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'फिल्म ने बिगाड़ी पाकिस्तान की छवि'

२० फ़रवरी २०१३

ओसामा बिन लादेन पर बनी फिल्म जीरो डार्क थर्टी भले ही उसकी मौत के बारे में कुछ दिलचस्प चीजें बताती है, लेकिन पाकिस्तान में दर्शकों के बीच इसे लेकर विवाद छिड़ गया है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

2011 मई में अमेरिकी नेवी सील्स ने एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को उसके घर पर घेरा और उसकी मार गिराया. कैथरिन बिगलो के निर्देशन में बनी इस फिल्म में इस घटना के साथ साथ उससे पहले दस सालों की कहानी बताई गई है जिस दौरान अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ओसामा को तलाश रही थी. पटकथा लिखने वाले मार्क बोल ने पाकिस्तान में इसके लिए शोध भी किया, लेकिन पाकिस्तान में दर्शक अपने देश के इस चित्रण से काफी नाराज हैं.

पाकिस्तान को इस फिल्म में किस तरह दर्शाया गया है? सबसे पहली बात तो यह कि बिन लादेन कई सालों से पाकिस्तान में छिपा हुआ था और यह बात फिल्म में बड़े साफ तरीके से दिखाई गई है. अब भी पाकिस्तान में कई राजनीतिज्ञ और लोग इस सवाल का जवाब मांग रहे हैं कि अमेरिका ने पाकिस्तान की स्वायत्तता को अनदेखा कर कैसे उसकी जमीन पर सैन्य कार्रवाई की.

सिनेमा हॉल में नहीं

पाकिस्तान में कोई भी डिस्ट्रिब्यूटर यह फिल्म दिखाने के लिए तैयार नहीं है. सिनेमा में दिखाए जाने वाली सारी फिल्मों को सेंसर बोर्ड से अनुमति लेनी पड़ती है, लेकिन जीरो डार्क थर्टी को इसमें परेशानी हो सकती है क्योंकि सेंसर बोर्ड में पाकिस्तानी सेना के कुछ ताकतवर प्रतिनिधि शामिल हैं. फिल्म डिस्ट्रिब्यूशन का काम कर रहे जमशेद जफर कहते हैं कि इस तरह की फिल्म को लाना बेकार है क्योंकि इससे विवाद फैलेगा और उनकी पहचान को नुकसान होगा. साथ ही थियेटरों को भी परेशानी हो सकती है.

Zero Dark Thirty
तस्वीर: picture-alliance/dpa

डीवीडी पर फिल्म देखने वालों की भी कई शिकायतें हैं. अंग्रेजी अखबार डॉन में लिख रहे नदीम पराचा कहते हैं कि फिल्म में कई जगहों पर अरबी बोली गई है और पाकिस्तान में उर्दू बोली जाती है. ज्यादा से ज्यादा लोग पश्तो या कोई और भाषा बोलते हैं, लेकिन अरबी नहीं. कुछ ऐसे सीन हैं जिसमें विरोधी प्रदर्शनकारी अमेरिकी दूतावास के दरवाजों तक पहुंच गए हैं. लेकिन सच्चाई यह है कि इस्लामाबाद में अमेरिकी दूतावास एक सुरक्षित परिसर में स्थित है जहां लोग आसानी से नहीं पहुंच सकते.

कुछ जगहों में पेशावर को दिखाने की कोशिश की गई है लेकिन उन्हें देखकर लगता है जैसे 19वीं शताब्दी में दिल्ली की तस्वीरें ली गई हों. पराचा कहते हैं, "आप कैसे एक हॉलीवुड फिल्म में इतनी ऐसी गलती कर सकते हैं. फिल्म को गंभीरता से लेने के बजाय पाकिस्तान में लोग इसका मजाक उड़ा रहे हैं."

मुसीबत पैदा करती फिल्म

दर्शकों को एक और दृश्य से बेहद परेशानी हो रही है. इसमें एक पोलियो टीकाकरण करने वाले कार्यकर्ता को दिखाया गया है जिसका असली काम ओसामा के घर जाकर सीआईए के लिए उसका डीएनए लाना है. 2011 में अमेरिका हिपेटाइटिस के खिलाफ टीका अभियान चला रहा था, लेकिन आलोचक कहते हैं कि फिल्म में पोलियो टीकाकरण दिखाने से पाकिस्तान में उन सारे कार्यकर्ताओं को परेशानी हो सकती है जो पोलियो के खिलाफ अभियान चला रहे हैं. कबायली इलाकों में आतंकवादी गुटों ने वैसे ही टीका कर्मचारियों पर निशाना साध रखा है.

पाकिस्तान में अब भी लोगों को विश्वास नहीं है कि ओसामा कई सालों से इस्लामाबाद के पास एबटाबाद में रह रहा था. कॉलेज में पढ़ रहे रहील अहमद को फिल्म देखकर लगा कि यह अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की तारीफ में बनाई गई फिल्म है. "मुझे नहीं पता ओसामा यहां आया कि नहीं, लेकिन इस फिल्म को बनाकर अमेरिकियों ने हमारा नाम मिट्टी में मिला दिया है."

रिपोर्टः एमजी/एएम (एपी)

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