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पाकिस्तान में बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा की वजहें

१ मार्च २०१५

पिछले कुछ हफ्तों में पाकिस्तान की कई शिया मस्जिदों पर हुए हमलों में दर्जनों लोग मारे गए. पाकिस्तान में फिर से सिर उठाती सांप्रदायिक हिंसा के कारणों पर डीडब्ल्यू ने विश्लेषक आरिफ रफीक से खास बातचीत की.

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Pakistan Bombe Quetta Trauer
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS.com

मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट (एमईआई) रिपोर्ट दिखाती है कि साल 2007 से पाकिस्तान ने चार प्रमुख प्रांतों में सांप्रदायिक हिंसा के चलते लगभग 2,300 लोगो की जान गई. हाल ही में एक शिया मस्जिद पर हुए आत्मघाती हमलों में 80 से भी ज्यादा लोग मारे गए हैं. विशेषज्ञ इसे हाल के सालों में हुई सबसे गंभीर सांप्रदायिक हिंसा की वारदात मान रहे हैं. दूसरी ओर, पिछले दिसंबर में पेशावर के स्कूल पर हुए हमले के बाद पाकिस्तानी सेना ने आतंकी समूहों के खिलाफ कार्रवाई तेज की है. एमईआई रिपोर्ट के लेखक बता रहे हैं कि भले ही सांप्रदायिक हिंसा पूरे देश में फैल गई हो फिर भी पाकिस्तान के इराक या सीरिया की तरह सांप्रादायिक आधार पर विभाजित होने के आसार अभी नहीं दिखते.

डीडब्ल्यू: हाल ही में पाकिस्तान में घटी इस सांप्रदायिक हिंसा के पीछे आप क्या कारण देखते हैं?

आरिफ रफीक: यह ताजा घटना महज उन वारदातों की कड़ी का हिस्सा है जो पिछले काफी समय से शिया मुसलमानों को निशाना बनाते हुए की जा रही हैं. सुन्नी संप्रदाय के देवबंद सब-सेक्ट के सदस्यों समेत कुछ और आतंकी समूह इसके पीछे हैं. ध्यान देने वाली बात है कि बरेलवी कहे जाने वाले देश के सबसे बड़े सुन्नी सब-सेक्ट की शियाओं के साथ दुशमनी नहीं है. बल्कि कई राजनैतिक मसलों पर उनका आपस में सहयोग बढ़ रहा है. इसलिए जरूरी है कि इसे हम शिया-सुन्नी के बीच का विवाद ना मानें. बल्कि समझें कि यह सुन्नी देवबंद और शिया मुसलमानों के बीच की तकरार है. इस हिंसा का खामियाजा आम शिया नागरिक भुगत रहे हैं.

पाकिस्तान में साल 2007 से फिर से मुंह उठाती सांप्रदायिक हिंसा के जड़ में क्या है?

सुन्नी देवबंद और शिया मुसलमानों के बीच अलग अलग मुद्दों पर हिंसक तकरारों के पीछे कई तरह के कारण और कई नेटवर्क काम कर रहे हैं. जैसे, अफगानिस्तान के पास के कुर्रम एजेंसी इलाके और कराची में शियाओं के खिलाफ हिंसा का मुख्य कारण तालिबानीकरण रहा है. तहरीक-ए तालिबान (टीटीपी) नामकी सुन्नी आतंकी इकाई ने कराची का इस्तेमाल पहले पैसों का इंतजाम करने और आराम करने के लिए किया. बाद में जब उन्होंने वहां हिंसा फैलानी चाही तो वे शियाओं पर हमले के लिए वहां मौजूद सुन्नी देवबंदी नेटवर्क का इस्तेमाल करने लगे. वहीं, बलोचिस्तान में हमने देखा कि सुन्नी देवबंदी आतंकियों को संभवत: सरकार विरोधी बलोच अलगाववादियों और पाकिस्तान शासन से भी सहयोग मिल रहा है.

इन टकरावों के पीछे कौन से नेटवर्क काम कर रहे हैं?

पाकिस्तान में शिया विरोधी हिंसा के पीछे खास तौर पर जो सुन्नी आतंकी समूह काम कर रहे हैं, उनमें लश्कर-ए झंगवी और तहरीक-ए तालिबान प्रमुख हैं. लेकिन पाकिस्तान में कबीलाई इलाकों में आईएस की स्थापना के साथ ही आगे हमें कुर्रम एजेंसी जैसे इलाकों में आईएस के जैसे सलाफी जिहादी भी देखने को मिल सकते हैं. इसमें कोई शक नहीं कि हिंसा के शिकार सबसे ज्यादा शिया मुसलमान ही बन रहे हैं लेकिन इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि पाकिस्तान में कई सक्रिय शिया आतंकी नेटवर्क भी काम कर रहे हैं. ये ज्यादातर प्रतिक्रियात्मक कार्यवाई करते हैं और उग्रवादियों और आतंकियों को निशाना बनाते हैं. लेकिन कुछ जगहों पर इसके अपवाद भी सामने आए हैं.

पाकिस्तानी सरकार की इस मुद्दे पर क्या स्थित है और वे इसे कैसे संभाल रहे हैं?

पाकिस्तानी सरकार बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा को रोक पाने में असफल रही है. ऐसा नहीं कह सकते कि उन्होंने शिया मुसलमानों को बचाने के लिए कुछ नहीं किया है. केन्द्रीय और प्रांतीय सुरक्षा बल शिया जुलूसों को सुरक्षा प्रदान करते हैं, उनके पवित्र दिनों में आक्रमण रोकने के लिए सीमा को सुरक्षित रखते हैं और कई लश्कर-ए झंगवी आतंकियों को गिरफ्तार या मौत के घाट उतार चुके हैं.

Pakistan Nawaz Sharif
तस्वीर: Getty Images/S. Gallup

लेकिन, जहां एक ओर पाकिस्तान सरकार का एक धड़ा लश्कर-ए झंगवी और दूसरे आतंकियों से लड़ रहा है वहीं दूसरी ओर ऐसे ही आतंकी समूहों के सहयोगियों के साथ हाथ भी मिला रहा है. उदाहरण के तौर पर, अहल-ए सुन्नत वाल जमात समूह के साथ राजनीतिक साठगांठ.

सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के नेता, खासतौर पर नवाज शरीफ के सत्ताधारी दल पाकिस्तान मुस्लिम लीग के नेता इस बात के दोषी हैं कि उन्होंने अहल-ए सुन्नत वाल जमात के साथ चुनावी डीलें कीं. अभी तक साफ नहीं है कि क्या पाकिस्तानी सेना शिया विरोधी नेटवर्कों को पाकिस्तान के लिए उतना बड़ा खतरा मानती भी है या नहीं. इस तरह सांप्रदायिक आंतकवाद पर एक ईकाई के रूप में पाकिस्तान में इस बात पर नैतिक और कूटनीतिक स्तर पर स्पष्टता नहीं दिख रही है.

पाकिस्तान विशेषज्ञ आरिफ रफीक विजियर कंसल्टिंग के अध्यक्ष हैं. इन्होंने 2007 से पाकिस्तान में फिर से उभरती सांप्रदायिक हिंसा के बारे में खास रिपोर्ट जारी की है.

इंटरव्यू: गाब्रिएल डोमिंगेज