1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
शिक्षा

आकर्षण खो रही है इंजीनियरिंग की डिग्री

प्रभाकर मणि तिवारी
२९ जुलाई २०१९

अभी हाल तक भारतीय तकनीकी संस्थान आईआईटी और राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान एनआईटी में दाखिले को भविष्य की चाबी माना जाता था, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं.

https://p.dw.com/p/3Mto3
Indien - Indian Institute of Management Bangalore
तस्वीर: picture-alliance/robertharding/M. Cristofori

इन प्रतिष्ठित संस्थानों की एक-एक सीट के लिए हजारों परीक्षार्थी दिन-रात पसीना बहाते थे. इसकी वजह यह थी कि इन संस्थानों में दाखिला मिलना बेहतर भविष्य की गारंटी थी. लेकिन अब यह धारणा तेजी से बदल रही है. अब आईआईटी और एनआईटी जैसे संस्थान भी छात्रों को लुभाने में नाकाम साबित हो रहे हैं. एक ओर जहां इन प्रतिष्ठित संस्थानों में भी सीटें खाली रह रही हैं वहीं हजारों छात्र दाखिले और साल-दो साल की पढ़ाई के बाद बेहतर भविष्य की तलाश में दूसरे संस्थानों और पाठ्यक्रमों का रुख कर रहे हैं. बीते तीन-चार वर्षों के दौरान तस्वीर में काफी बदलाव आया है. शिक्षाविदों ने खासकर आईआईटी जैसे संस्थान में सीटें खाली रहने और छात्रों के पढ़ाई के बीच में ही संस्थान छोड़ने की बढ़ती प्रवृत्ति पर गहरी चिंता जताते हुए इसकी वजहों का पता लगाने के लिए एक व्यापक अध्ययन की वकालत की है.

ताजा स्थिति

चालू शिक्षण सत्र यानी वर्ष 2019-20 के दौरान आईआईटी, एनआईटी और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फार्मेशन टेक्नालॉजी (आईआईआईटी) जैसे संस्थानों में छह राउंड की काउंसलिंग के बावजूद 5,900 से ज्यादा सीटें खाली हैं. ऐसा नहीं है कि यह सीटें बेकार स्ट्रीम या शाखाओं या फिर नए खुले कालेजों में ही खाली हों. आईआईटी मुंबई, दिल्ली और खड़गपुर जैसे पुराने संस्थान भी खाली सीटों की मार से कराह रहे हैं. विडंबना यह है कि पहले कंप्यूटर साइंस, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, मेकेनिकल और केमिकल इंजीनियरिंग के अलावा एयरोस्पेस इंजीनियरिंग जैसे जिन विभागों में दाखिले के लिए प्रतियोगी परीक्षा में शीर्ष रैकिंग हासिल करने वाले छात्रों में गलाकाटू होड़ मची रहती थी, उन तमाम विभागों में कुछ न कुछ सीटें खाली हैं. इससे साफ है कि इंजीनियरिंग की डिग्री अब पहले जैसी आकर्षक नहीं रही और साथ ही छात्रों की प्राथमिकताएं भी बदल रही हैं.

Indien Wirtschaftskraft
तस्वीर: AP

दाखिला परीक्षा में शामिल होने वाले आवेदकों की साल दर साल घटती तादाद भी इसी ओर संकेत करती है. शीर्ष एक सौ सफल प्रतियोगियों में शुमार कई छात्र अब इंजीनियरिंग की पारंपरिक डिग्री की जगह भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरू से शोध करने या फिर विदेशी विश्वविद्यालयों में अपने पसंदीदा विषय की पढ़ाई व शोध को तरजीह दे रहे हैं. प्लेसमेंट के दौरान बेहतर नौकरी नहीं मिलना भी इंजीनियरिंग के प्रति घटते आकर्षण की एक प्रमुख वजह है. कई मामलों में पसंदीदा कॉलेज या कोर्स में दाखिला नहीं मिलना भी छात्रों के इन शीर्ष संस्थानों से मुंह मोड़ने की प्रमुख वजह है. लाखों छात्र अब कानून की डिग्री के अलावा चार्टर्ड अकाउंटेंट या कंपनी सेक्रेटरीशिप की पढ़ाई कर रहे हैं.

