघर सूनामी का शिकार हो गए. हाबू कहती हैं, ''मुझे शुरूआत में लगा कि अब हम यहां स्ट्रॉबेरी कभी नहीं उगा पाएंगे.'' अपने बेटे के दोस्तों और दूसरे सहयोगियों की मदद से हाबू का परिवार 3000 वर्ग मीटर में फैले कांचघरों पर से मलबे और मिट्टी को साफ करने में कामयाब हो पाया. और हाबू ने अगले 6 महीने में अपने कारोबार को फिर शुरू कर लिया. ''जब हमारे यहां पहली स्ट्रॉबेरी हुई तो मैंने उसे आधा-आधा काटकर अपने दो पोतों को खाने को दिया.''

स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए मशहूर यामामोटो और पास के ही वाटारी कस्बे में कांचघरों को फिर से दु​रूस्त करने के लिए जापान सरकार ने 17 करोड़ डॉलर खर्च किया. लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि पैसा मिलने की रफ्तार बहुत धीमी है. टोकियो शिम्बुन अखबार में स्था​नीय वाणिज्य संस्थान के हवाले से कहा गया है कि इस इलाके की अर्थव्यवस्था 2011 के बाद से अब तक भी नहीं सुधर पाई ​है. सबसे अधिक प्रभावित इवाते, मियागी और फुकुशिमा तीनों ही जनपदों के स्थानीय वाणिज्य संस्थानों की ओर से यही कहा गया है. केवल 18 प्रतिशत लोग ही इस आपदा के बाद पु​रानी परिस्थितियों में लौट सके हैं. उसके अलावा 52 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उनके हालात अब भी आपदा से पहले की तुलना में बहुत बदतर हैं.

Jahrestag Fukushima 2013
तस्वीर: Reuters

यामामोटो से 150 किलोमीटर उत्तर की ओर बसा रिकुजेंटाकाटा शहर भी इस भीषण आपदा का शिकार रहा. अपने इस शहर में वाइन फैक्ट्री लगाने के लिए 7 साल पहले टोकियो से लौटे अकिहिरो कुमागाई को पिछले साल अपनी बनाई वा​इन की पहली घूंट नसीब हो सकी. वे कहते हैं, ''मैं आपदा से पहले ही वाइन का उत्पादन शुरू करना चाहता था.'' लेकिन इस बात का कतई अंदाजा नहीं था कि समुद्रतट से 2 किमी दूर बन रही उनकी वाइन फैक्ट्री भी समुद्री लहरों की चपेट में आ सकती है. सुनामी में उनकी सारी नई मशीनें बर्बाद हो गई. स्वयंसेवी समूहों ने डेढ़ महीना मेहनत कर उनकी फैक्ट्री से मलबा निकाला.

आपदा के दौरान इस कस्बे में 1750 लोग मारे गए थे. ये यहां की आबादी का तकरीबन 7 फीसदी हिस्सा था. कुमागाई कहते हैं कि वे इस इलाके की अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए काम करेंगे, ''टोकियो में काम करने के दौरान मैंने महसूस किया कि इस इलाके में बेहतरीन गुणवत्ता वाले सीफूड की भरमार है. मुझे उम्मीद है कि मैं फिर से ऐसी वाइन बनाने में कामयाब होऊंगा जो यहां के लज़ीज खाने के साथ मिलकर एक नई संस्कृति बनाने में कामयाब होगी.''

आरजे/एमजे (डीपीए)