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फुटबॉल में बढ़ती हिंसा

१६ जुलाई २०१३

जर्मन बुंडेसलीगा अपने अच्छे खेल और आर्थिक मजबूती के लिए जाना जाता है, लेकिन निचले स्तर के लीग मैचों में सिर्फ प्रतिस्पर्धा नहीं होती. वे तू तू मैं मैं, गाली गलौज और आक्रामकता के केंद्र भी हैं जो कभी कभी हिंसक हो जाता है.

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तस्वीर: Getty Images

जर्मनी में बच्चों का एक दोस्ताना फुटबॉल मैच अचानक हिंसक मारपीट में बदल गया. एफ-युवा टूर्नामेंट देख रहे बालिग दर्शक अचानक एक दूसरे पर टूट पड़े, हाथापाई, मुक्केबाजी से लेकर एक दूसरे पर बोतलों से भी हमले किए गए. मैच खेल रहे सात आठ साल के बच्चे अवाक थे, वे डरकर मैदान से भाग गए. टूर्नामेंट के आयोजक फ्रांक नोवाक कहते हैं, "पल भर में मामला हिंसक हो गया."

मैदान पर पुलिस को बुलाना पड़ा. पुलिस के अनुसार हिंसक झगड़े में 15 लोग शामिल थे और उनमें एक गंभीर रूप से घायल हुआ. मैच के दौरान रेफरी की एक सीटी झगड़ा शुरू होने की वजह थी, लेकिन मौके पर मौजूद लोगों की मानें तो फुटबॉल का मैच संयोग से विवाद का मंच बन गया. इसके विपरीत नोवाक कहते हैं, "मैं नहीं बता सकता कि झगड़ा क्यों शुरू हुआ. मैंने आज तक ऐसा कुछ नहीं देखा है."

Dortmund Schalke Fankrawalle Derby Ausschreitungen 20.10.2012
तस्वीर: picture-alliance/dpa

पेशेवर फुटबॉल में दंगे, बिना इजाजात पटाखे छोड़ना या हुड़दंग आम हो चुके हैं, लेकिन इस बीच हिंसा गैरपेशेवर खेल को भी अपनी चपेट में ले रही है. रेफरी पर थूका जाता है, उसका अपमान किया जाता है और कभी कभी तो इतनी पिटाई की जाती है कि उसे अस्पताल में दाखिल करना पड़ता है. कभी खेल रहे खिलाड़ी तो कभी दर्शक एक दूसरे से उलझ पड़ते हैं. मैच को रोकना पड़ता है.

बढ़ती हिंसा पर जर्मन फुटबॉल लीग भी चिंतित है. हालांकि गैरपेशेवर फुटबॉल के लिए संघ के निदेशक विली हिंक कहते हैं, "मामलों की कुल संख्या नहीं बढ़ी है, लेकिन संभवतः उसकी क्वालिटी अलग हो गई है, हिंसा की सीमा पार करने की तैयारी बढ़ी है, पूरे समाज की तरह." यही राय रेफरियों के प्रतिनिधि एरहार्ड ब्लेजी की भी है, "ज्यादा निश्चित तौर पर नहीं हुआ है. लेकिन आजकल झगड़ों में क्रूरता आ गई है. पहले जब कोई जमीन पर गिर जाता था, झगड़ा रुक जाता था, अब तो उसके बाद सही में शुरू होता है."

इसकी मिसाल जर्मनी के अलावा दूसरे यूरोपीय देशों में भी दिखती है. नीदरलैंड्स में दिसंबर में एक रेफरी की किशोरों ने पिटाई कर दी थी, उसके बाद उसकी मौत हो गई. रोजेनहाइम में एक टूर्नामेंट के मैच के दौरान रेफरी की ऐसी पिटाई हुई कि उसे सिर में गहरी चोट आई और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. जर्मनी के दक्षिणी बाडेन में रेफरी के साथ मार पिटाई के बाद हफ्ते के आखिरी दिनों वाले सारे मैच रोक दिए गए थे.

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तस्वीर: AP

हिंक कहते हैं, "हर मामला नंबर बढ़ा रहा है. इस पर बहस की कोई जरूरत नहीं." जर्मनी के राष्ट्रीय फुटबॉल संघ के पास देश भर के आंकड़े नहीं हैं. इस समय राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के झगड़ों की जानकारी जुटाने की कोशिश हो रही है और इसके लिए ढांचा बनाया जा रहा है. फिंक कहते हैं, "हमें भरोसा है कि कुछ साल में हम बेहतर फुटबॉल संस्कृति में योगदान दे सकते हैं."

जर्मन फुटबॉल संघ की राय में हिंसा मुक्त फुटबॉल के लिए महत्वपूर्ण यह होगा कि रेफरी और कोच को हिंसा रोकने और झगड़े को शांत करने की बेहतर ट्रेनिंग मिले. रेफरियों के प्रतिनिधि ब्लेजी बताते हैं, "हम अपने रेफरियों के प्रशिक्षण को लगातार बेहतर बना रहे हैं." ट्रेनिंग के दौरान उन्हें उचित शब्दों के इस्तेमाल से गुस्सैल खिलाड़ियों को शांत करने और विवादों की आक्रामकता को खत्म करने का अभ्यास कराया जाता है. लेकिन इस समय सिर्फ 30 से 40 फीसदी रेफरी इस तरह का वर्कशॉप कर रहे हैं. इसके अलावा युवा फुटबॉल में रेफरियों की भारी कमी भी है.

हालांकि मैच के शुरू और अंत में प्रतिस्पर्धी टीमों के खिलाड़ियों के बीच हाथ मिलाने की परंपरा है, लेकिन इससे झगड़ों के मामलों को पूरी तरह रोका नहीं जा सका है. लेकिन हिंक का मानना है कि कभी न कभी उनका असर दिखने लगेगा, "ये सब ऐसी चीजें हैं जो धीरे धीरे ही सिस्टम का हिस्सा बनेंगी, इन्हें एक दिन में स्थापित नहीं किया जा सकता." हालात बेहतर बनाने के लिए स्पष्ट नीति के अलावा उसे लागू करने के लिए समय की जरूरत होगी.

एमजे/एजेए (डीपीए)

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