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फुटबॉल के दीवाने जर्मनी में शरणार्थी लाए क्रिकेट

६ मई २०१६

जर्मनी पहुंच रहे शरणार्थियों में सबसे ज्यादा चर्चा सीरिया से आने वाले लोगों की है. लेकिन दरअसल पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भी बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंच रहे हैं और अपने साथ ला रहे हैं क्रिकेट का खुमार.

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Bangladesch World T20 cricket tournament - Team Pakistan - Shahid Afridi
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Uz Zaman

हालांकि इंग्लैंड जर्मनी से बहुत दूर नहीं है लेकिन क्रिकेट यहां के लोगों के करीब कभी नहीं पहुंच सका. अब शरणार्थियों के आने से देश में हालात बदल रहे हैं. पाकिस्तान और अफगानिस्तान से जर्मनी आए लोग अधिकारियों से पूछ रहे हैं कि क्रिकेट खेलने के लिए कहां जाएं. आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 2015 में जर्मनी में असायलम का आवेदन भरने वाले कुल 4,76,649 लोगों में से 31,902 अफगानिस्तान के थे और 8,472 पाकिस्तान के. ये लोग जर्मनी के क्रिकेट संघ डीसीबी को संदेश भेज रहे हैं और लगातार सवाल कर रहे हैं, "मैं कहां पर क्रिकेट खेल सकता हूं?"

डीसीबी के अध्यक्ष ब्रायन मैंटल बताते हैं कि डीसीबी की वेबसाइट (www.cricket.de) पर उन्हें लगातार लोगों के संदेश आ रहे हैं, जो उनसे देश में नए क्रिकेट क्लब स्थापित करने की गुजारिश कर रहे हैं. इंग्लैंड के मैंटल 2012 से डीसीबी के साथ जुड़े हुए हैं. उस समय देश में 70 टीमें हुआ करती थीं और 1500 क्रिकेट खिलाड़ी थे. इस बीच यहां 205 टीमें, 100 क्लब और 4,000 क्रिकेटर मौजूद हैं.

एक पिच का खर्च 10,000 यूरो

मैंटल ने समाचार एजेंसी एएफपी से बात करते हुए बताया, "हमें हर दिन पांच इंक्वायरी मिल रही हैं. अधिकतर सामाजिक कार्यकर्ता हमसे संपर्क करते हैं. इन लोगों ने पहले कभी क्रिकेट के बारे में नहीं सुना था और अब अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आए शरणार्थी उन्हें इस बारे में बता रहे हैं." मैंटल ने बताया कि इन लोगों को वॉलीबॉल और फुटबॉल के विकल्प भी दिए गए लेकिन उन्होंने इससे इंकार कर दिया.

देश में बने नए क्रिकेट क्लब को सामान मुहैया कराने के लिए कुछ पुराने क्लबों और ब्रिटेन के क्रिकेट संघ ने भी मदद दी है. मैंटल बताते हैं कि उन्होंने हाल ही में बल्ले, गेंद इत्यादि से भरा 400वां डिब्बा भेजा है. लेकिन अब इसके बाद उनके पास मदद करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है, "यह आखिरी बक्सा था, अब हम नए प्रायोजकों की तलाश में हैं."

किसी भी नए क्रिकेट क्लब के लिए सबसे बड़ी चुनौती है खेलने के लिए एक बड़ा मैदान खोजना और फिर उस पर पिच तैयार करना. मैंटल के अनुसार एक पिच तैयार करने में 10,000 यूरो का खर्च आता है. इसे देखते हुए आईसीसी ने डीसीबी को 15,000 यूरो अतिरिक्त राशि देने का फैसला किया है.

समेकन का बेहतरीन जरिया

इन बदलावों से 44 वर्षीय मैंटल काफी खुश नजर आ रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में जर्मनी भी क्रिकेट के लिए जाना जाएगा. वह बताते हैं, "सबसे बड़ी दिक्कत है शरणार्थियों को जर्मन भाषा सिखाना. लेकिन देखा जाए तो यह समेकन का एक बेहतरीन जरिया हो सकता है. फिलहाल हमारी राष्ट्रीय अंडर-19 क्रिकेट टीम में आधे खिलाड़ी अफगानिस्तान के ही हैं और आने वाले समय में यह संख्या और भी बढ़ेगी."

हो सकता है कि कुछ सालों में जर्मनी की टीम भी भारत में टी20 जैसे मुकाबले खेलती नजर आए. मैंटल कहते हैं, "भविष्य को ले कर मैं उत्साहित हूं लेकिन संसाधनों की कमी के चलते दिक्कत तो होगी ही."

आईबी/एमजे (एएफपी)