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पेरिस संधि सिर्फ एक धोखा है

शबनम सुरिता
१५ दिसम्बर २०१५

पिछले हफ्ते पेरिस में करीब 200 देशों द्वारा तय पर्यावरण संधि को दुनिया भर में ऐतिहासिक संधि बताया जा रहा है. डॉयचे वेले के ग्रैहम लूकस का कहना है कि इसमें संदेह है कि संधि को ऐतिहासिक कहा जा सकता है.

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Frankreich Klimagipfel in Paris Protest Eifelturm
तस्वीर: Reuters/B. Tessier

पहले कुछ सकारात्मक बातें. हाल के सालों में मानवजाति के प्रतिनिधियों द्वारा इस ग्रह पर हमारे भविष्य की सुरक्षा के लिए संधि तय करने और उस पर हस्ताक्षर करने में विफलताओं के बाद पेरिस संधि आगे की ओर एक कदम है. पिछले एक दशक की बहस को देखें तो लगता है कि वे लोग जो जलवायु परिवर्तन और इसके मानव निर्मित होने को नकारते रहे हैं, अब दलील की प्रतिस्पर्धा हार रहे हैं. अमेरिका में कुछ रिपब्लिकन नेता इसे भविष्य में भी नकारते रहेंगे, लेकिन उनकी दलीलें अब इतिहास के कचरेदान में होंगी, भले ही रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार कह रहे हों कि वे जीतने पर पेरिस संधि को नहीं मानेंगे. भारी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन करने वाले चीन और भारत ने भी अपना रवैया बदल लिया है. अधिकांश पश्चिमी देश अब अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करने की ओर बढ़ रहे हैं, भले ही यह बहुत धीमी गति से हो रहा हो.

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ग्रैहम लूकस

पेरिस का घोषित लक्ष्य ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकना है. यह लक्ष्य तय करना अत्यंत जरूरी था, भले ही इसे पूरा करने में अब देर हो गई हो. वैज्ञानिकों का मानना है कि सदी के अंत तक धरती का तापमान दो से तीन डिग्री तक बढ़ सकता है. इसके गंभीर नतीजे होंगे. हम अभी ही अब तक के रिकॉर्ड बाढ़, तूफान और सूखे का सामना कर रहे हैं. समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है, समुद्रतट डूब रहे हैं. इसकी वजह से लोगों का व्यापक विस्थापन हो रहा है. ये कोई संयोग नहीं है, इसकी वजह जलवायु परिवर्तन है.

पेरिस संधि जलवायु परिवर्तन की लहर को किस हद तक रोक पाएगी? दरअसल पेरिस में हुई संधि किसी पर कुछ करने की जिम्मेदारी नहीं देती. किसी खास तारीख पर जीवाश्म ऊर्जा का इस्तेमाल बंद करना तय नहीं किया गया है. कोयला और तेल जलाने वाले देशों के लिए कोई सजा तय नहीं की गई है, क्योंकि वे या तो अपने लोगों का जीवनस्तर बनाए रखना चाहते हैं या उसे बेहतर बनाना चाहते हैं. संधि पर दस्तखत करने वालों ने उत्सर्जन करने, अपना लक्ष्य तय करने और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने का संकल्प लिया है. लेकिन इसकी निगरानी कोई नहीं करेगा, किसी को संधि को नजरअंदाज करने की सजा नहीं मिलेगी.

हकीकत यह है कि पेरिस की पर्यावरण संधि छह साल पहले कोपेनहेगन की तरह विफलता नहीं है. यह सही दिशा में उठाया गया छोटा सा कदम है. कुछ साल बाद लोग पीछे मुड़कर देखेंगे और कहेंगे, "यह वह घड़ी थी जब लोगों ने महसूस किया कि दांव पर क्या है. त्रासदी यह है कि हममें उस समय और कुछ करने की हिम्मत नहीं थी."