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पाकिस्तान में परमाणु बम का जुनून

१० अप्रैल २०१३

पाकिस्तान में परमाणु हथियारों के जनक अब्दुल कदीर खान दुनिया भर में कुख्यात हैं लेकिन वह और उनकी सोच इस्लामी देश में चरमपंथियों के साथ ही आम लोगों के भी सिर चढ़ कर बोलती है.

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तस्वीर: AP

उत्तर कोरिया पाकिस्तान का बड़ा कर्जदार है. खासतौर से अब्दुल कदीर खान का जिन्होंने 2004 में यह माना था कि उन्होंने परमाणु तकनीक चुपके से उत्तर कोरिया को बेची थी. जानकारों का कहना है कि खान की मदद के बगैर उत्तर कोरिया परमाणु परीक्षण नहीं कर सकता था. दुनिया में वे बेहद कुख्यात हैं लेकिन देश में लाखों लोग उन्हें ''इस्लामी बम का पिता'' कह कर सम्मान देते हैं.

पाकिस्तान के राष्ट्रपति और सैनिक शासक रहे परवेज मुशर्रफ ने 2001 में खान को देश के परमाणु कार्यक्रम के प्रमुख पद से हटा दिया था. उन्हें पांच साल तक नजरबंद रखने के बाद 2004 में गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर उत्तर कोरिया और ईरान जैसे देशों को नाभिकीय संवर्धन की तकनीक बेचने में कथित भूमिका के आरोप लगे. 2009 में जब पाकिस्तान की एक अदालत ने उन्हें मुक्त घोषित किया तब उनके आने जाने पर लगी रोक को खत्म किया गया. खान अब एक राजनीतिक पार्टी के मुखिया हैं और 11 मई को होने वाले संसदीय चुनावों में उतरने की तैयारी कर रहे हैं.

हालांकि पाकिस्तान और खान के इर्द गिर्द घूमता परमाणु विवाद अब ठंडा पड़ चुका है लेकिन इस्लामी राष्ट्र का परमाणु हथियार अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के लिए लगातार चिंता का सबब बना हुआ है. पाकिस्तान के नागरिकों और सैन्य प्रशासन का दावा है कि परमाणु हथियार पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में हैं. इसके बाद भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे लेकर चिंतित रहता है. जानकारों का मानना है कि इस्लामी ताकतों के देश पर कब्जा करने या फिर सेना और सरकार के नियंत्रण से हालात बाहर जाने की सूरत में ये हथियार आतंकवादियों के हाथ लग सकते हैं.

Nordkorea Missile Tests
उत्तर कोरिया को परमाणु तकनीक पाकिस्तान से मिलीतस्वीर: Ed Jones/AFP/Getty Images

पाकिस्तान ने 1998 में परमाणु परीक्षण किया था. देश लगातार इस्लामी चरमपंथ से जूझ रहा है. पिछले दशक में चरमपंथियों ने न केवल नागरिक ठिकानों को बल्कि सैन्य ठिकानों और छावनियों को भी निशाना बनाया है. कुछ अंतरराष्ट्रीय जानकारों का कहना है कि तालिबान और अल कायदा की आंखें पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर टिकी हैं.

पाकिस्तानी पत्रकार और रिसर्चर फारुक सुल्हरिया ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, ''परमाणु कार्यक्रम कभी सुरक्षित नहीं रहे. एक तरफ पश्चिमी मीडिया इसे पाकिस्तानी बम के रूप में प्रचारित करता है तो दूसरी तरफ इसे लेकर कुछ वास्तविक चिंताएं भी हैं. पाकिस्तानी सेना का तालिबानीकरण भी ऐसी चीज है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. क्या होगा अगर अंदरूनी तालिबान परमाणु हथियारों पर नियंत्रण कर ले."

परमाणु बम का जुनून और जिहाद

परमाणु हथियारों का जुनून केवल चरमपंथी इस्लामी गुटों में नहीं है. उदार धार्मिक पार्टियां भी आए दिन भारत और पश्चिमी देशों के खिलाफ परमाणु हथियारों की रट लगाए रहती हैं. आम पाकिस्तानी भी मानते हैं कि परमाणु हथियार देश के लिए "जरूरी" हैं. कराची यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले अब्दुल बासित ने डीडब्ल्यू से कहा, "परमाणु बम हमारा रक्षक है. यह हमारी संप्रभुता की गारंटी देता है. जब तक हमारे पास यह बम है तब तक कोई पाकिस्तान को नुकसान नहीं पहुंचा सकता और यही वजह है कि अमेरिका, भारत और पश्चिमी देश इसके खिलाफ साजिश कर रहे हैं." लंदन में रहने वाले जमात ए इस्लामी के कार्यकर्ता आसिमुद्दीन का मानना है कि पाकिस्तान को परमाणु हथियारों की जरूरत इसलिए है क्योंकि उसके पड़ोसी भारत के पास परमाणु बम हैं और उसके साथ वह तीन जंगें लड़ चुका है. दूसरी तरफ पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के लिए जुनून के पीछे सुल्हरिया बाहरी खतरे से ज्यादा घरेलू राजनीति को वजह मानते हैं. उन्होंने कहा, "राजनेता लोगों को लुभाने के लिए परमाणु हथियारों की बात करते हैं."

खान के बारे में सुल्हरिया ने कहा कि विवादित वैज्ञानिक पाकिस्तान में इसलिए लोकप्रिय हो गए क्योंकि उनका परमाणु बम इस्लामी चरमपंथियों के जिहादी सिद्धांत में एक दम फिट हो जाता है. सुल्हरिया ने कहा, "1980 के दशक से ही जिहाद सरकार के सिद्धांत का हिस्सा है और जिहाद के लिए आखिरी हथियार की जरूरत होती है जैसे कि परमाणु बम."

इन सब के बाद भी पाकिस्तान के ज्यादातर लोग खान की देश में कोई राजनीतिक भूमिका नहीं देखते. उन्हें पसंद करने वाले लोगों को चुनाव में उनकी जीत की उम्मीद नहीं है. आसिमुद्दीन कहते हैं, "यह चुनावी राजनीति में खान की पहली कोशिश है. वह अच्छा कर सकते हैं लेकिन यह सब सही चुनाव क्षेत्र पर निर्भर करेगा."

पाकिस्तानी परमाणु बम के पिता जीतें या नहीं, वह और उनकी सोच पाकिस्तान के कट्टरपंथियों और आम लोगों में लोकप्रिय है और फिलहाल इसमें बदलाव के आसार नहीं दिख रहे.

रिपोर्टः शामिल शम्स/ एन आर

संपादनः समरा फातिमा

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