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फीकी होती दार्जिलिंग चाय

१६ अगस्त २०१३

अलग गोरखालैंड राज्य की मांग में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में चलने वाले आंदोलन, इस मुद्दे पर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा और बैनर्जी सरकार की खींचतान के कारण मशहूर दार्जिलिंग चाय की चुस्की फीकी पड़ रही है.

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तस्वीर: Fotolia/Grafvision

आंदोलन से चाय उद्योग को भारी नुकसान हो रहा है. हालांकि इसे आंदोलन के दायरे से बाहर रखा गया है. लेकिन तैयार माल न तो बाहर जा पा रहा है और न ही दूसरी जरूरी चीजें चाय बागानों में पहुंच रही हैं. इससे सालाना 400 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाला यह उद्योग अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है.

इलाके के बागान

दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में लगभग 87 चाय बागान हैं. इनमें सालाना एक करोड़ किलो चाय पैदा होती है और उसका दो तिहाई से ज्यादा हिस्सा अमेरिका और यूरोप समेत दुनिया के विभिन्न देशों को निर्यात किया जाता है. आंदोलनकारियों ने चाय उद्योग को बंद और जनता कर्फ्यू के दायरे से बाहर रखा है. पत्तियां तोड़ने के बावजूद उस चाय की प्रोसेसिंग नहीं हो रही है. जो चाय तैयार हो रही है, वह गोदामों में पड़ी है क्योंकि वाहनों की आवाजाही ठप है. दार्जिलिंग टी एसोसिएशन (डीटीए) के महासचिव कौशिक बसु कहते हैं, "बागानों में राशन और डीजल का स्टॉक खत्म हो गया है. ज्यादातर बागानों के पास अपना कैप्टिव पावर प्लांट है. लेकिन उसके लिए ईंधन नहीं पहुंच पा रहा है." अगस्त का महीना इन चाय बागानों में सेकेंड फ्लश का सीजन होता है. इस दौरान बढ़िया किस्म की लगभग साढ़े सात किलो चाय पैदा होती है. लेकिन आंदोलन ने उद्योग के तमाम समीकरण गड़बड़ा दिए हैं.

Darjeeling Tee
ज्यादातर बागानों के पास अपना कैप्टिव पावर प्लांट है, लेकिन उसके लिए ईंधन नहीं पहुंच पा रहा है.तस्वीर: DW/P. Mani Tewari

अब गोरखा मोर्चा ने स्वाधीनता दिवस के मौके पर 15 अगस्त से आंदोलन में चार दिनों की छूट दी है. इस दौरान चाय उद्योग लगभग 13 लाख किलो चाय कोलकाता भेजने का प्रयास कर रहा है ताकि वहां से उसे विदेशों तक भेजा जा सके. बसु कहते हैं, "चाय उद्योग को इस हालत से उबारने के लिए सरकार का हस्तक्षेप जरूरी है."

कीमतों में वृद्धि

दार्जिलिंग टी एसोसोएशन के अध्यक्ष एसएस बगड़िया कहते हैं, "सप्लाई संकट की वजह से पिछले दो सप्ताह के दौरान इस चाय की थोक कीमतों में 10 फीसदी का इजाफा हो चुका है." बेहतर किस्म की दार्जिलिंग चाय की अंतरराष्ट्रीय बाजार में थोक कीमत 213 अमेरिकी डालर प्रति किलो तक है. भारत में इस चाय की औसत कीमत 375 रुपए प्रति किलो है जबकि दूसरे इलाकों में पैदा होने वाली चाय की औसत कीमत 215 रुपए किलो है. इंडियन टी एसोसिएशन के अध्यक्ष ए.एन.सिंह कहते हैं, "लंबे समय तक भंडारण से इस चाय की क्वालिटी खराब हो जाती है. अममून तैयार होने के तुरंत बाद इस चाय को कोलकाता और वहां से विदेशों में भेज दिया जाता है." पिछले साल जनवरी से मार्च के मुकाबले इस साल इस दौरान इस चाय का निर्यात 3 करोड़ 37 किलो बढ़ कर करीब छह करोड़ किलो तक पहुंच गया था. बगड़िया कहते हैं, "समय पर चाय की डिलीवरी नहीं होने की वजह से विदेशी खरीददार हाथ खींच सकते हैं और इससे दार्जिलिंग चाय की साख पर बट्टा लग सकता है. इसका दूरगामी असर होगा."

Darjeeling Tee
पिछले दो सप्ताह के दौरान इस चाय की थोक कीमतों में 10 फीसदी का इजाफा हो चुका है.तस्वीर: DW/P. Mani Tewari

बागान बंद होने का खतरा

इस आंदोलन और चाय की खेप बागानों से बाहर नहीं जाने की वजह से कुछ बागानों के सामने बंदी का खतरा पैदा हो गया है. डीटीए के सचिव संदीप मुखर्जी कहते हैं, "मौजूदा हालात में कुछ बागानों को बंद करना पड़ सकता है. बागानों में जरूरी चीजें भी नहीं पहुंच रही हैं. हम इसी सप्ताह परिस्थिति पर विचार के बाद इस मुद्दे पर फैसला करेंगे." इन बागानों में मजदूरों को मजदूरी का भुगतान साप्ताहिक तौर पर किया जाता है. लेकिन बैंक बंद होने की वजह से बागानों के पास नकदी भी खत्म हो रही है. मुखर्जी कहते हैं, "समय पर भुगतान नहीं होने की हालत में कानून व व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है."

चाय बागान सूत्रों के मुताबिक, हरी पत्तियों को लंबे समय तक रखना मुश्किल है. वैसी स्थिति में उनकी प्रोसेसिंग से पहले नमी हटानी पड़ती है. इसमें आने वाले खर्च की वजह से उत्पादन लागत बढ़ने का अंदेशा है. डीटीए का अनुमान है कि अब तक इस उद्योग को 15 करोड़ का नुकसान हो चुका है. आंदोलन लंबा खिंचने की स्थिति में रोजाना औसतन दो से तीन करोड़ रुपए का नुकसान होगा. ऐसे में अगर सरकार ने इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया तो निकट भविष्य में दार्जिलिंग चाय की चुस्की के और कड़वी होने का अंदेशा है.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः आभा मोंढे

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