फुटबॉल से खेलता कूलिंग ब्रेक
३० जून २०१४खिलाड़ियों के पानी पीने के बाद खेल दोबारा शुरू हुआ, तो नक्शा बदल गया था. नीदरलैंड्स की रणनीति बदल चुकी थी. खेल शुरू होने के बाद उन्होंने दो गोल कर दिया और हारती बाजी जीत ली. नीदरलैंड्स के कोच लुई फान खाल का कहना है कि तीन मिनट के इस कूलिंग ब्रेक ने ही उनकी जीत में सबसे बड़ी भूमिका निभाई. उन्होंने इस दौरान रणनीति बदली और उसे खिलाड़ियों को समझा दिया.
तो क्या मेक्सिको का वर्ल्ड कप का सफर कूलिंग ब्रेक की भेंट चढ़ गया. क्या फुटबॉल में कूलिंग ब्रेक होना चाहिए. यह पहला मौका है, जब वर्ल्ड कप में इस ब्रेक का इस्तेमाल किया जा रहा है और शायद इसकी वजह से एक बड़े विवाद या खेल में बदलाव की शुरुआत होने वाली है.
क्या है कूलिंग ब्रेक
फुटबॉल की अंतरराष्ट्रीय संस्था फीफा ने ब्राजील की गर्मी को देखते हुए कूलिंग ब्रेक लेने का फैसला किया. अगर तापमान 32 डिग्री से ज्यादा हो, तो रेफरी को अधिकार है कि वह दोनों हाफ में आधे घंटे के खेल के बाद ब्रेक ले ले. तीन तीन मिनट के ये ब्रेक 30 और 75 मिनट के बाद लिए जाएं और इस दौरान खेल की घड़ी नहीं रोकी जाए. बाद में इंजरी टाइम में तीन मिनट जोड़ दिया जाए.
फुटबॉल दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल है और सैकड़ों सालों में इसके नियमों में बहुत कम बदलाव किए गए हैं. इसके 45-45 मिनट के दो हाफ भी इसकी खूबसूरती ही है, जब किसी टीम को समय के दबाव और तय रणनीति के तहत अपना खेल पूरा करना होता है. उसमें किसी तरह की बाधा खेल की तारतम्यता बिगाड़ती है. कूलिंग ब्रेक से बाधा पैदा होती दिख रही है. तो क्या यह फुटबॉल के मूल में सेंध लग रही है. उत्तर "हां" भी हो सकता है.
सेहत का ध्यान
दरअसल ब्राजील की एक श्रम अदालत ने फीफा को निर्देश दिया कि पारा के 32 डिग्री पार करने पर खिलाड़ियों को पानी पीने की इजाजत मिलनी चाहिए ताकि वे बीमार न पड़ जाएं. मानवीय आधार पर फैसला स्वागत योग्य है कि अदालतें खिलाड़ियों की सेहत का ध्यान रख रही हैं.
पर सवाल उठता है कि इस गर्मी में दोपहर को मैच क्यों रखे जा रहे हैं. यूरोपीय देशों में ज्यादातर फुटबॉल मैच शाम के पौने नौ बजे शुरू होते हैं, जबकि वहां गर्मियों में बहुत ज्यादा तापमान नहीं होता. लेकिन ब्राजील में भारी गर्मी के बावजूद मैच दोपहर में क्यों खेले जा रहे हैं. इसलिए कि यूरोप और दूसरी जगहों पर लोग "प्राइम टाइम" में मैच देख सकें. उन्हें देर रात या तड़के मैच के लिए उठना न पड़े, ताकि प्रायोजकों को किसी तरह का नुकसान न उठाना पड़े. चाहे उसकी वजह से खिलाड़ियों को गर्मी में ही क्यों न झोंकना पड़े.
ब्रेक के पीछे पैसा तो नहीं
इस ब्रेक को लेकर दूसरी बात जो जेहन में आती है, वह यह कि कहीं यह क्रिकेट के स्ट्रैटजी ब्रेक में तो नहीं बदल जाएगा. प्रसारकों और विज्ञापनों के दबाव में आईपीएल मैचों के दौरान 10 ओवर के बाद साढ़े सात मिनट का ब्रेक लिया जाता है. और इस दौरान टेलीविजन पर जम कर इश्तिहार चलते हैं. क्रिकेट मैचों के दौरान विज्ञापनों की खूब पूछ होती है. हालांकि वहां हर ओवर के बाद भी एकाध मिनट का वक्त विज्ञापनों के लिए मिल जाता है. फुटबॉल एक निर्विघ्न खेल है, जो पूरे 45 मिनट के बाद ही रुकता है और इस दौरान कोई एक पल भी टीवी स्क्रीन से नजर नहीं हटाना चाहता. तो क्या कूलिंग ब्रेक के नाम पर विज्ञापनों की राह तो नहीं खोली जा रही है.
बारिश, धूप, सर्दी या गर्मी, फुटबॉल किसी भी मौसम में खेला जा सकता है और तभी यह इतना लोकप्रिय खेल बना है. खिलाड़ियों की सेहत का ध्यान जरूरी है लेकिन कूलिंग ब्रेक के नाम पर इसकी बुनियाद से छेड़ छाड़ ठीक नहीं. भारत के जाने माने खेल पत्रकार सुभाशीष नाथ ने इससे खीझ कर फेसबुक पर लिखा, "अगली बार जब आप डेनमार्क में खेलें, तो वार्मिंग ब्रेक ले लीजिए".
ब्लॉगः अनवर जे अशरफ
संपादनः महेश झा