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समाज

पुरुषों को भी करनी चाहिए पीरियड्स पर बात: गुनीत मोंगा

२८ फ़रवरी २०१९

शॉर्ट फिल्म 'पीरियड.एंड ऑफ सेंटेंस' में पीरियड्स से गुजर रही महिलाओं के खिलाफ मौजूद पूर्वाग्रहों को उजागर किया गया है. भारत को ऑस्कर दिलाने वाली इस फिल्म की प्रोड्यूसर गुनीत मोंगा से डॉयचे वेले ने खास बातचीत की.

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Guneet Monga
तस्वीर: Privat

ऑस्कर की डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट सब्जेक्ट की श्रेणी में पुरस्कार जीतने वाली यह फिल्म भारतीय समाज में पीरियड्स को लेकर गहरे जड़ कर गए पूर्वाग्रहों को उजागर करती है. कहानी उत्तर भारत के हापुड़ की है. कई पीढ़ियों तक यहां की महिलाओं की पहुंच सैनिटरी पैड तक नहीं थी. इस कारण कई तरह की बीमारियां होती रहीं और बड़ी होने के बाद लड़कियों को स्कूल छोड़ना पड़ता.

इनकी कहानी पर डॉक्यूमेंट्री बनाई है जानी मानी ईरानी-अमेरिकी फिल्मकार रेका जेहताब्ची ने. इसे संभव करने में अहम भूमिका निभाई द पैड प्रोजेक्ट ने, जो कि लॉस एंजेलिस के ओकवुड स्कूल के छात्र छात्राओं और उनकी शिक्षिका मेलिसा बर्टन का संगठन है.

इस फिल्म को प्रोड्यूस करने वाली 34-वर्षीया गुनीत मोंगा दिल्ली में जन्मीं थीं और सिख्या इंटरटेनमेंट की संस्थापिका हैं. इसके पहले भी उन्होंने विश्व स्तर पर प्रशंसा और पुरस्कार बटोरने वाली लंचबॉक्स, गैंग्स ऑफ वासेपुर, मसान जैसी कई फिल्में प्रोड्यूस की हैं. 'पीरियड' को मिले सम्मान के बाद आत्मविश्वास और महात्वाकांक्षा से भरी मोंगा से उनकी उपलब्धियों और आशाओं को लेकर डॉयचे वेले ने की खास बातचीत.

डॉयचे वेले: इतने संवेदनशील विषय पर बनी फिल्म के लिए ऑस्कर जीतना कैसा लगता है?

गुनीत मोंगा: कितने कमाल की बात है ना ये? अब भी पूरी तरह विश्वास नहीं हो रहा है. इसके लिए मैं बहुत सारे लोगों की शुक्रगुजार हूं. हापुड़ के काठी खेड़ा गांव की लड़कियों से लेकर, लॉस एंजेलिस वालों तक, एनजीओ एक्शन इंडिया से लेकर इस फिल्म की आवाज मंदाकिनी कक्कड़ तक, जो (फिल्म की) सहनिर्माता भी हैं.

ऐसे पूर्वाग्रहों के कारण कितनी ही लड़कियां और युवा महिलाएं पढ़ाई से लेकर मंदिरों में पूजा से दूर रखी जाती आई हैं. इसके अलावा मामूली सैनिटरी नैपकिन जैसे प्रोडक्ट भी उन्हें नहीं मिलते थे. इस विषय पर बात करने की बहुत जरूरत है.

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ऑस्कर जीतने वाली टीम तस्वीर: AFP/Getty Images/K. Winter

अवार्ड जीतने के तुरंत बाद आपने कहा था, "अब जब हमें ऑस्कर मिल गया, चलिए दुनिया को बदलते हैं.इस बात से आपका क्या मतलब था?

यह एक सपना सच होने जैसा है और इसने हममें यह विश्वास जगाया है कि हम कुछ भी कर सकते हैं. पीरियड होना एक आम बात है और यह हमें कुछ भी हासिल करने से नहीं रोक सकती. डॉक्यूमेंट्री से इसे प्रमुखता मिली है लेकिन मासिक धर्म को लेकर अभी बहुत जागरुकता फैलाने की जरूरत है. ग्रामीण भारत में अब भी यह एक वर्जित विषय ही है. इसके बाद हम इस पर फीचर फिल्म भी बनाने जा रहे हैं.

इस विषय पर जागरुकता बढ़ाने के लिए फिल्म बनाने के अलावा आपकी और क्या योजनाएं हैं?

इस पर हमें बातचीत जारी रखने की सबसे ज्यादा जरूरत है. भारत में ज्यादातर लड़कियों को पीरियड्स के बारे में तब तक कुछ पता ही नहीं होता, जब तक उनके पीरियड्स शुरु ना हो जाएं. देश में सैनिटरी पैड इस्तेमाल करने वाली महिलाओं का हिस्सा काफी छोटा है.

मासिक धर्म पर खुली चर्चाएं करना बहुत जरूर है. इसे आज भी कई समाजों में वर्जित विषय माना जाता है इसीलिए मैंने इसमें पुरुषों को शामिल करने की सोची. उद्योगपति आनंद महिंद्रा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हमारी ऑस्कर पुरस्कार की घोषणा के बाद इस पर ट्वीट किया. तो मैंने सोचा कि क्यों ना ऐसे पुरुषों को इस अभियान से जोड़ा जाए. पुरुषों को भी मासिक धर्म से जुड़े हाइजीन पर खुल कर बात करनी चाहिए और इसे सामान्य रूप से ही लेना चाहिए. पीरियड्स से जुड़ी मिथ्या और झूठी धारणाओं को त्यागना होगा. अब तक चले आ रहे इस कचरे को हटाना ही होगा.

केरल राज्य में पीरियड्स की उम्र वाली महिलाओं के प्रवेश पर रोक रही थी. सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने पर इन महिलाओं को शारीरिक हिंसा की धमकियां मिलीं. क्या इस तरह महिलाओं को उनके पीरियड के लिए शर्मिंदा नहीं किया गया?

जी हां, बिल्कुल. यह बेतुका है. इस तरह की परंपराएं भारत के कुछ और मंदिरों में भी चली आ रही हैं. पीरियड को लेकर इतनी तरह की वर्जनाओं का आज भी होना दुर्भाग्यपूर्ण है. इनमें से कई की जड़ें हमारे धर्म से निकली हैं. इस पर चुप्पी तोड़ने और महिलाओं को सशक्त बनाने का वक्त आ चुका है. युवा लड़कियों और किशोरियों को मासिक धर्म से जुड़ी स्वस्थ आदतों का पता होना चाहिए.

गुनीत मोंगा का यह इंटरव्यू मुरलीकृष्णन ने लिया है.

आरपी/एनआर

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