तमाम प्रमुख आईआईटी'ज में जो सीटें खाली हैं वह ओपन कैटेगरी की हैं. यानी वहां आवेदक तो हैं लेकिन वह उन कालेजों या पाठ्यक्रमों में पढ़ना नहीं चाहते. आईआईटी खड़गपुर के निदेशक पार्थ प्रतिम चक्रवर्ती कहते हैं, "सीटें खाली रहने की कई वजहें हो सकती हैं. कई छात्र कालेज को तरजीह देते हैं तो कई अपने पसंदीदा पाठ्यक्रम को. ऐसी स्थिति में पसंदीदा कालेज या पाठ्यक्रम नहीं मिलने की स्थिति में वह लोग दूसरे कालेजों या विदेशों का रुख कर रहे हैं.”

बीच में ही छोड़ रहे पढ़ाई

देश के इन शीर्ष तकनीकी संस्थानों में मझधार में ही पढ़ाई छोड़ कर जाने वाले छात्रों की बढ़ती तादाद भी शिक्षाविदों की चिंता का विषय बन गया है. केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से बीते सप्ताह संसद में पेश आंकड़ों में बताया गया था कि देश के 23 आईआईटी'ज में बीते दो वर्षों के दौरान बीच में ही पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों की तादाद 2400 से ज्यादा रही है. इनमें से लगभग आधे सामान्य वर्ग के हैं. कई कालेजों में तो 80 लोगों के बैच में से 60 या उससे ज्यादा छात्र विभिन्न वजहों से संस्थान छोड़ देते हैं. उसके बाद पूरे पाठ्यक्रम के दौरान बचे-खुचे छात्रों के साथ ही कक्षाएं चलती हैं.

Indien Mitarbeiter der Bosch Ltd in Bangalore
तस्वीर: imago/photothek

मानव संसाधन मंत्रालय ने संसद में बताया कि इस मामले को गंभीरता से लेकर तस्वीर में सुधार के लिए संस्थानों से जरूरी कदम उठाने की सिफारिश की गई है. शिक्षाविदों का कहना है कि आईआईटी जैसे संस्थान में पढ़ाई बीच में छोड़ने की कई प्रमुख वजहें हैं. बी टेक में दाखिला लेने वाले कई छात्र हिंदी या दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ाई के बाद इन संस्थानों में पहुंचते हैं. यहां अंग्रेजी की पढ़ाई और विस्तृत पाठ्यक्रम की वजह से उनको दिक्कत होती है. उनमें से ज्यादातर हीन भावना का शिकार होने लगते हैं और आखिर में कॉलेज छोड़ जाते हैं. इन संस्थानों में दाखिले के लिए कोचिंग संस्थान उनको एक खास तरीके से प्रशिक्षण देते हैं. उसके बाद ऐसे छात्र दाखिले के लिए होने वाली परीक्षा तो पास कर लेते हैं. लेकिन आगे चल कर जब उनका सामना पुस्तकों के पहाड़ से होता है तो उनकी हिम्मत जवाब दे जाती है.

जादवपुर विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर अंबिकेश महापात्र कहते हैं, "इन संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों पर मां-बाप व परिजनों का भारी दबाव होता है. कई छात्र ऐसे विषयों में दाखिला ले लेते हैं जो उनको पसंद नहीं है. नतीजतन आगे चल कर उनकी दिलचस्पी खत्म हो जाती है.” वह बताते हैं कि प्लेसमेंट अब पहले जैसा आकर्षक नहीं होने की वजह से साल-दो साल बाद छात्रों का मोहभंग हो जाता है और वह बेहतर करियर के लिए दूसरे विकल्प तलाशने लगते हैं. आईआईटी खड़गपुर के निदेशक चक्रवर्ती बताते हैं, "एम टेक और पीएचडी करने वाले छात्र सरकारी नौकरी मिल जाने की वजह से ही बीच में पढ़ाई छोड़ देते हैं.”

शिक्षाविद् प्रोफेसर मनोरंजन माइती कहते हैं, "छात्रों के आईआईटी छोड़ने की वजहों का पता लगाने के लिए एक व्यापक अध्ययन जरूरी है. इसकी कई वजहें हो सकती हैं. एक बार उन वजहों की पहचान के बाद आईआईटी जैसे संस्थान को अपनी उन कमियों को दूर करने की दिशा में ठोस पहल करनी होगी. ऐसा नहीं होने की स्थिति में इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना मुश्किल होगा.” वह कहते हैं कि यह सवाल आईआईटी जैसे विश्वस्तरीय संस्थानों की साख से भी जुड़ा है. इसलिए इसका हल शीघ्र तलाशना होगा.

_______________

हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

 

जर्मनी के 10 शहर जहां सबसे ज्यादा छात्र पढ़ते हैं