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फिर छाए सोशल मीडिया में मोदी

कुलदीप कुमार८ अक्टूबर २०१४

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के चार महीने बाद सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना के स्वर मुखर होने लगे हैं. प्रांतीय चुनावों के प्रचार में उनके शामिल होने के बाद उनके वायदों की चुटकियां ली जा रही है.

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Modi Rede in Madison Square Garden 28.09.2014 New York
तस्वीर: Reuters/Lucas Jackson

नरेंद्र मोदी को भारत का प्रधानमंत्री बने लगभग साढ़े चार महीने हो चुके हैं. भारत के चुनावी इतिहास में ऐसा जबर्दस्त और सुनियोजित चुनाव प्रचार कभी नहीं देखा गया जैसा नरेंद्र मोदी का था. इस चुनाव प्रचार की विशेषता यह थी कि यह पूरी तरह से व्यक्ति-केन्द्रित था और इसके द्वारा मोदी की विराट छवि का निर्माण किया जा रहा था. जनता महंगाई और भ्रष्टाचार की मार से बेहाल थी, ऐसे में मोदी के आश्वासन उसके लिए मरहम की तरह आए और उसने उन पर विश्वास करके उन्हें वोट दिया और प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया. चुनाव प्रचार के दौरान जहां सामाजिक मीडिया पर उनके आलोचकों की संख्या बढ़ी वहीं उनके भक्तों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई. उनके दावों, आश्वासनों और वादों को जहां उनके आलोचक हवाई कह कर उन्हें ‘फेंकू' की उपाधि देते थे, वहीं उनके भक्त उनके नाम के संक्षिप्त रूप ‘न मो' को ‘नमो' बनाकर उनके प्रति नमन करते थे. इस द्वंद्व युद्ध में मोदीभक्तों को असाधारण विजय मिली.

लेकिन अब सामाजिक मीडिया पर भी और समाज एवं राजनीति में भी मोदी की आलोचना के स्वर मुखर होने लगे हैं. अपने को ‘गरीब चायवाले का बेटा' प्रचारित करके चुनाव जीतने वाले नरेंद्र मोदी का बढ़िया कपड़ों के प्रति प्रेम और दिन में कई-कई बार कपड़े बदलने का शौक अब उपहास का विषय बनता जा रहा है और लोग उन्हें ‘परिधानमंत्री' कहने लगे हैं. चुनाव प्रचार के दौरान इंटरनेट, मोबाइल फोन, सामाजिक मीडिया, डीटीएच और उपग्रह के माध्यम से आयोजित ‘चाय पर चर्चा' में इस साल 12 फरवरी को मोदी ने विदेशों में जमा काले धन की एक-एक पाई वापस लाने का वादा किया था.

उन्होंने कहा था कि सत्ता में आते ही एक विशेष कार्य बल का गठन किया जाएगा और काला धन वापस लाने के लिए कानून में जरूरी संशोधन किए जाएंगे. अगर जरूरत महसूस की गई तो नए कानून भी बनाए जाएंगे. यही नहीं, उन्होंने यह प्रलोभन भी दिया था कि जितना भी काला धन वापस आयेगा, उसका पांच या दस प्रतिशत उन ईमानदार वेतनभोगी कर्मचारियों में वितरित किया जाएगा जो सरकार को नियमित रूप से आयकर देते हैं. इसी तरह महंगाई और भ्रष्टाचार को दूर करने के वादे किए गए थे. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रोबर्ट वाड्रा द्वारा हरियाणा और राजस्थान में खरीदी गई जमीनों के सौदों में भारी घोटाले के आरोप लगाए गए थे. अब हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करते हुए नरेंद्र मोदी वही आरोप एक बार फिर लगा रहे हैं.

प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने काला धन वापस लाने के लिए एक विशेष कार्य बल का गठन तो किया, लेकिन उसके बाद से गाड़ी एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी है. महंगाई इस बीच बढ़ी है, घटी नहीं, भले ही सरकारी आंकड़े कुछ भी कहें. अंतरराष्ट्रीय बाजार के कारण पेट्रोल के दामों में जरूर कमी आई है, लेकिन इसके पहले इसके दाम कई बार बढ़ाए भी गए थे. राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. लोग पूछ रहे हैं कि अगर रोबर्ट वाड्रा इतने ही भ्रष्ट हैं तो इस सरकार ने अब तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? और अब हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव आते ही मोदी को फिर वाड्रा के भ्रष्टाचार की याद आ गई. लेकिन अब वे काले धन की बात क्यों नहीं करते?

दरअसल राजनीतिक पार्टियों के बीच एक किस्म की आपसी समझदारी है. कांग्रेस भी जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तब उनके दत्तक दामाद रंजन भट्टाचार्य के भ्रष्टाचार की बहुत बातें करती थी. लेकिन दस साल के शासन के दौरान उसने उनके खिलाफ कुछ नहीं किया. मोदी सरकार यही बर्ताव वाड्रा के साथ कर रही है. जाहिर है कि इस सबके कारण उसकी विश्वसनीयता में कमी आती जा रही है और सामाजिक मीडिया पर उनके लिए ‘फेंकू' नाम लगातार लोकप्रियता हासिल करता जा रहा है.

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