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फुकुशिमा हादसे के दो साल

११ मार्च २०१३

हादसा बड़ा है या उसकी परछाईं, यह उस परछाईं के अंधेरे में दबे लोगों से बेहतर कौन बता सकता है. फुकुशिमा के दाइची न्यूक्लियर प्लांट हादसे को दो साल बीत चुके हैं लेकिन उसकी कालिख हल्की पड़ी है या नहीं, जाना डॉयचे वेले ने.

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तस्वीर: Japan pool/AFP/Getty Images

11 मार्च 2011 को पहले भूकंप और फिर सूनामी के आने के बाद जापान के फुकुशिमा दाइची परमाणु ऊर्जा घर में धमाका हुआ. फुकुशिमा में हुए इस हादसे को चेरनोबिल के बाद दुनिया का दूसरा सबसे भयानक परमाणु हादसा माना जाता है. जापान सरकार का कहना है कि विकिरण के कारण हुए प्रदूषण का असर बहुत ज्यादा नहीं है. लेकिन देश में कुछ स्वैच्छिक संगठन सरकारी आंकड़ों पर सवाल उठा रहे हैं.
फुकुशिमा से कुछ ही दूरी पर रहने वाली यूको हिरोनो ने डॉयचे वेले को बताया कि जब उन्होंने पहली बार टीवी पर परमाणु रिएक्टरों में विस्फोट होते देखा तो उन्हें लगा कि वह कोई फिल्म देख रही हैं, "उसे देख कर मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह सच है. लेकिन फिर मैने खुद को विश्वास दिलाया और वास्तविकता से सोचने की कोशिश की कि कैसे मैं अपनी और अपने परिवार की हिफाजत करूं."

खराब स्थिति
इस हादसे के बाद हिरोनो बेटी के साथ अपने पति के शहर ग्लासगो चली गईं. वह बताती हैं कि आज भी स्थिति में कोई सुधार नहीं है. विकिरण का असर खासकर जापान के उत्तर पूर्वी इलाके के लोगों पर पड़ रहा है. कई संगठन तो अब खुद ही हादसे के प्रभाव की छानबीन कर रहे हैं और आंकड़े इंटरनेट पर साझा कर रहे हैं.
टोयोटो स्थित सिटिजेंस न्यूक्लियर इंफरमेशन सेंटर (सीएनआइसी) के प्रवक्ता हजीमे मात्सुकुबो बताते हैं, "हमें लगता है ऐसे प्रदूषित वातावरण में रहना लोगों की जिंदगी के लिए खतरनाक है." स्वतंत्र रिपोर्टों के हवाले से उन्होंने कहा कि फुकुशिमा और कोरियामा में लोग अभी भी विकिरण के प्रभाव झेल रहे हैं, "इंटरनेशनल कमिशन ऑन रेडियोलॉजिकल प्रोटेक्शन के अनुसार अगर खतरा बहुत नहीं भी है तो भी लोगों को इसे स्वीकार नहीं करना चाहिए. हालांकि वैज्ञानिक, डॉक्टर और सरकार सभी उन्हें बता रहे हैं कि वे सुरक्षित हैं, लेकिन लोगों के मन में लगातार डर बना हुआ है."

Bildergalerie Fukishima radioaktiver Müll
तस्वीर: picture alliance/AP Photo

प्रभाव गहरे हैं
सीएनआइसी जल्द ही सभी संगठनों के आंकड़ों को एक जगह मुहैया कराने की सोच रही है ताकि खेती के इलाकों पर विकिरण के प्रभावों को बेहतर रूप से समझा जा सके. हालांकि जानकारों का मानना है कि विकिरण के जमीन की अंदरूनी तह तक उतरने में करीब पांच साल लग जाते हैं, जहां आलू जैसी सब्जी उगती है. यानि ऐसा भी हो सकता है कि फिलहाल रिपोर्ट में प्रभाव उतने खतरनाक न दिखें जितने कि वे आगे जाकर हो सकते हैं.
फेसबुक पर विकिरण से जुड़ी जानकारी मुहैया करा रहे एक संगठन टोक्यो रेडिएशन लेवेल्स के एंटोनियो पोर्टेला कहते हैं, "पहले साल हुई गलतियों में सुधार आया है. अब दूषित सामान को सुपरबाजार पहुंचने से पहले ही रोक दिया जाता है." वह मानते हैं कि अगर सरकार की तरफ से ही सही जानकारी मिले तो खाने पीने की चीजों में विकिरण का कितना असर हुआ है इसका अंदाजा बेहतर रूप से लग सकेगा.

डर पर जीत
जानकारों का मानना है कि इन इलाकों में लोगों की वापसी के लिए सबसे पहले दिल से डर का निकलना जरूरी है. जापान में रहने वाले इंजीनियर जो मोरॉस का कहना है कि लोगों को पता ही नहीं है कि खतरा कितना टला है, या फिर वे सुरक्षित हैं भी या नहीं. कई लोगों को यह भी लगता है कि सरकार को लोगों की सेहत से ज्यादा अर्थव्यवस्था में दिलचस्पी है, "मैं अकसर लोगों को अपने घरों की खिड़कियां साफ करते देखता हूं. वे खिड़कियों पर चढ़ी सीजियम की तह साफ करने की कोशिश करते हैं. हां सफाई के बाद वह थोड़ा बेहतर दिख सकता है लेकिन इससे सीजियम का असर कम नहीं हो जाता. उसके लिए पूरी ऊपरी परत ही खुरच कर उतार देने की जरूरत है. सीजियम को झाड़ू से साफ नहीं किया जा सकता." ऐसा कई जगहों पर किया भी गया है.


रिपोर्ट: यूलियान रायल/एसएफ
संपादन: ईशा भाटिया

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