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जाने वो कैसे लोग थे..

१६ जून २०१४

फिल्म जगत को अपनी मधुर संगीत लहरियों से सजाने संवारने वाले महान संगीतकार और पाश्र्व गायक हेमंत कुमार मुखोपाध्याय उर्फ हेमंत दा के गीत आज भी फिजा में गूंजते महसूस होते हैं. उनके जन्मदिन के मौके पर उनके जीवन का सफर.

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'Pyaasa' 1957 VERWENDUNG ALS BILDZITAT
1957 में रिलीज हुई फिल्म प्यासा का गाना आज भी लोगों की आंखें नम कर देता है.तस्वीर: Guru Dutt Films

"जाने वो कैसे लोग थे, जिनके प्यार को मिला," "तुम पुकार लो, तुम्हारा इंतजार है," "न तुम हमें जानो, ना हम तुम्हें जानें," जैसे गीतों के साथ हेमंत कुमार सबके दिलों में अपनी छाप छोड़ गए.

आकाशवाणी से की शुरुआत

16 जून 1920 को बनारस में जन्में हेमंत कुमार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के मित्रा इंस्टीट्यूट से पूरी की. इंटर की परीक्षा पास करने के बाद हेमंत कुमार ने जादवपुर विश्वविद्यालय मे इंजीनियरिंग मे दाखिला ले लिया. लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी क्योंकि उस समय उनका रुझान संगीत की ओर हो गया था और वे संगीतकार बनना चाहते थे.

इस बीच हेमंत कुमार ने साहित्य जगत में भी अपनी पहचान बनानी चाही और बांगला पत्रिका "देश" में उनकी एक कहानी भी प्रकाशित हुई. लेकिन 1930 के अंत तक उन्होंने अपना पूरा ध्यान संगीत की ओर लगाना शुरू कर दिया. अपने बचपन के दोस्त सुभाष की मदद से 1930 में उन्हें आकाशवाणी के लिए अपना पहला बांगला गीत गाने का मौका मिला. हेमंत कुमार ने संगीत की अपनी प्रारंभिक शिक्षा एक बांगला संगीतकार शैलेश दत्त गुप्ता से ली. बाद में उन्होंने उस्ताद फैयाज खान से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा भी ली.

कितना दुख भुलाया तुमने

1937 में शैलेश दत्त गुप्ता के संगीत निर्देशन में एक विदेशी संगीत कंपनी "कोलंबिया लेबल" के लिए हेमंत कुमार ने गैर फिल्मी गीत गाए. इसके बाद उन्होंने लगभग हर वर्ष "ग्रामोफोनिक कंपनी ऑफ इंडिया" के लिए अपनी आवाज दी. इसी कंपनी के लिए 1940 में कमल दास गुप्ता के संगीत निर्देशन में हेमंत कुमार को अपना पहला हिन्दी गाना "कितना दुख भुलाया तुमने" गाने का मौका मिला. और फिर 1941 में एक बांगला फिल्म के लिए उन्होंने अपनी आवाज दी.

1944 में एक गैर फिल्मी बांगला गीत के लिए हेमंत कुमार ने संगीत दिया. इसी साल पंडित अमर नाथ के संगीत निर्देशन में उन्हें अपनी पहली हिन्दी फिल्म "इरादा" में गाने का मौका मिला. इसके साथ ही 1944 में रवींद्र संगीत के लिए भी उन्होंने गाने रिकॉर्ड किए. फिर 1947 में बांगला फिल्म "अभियात्री" के लिए बतौर संगीतकार काम किया. इस बीच हेमंत कुमार भारतीय जन नाट्य संघ "इप्टा" के सक्रिय सदस्य के रूप में काम करने लगे. धीरे धीरे वे बांगला फिल्मों में बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाते चले गए.

मन डोले मेरा तन डोले

कुछ समय बाद निर्देशक हेमेन गुप्ता मुंबई आ गए और उन्होंने हेमंत कुमार को भी मुंबई आने का न्यौता दिया. 1951 मे फिल्मिस्तान के बैनर में बनने वाली अपनी पहली हिन्दी फिल्म "आनंद मठ" के लिए हेमेन गुप्ता ने हेमंत कुमार से संगीत देने की पेशकश की. फिल्म की सफलता के बाद हेमंत कुमार बतौर संगीतकार फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए. इस फिल्म में लता मंगेश्कर की आवाज में गाया हुआ "वंदे मातरम" आज भी श्रोताओं को भावावेश में ला देता है.

1954 में हेमंत कुमार के संगीत से सजी फिल्म "नागिन" की सफलता के बाद वे सफलता के शिखर पर पहुंच गए. फिल्म नागिन का गीत "मन डोले मेरा तन डोले" आज भी काफी लोकप्रिय है. इस फिल्म के लिए हेमंत कुमार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्मफेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए.

1959 में उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा और "हेमंता बेला प्रोडक्शन" नाम की फिल्म कंपनी की स्थापना की. इसके बैनर तले उन्होंने मृणाल सेन के निर्देशन में एक बांगला फिल्म "नील आकाशेर नीचे" बनाई. इस फिल्म को प्रेसिडेंट गोल्ड मेडल दिया गया. 1971 में हेमंत कुमार ने एक बांगला फिल्म "आनंदिता" का निर्देशन भी किया लेकिन यह फिल्म बॉक्स आफिस पर बुरी तरह से नकार दी गयी. 1979 में उन्होंने चालीस और पचास के दशक में सलिल चौधरी के संगीत निर्देशन में गाए गानों को दोबारा रिकॉर्ड कराया और उसे "लीजेंड ऑफ ग्लोरी" के रूप में रिलाज किया. यह एलबम काफी सफल रही.

ये हेमंत कुमार के शोहरत के साल थे. 1989 में वे बांगलादेश के ढाका में "माइकल मधुसूधन अवॉर्ड" लेने गए. वहां से भारत लौटने के बाद उन्हें दिल का दौरा पड़ा और 26 सिंतबर 1989 को वे इस दुनिया को अलविदा कह गए. उनके गीत आज भी फिजा में गूंजते महसूस होते हैं.

आईबी/एमजी (वार्ता)