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प्रेस स्वतंत्रता पर हमला

मार्टिन मूनो३१ जुलाई २०१५

जर्मनी की घरेलू खुफिया एजेंसी इंटरनेट की निगरानी के मामले में सक्रिय हुई है. लेकिन आरोप खुफिया एजेंटों पर नहीं बल्कि पत्रकारों पर लगाए गए हैं, इसे डॉयचे वेले के मार्टिन मूनो स्कैंडल बताते हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Armer

हम वैश्विक निगरानी के काल में रह रहे हैं, यह ऐसा कड़वा सच है जो एडवर्ड स्नोडेन के खुलासे के बाद से हर घड़ी हमारे साथ रहता है. और इस निगरानी से किसी को भी छूट नहीं है, यह हम तब से जानते हैं जब से पता चला कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी एनएसए जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के मोबाइल फोन की टैपिंग कर रही थी.

इस कांड के सिलसिले में यह अस्पष्ट रहा कि जर्मन सरकार को एनएसए की गतिविधियों के बारे में कितना पता था और इस जासूसी को किस हद तक बर्दाश्त कर रही थी या उसका समर्थन कर रही थी. सिर्फ यह संदेह ही कि सरकार विदेशी सत्ता को अपने ही नागरिकों की जासूसी करने में मदद कर रही है, चौंकाने वाली घटना है जिसकी पूरी जांच होनी चाहिए.

Deutsche Welle Martin Muno
मार्टिन मूनोतस्वीर: DW

लेकिन महाधिवक्ता हाराल्ड रांगे ने इस मामले की आधे मन से जांच की और जल्दबाजी में जांच बंद कर दी. अब नई जांच हो रही है. संघीय अभियोक्ता कार्यालय ने नेत्सपोलिटीक डॉट ओआरजी के पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह के संदेह में जांच शुरू की है. इस पोर्टल ने इंटरनेट की निगरानी की घरेलू खुफिया एजेंसी की योजना के बारे में दो लेखों में लिखा था. इसके अलावा खुफिया एजेंसी के दस्तावेजों के ऐसे हिस्से प्रकाशित किए गए जिन्हें गोपनीय का दर्जा दिया गया था. आरोप घरेलू खुफिया एजेंसी ने लगाए हैं.

राज्य को खतरा

यहां स्कैंडल की बात करना बहुत संयमित प्रतिक्रिया है. यदि घरेलू खुफिया एजेंसी सम्मानित नागरिक की जासूसी करने वाले के खिलाफ कुछ नहीं करती लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई करती है जो इस मामले को सार्वजनिक करते हैं, तो वह लोकतांत्रित कानूनसम्मत राज्य के विचार की रक्षा नहीं कर रहा बल्कि उसे खतरा पहुंचा रहा है.

ऐसा लगता है कि 2015 में इस बात की ओर खुलकर ध्यान दिलाना होगा कि निजता की अलंघनीयता इस कानूनसम्मत राज्य का उसी तरह अहम हिस्सा है, जिस तरह प्रेस की स्वतंत्रता. यदि खुफिया सेवा और संघीय अभियोक्ता कार्यालय पत्रकारों के खिलाफ इतनी गंभीर कार्रवाई करते हैं तो यह प्रेस की स्वतंत्रता पर भारी हमले के अलावा और कुछ नहीं.

श्पीगेल कांड 2.0

यह मामला राजद्रोह के आरोप के कारण और खटास वाला हो गया है. इस तरह का आखिरी मुकदमा 50 साल पहले हुआ था और वह भी आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के खिलाफ था और आखिरकार तथाकथित श्पीगेल कांड का कारण बना. समाचार साप्ताहिक डेय श्पीगेल में 1962 में एक लेख छपा जिसमें तत्कालीन जर्मन सरकार की शस्त्रीकरण नीति के बारे में लिखा गया था. उसके बाद कई पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह के आरोप में जांच चली, कुछ को गिरफ्तार कर लिया गया. प्रकाशक रूडोल्फ ऑग्श्टाइन 103 दिनों तक जेल में रहे.

तत्कालीन चांसलर कोनराड आडेनावर की सरकार पुलिस की कार्रवाई को उचित ठहराती रही, जबकि उसके खिलाफ कई जगहों पर विरोध और प्रदर्शन हुए. इस कांड का नतीजा अब ज्ञात है. दो राज्य सचिवों को नौकरी गंवानी पड़ी जबकि रक्षा मंत्री फ्रांत्स योजेफ श्ट्राउस को इस्तीफा देना पड़ा. इस घटना से जर्मनी में प्रेस की स्वतंत्रता स्थायी रूप से मजबूत हुई. यह उम्मीद की जा सकती है कि श्पीगेल कांड 2.0 का भी ऐसा ही नतीजा होगा.