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पेरिस समझौता, पर्यावरण की जीत

१४ दिसम्बर २०१५

पेरिस में आखिरकार धरती के तापमान को दो डिग्री से ज्यादा नहीं बढ़ने देने पर आम सहमति बन गयी. दुनिया भर की सरकारों ने इस समझौते का स्वागत किया है.

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Frankreich Cop21 Klimagipfel in Paris Avaaz Kampagne
तस्वीर: Avaaz

जलवायु परिवर्तन पर आम सहमति पर पहुंचना दुनिया भर के देशों के लिए एक बड़ी जीत बताया जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर के माध्यम से इस पर टिप्पणी की और कहा, "पेरिस समझौते में ना कोई विजेता है और ना ही किसी की हार हुई है, पर्यावरण को ले कर न्याय की जीत हुई है और हम सब एक हरे भरे भविष्य पर काम कर रहे हैं."

मोदी ने लिखा है कि जलवायु परिवर्तन अभी भी सब के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है लेकिन पेरिस समझौते ने दिखा दिया कि किस तरह दुनिया के हर देश ने मिल कर इस चुनौती से निपटने और इसका समाधान निकालने पर काम किया, "कॉप21 में हुआ मंथन और पेरिस समझौता विश्व नेताओं के साझा विवेक को दर्शाता है."

पेरिस में हुई बैठक के दौरान विकसित और विकासशील देशों के बीच रस्साकशी चलती रही और मीडिया में दोनों ओर से एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालने की कोशिशें दिखीं. न्यूयॉर्क टाइम्स के एक कार्टून पर भी काफी बवाल हुआ जिसमें भारत को रास्ते का रोड़ा बताया गया.

अब समझौता हो जाने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसके लिए बधाई दी. उन्होंने देशवासियों के नाम संदेश देते हुए कहा, "मुझे यकीन है कि पूरी दुनिया के लिए यह क्षण एक अहम मोड़ साबित होगा." ओबामा ने कहा कि यह समझौता आश्वासन देता है कि आने वाले समय में धरती बेहतर स्थिति में होगी.

जलवायु सम्मेलन की मेजबानी कर रहे फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद ने इसे "धरती के लिए एक महान दिन" का नाम दिया. उन्होंने कहा, "पिछली कई शताब्दियों में पेरिस ने कई क्रांतियां देखी हैं. आज सबसे खूबसूरत और सबसे शांतिपूर्ण क्रांति हुई." वहीं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा कि यह समझौता "धरती के भविष्य को सुरक्षित रखने की दिशा में एक बड़ा कदम है." संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कहा कि यह कदम ना केवल धरती के पर्यावरण को बचाएगा, बल्कि गरीबी का अंत करेगा और विकास को बढ़ावा देगा.

सम्मेलन के अंतिम दिनों में हुई सौदेबाजी में अहम भूमिका निभाने वाले भारत में पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इसे एक ऐतिहासिक दिन बताते हुए कहा, "आज हमने जिसे अपनाया है, वह एक समझौता ही नहीं है, सात अरब लोगों के जीवन में एक नया अध्याय है." महात्मा गांधी को याद करते हुए उन्होंने कहा, "वे कहा करते थे कि हमें यह धरती अपने पुरखों से विरासत में नहीं मिली है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों ने इसे हमें कर्ज पर दिया है."

हालांकि नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने समझौते को "कमजोर और बिना महत्वाकांक्षाओं वाला" बताया है. सीएसई का कहना है कि समझौते में कोई भी "महत्वपूर्ण लक्ष्य" नहीं हैं और इसमें विकसित देशों की पुरानी गलतियों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया है. सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, "विकासशील देशों से वायदे कराए गए हैं, जबकि विकसित देशों ने अतीत में जिस तरह से जलवायु परिवर्तन किया, उन पर से वह जिम्मेदारी पूरी तरह से हटा दी गयी है."

दुनिया भर के 195 देशों ने इस पर्यावरण समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. इस पर ग्रीनपीस इंटरनेशनल का कहना है, "कभी कभी ऐसा लगता है कि संयुक्त राष्ट्र के देश किसी भी मुद्दे पर एकमत नहीं हो सकते लेकिन यहां करीब दो सौ देश एक साथ आ कर एक समझौते पर राजी हुए हैं." ग्रीनपीस ने इसे "विज्ञान की जीत" बताया है, तो चीन ने "अंतरराष्ट्रीय सहयोग में एक नई शुरुआत".

आईबी/एमजे (पीटीआई)