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फोन डिस्प्ले की लेजर तकनीक

Diehn, Sonya Angelica४ दिसम्बर २०१३

जर्मन वैज्ञानिकों ने ऐसी लेजर तकनीक विकसित की है जिससे स्मार्टफोन जैसे उपकरणों की स्क्रीन का डिस्प्ले बेहतर किया जा सकेगा. इस तकनीक की मांग एशियाई बाजार में ज्यादा है और आगे और भी बढ़ने की उम्मीद की जा रही है.

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तस्वीर: Coherent

काई श्मिट जर्मन शहर गॉटिंगेन में लेजर कंपनी कोहेरेंट के लिए काम करते हैं. गॉटिंगेन के रिसर्चरों ने दोहरे लेजर सिस्टम की कुल ऊर्जा को एक में कर, इससे निकली लेजर बीम को नए ऑप्टिक सिस्टम के साथ मिला दिया. इससे 75 सेंटीमीटर लंबी प्रकाश की किरण पैदा होती है. यह इतनी शक्तिशाली है कि एक डबल बेड के आकार के कांच को काट सकती है.

टच स्क्रीन में इस्तेमाल

कोहेरेंट के प्रोडक्ट मैनेजर राल्फ डेल्मडाल ने बताया कि स्मार्टफोन में कांच की पतली सतह पर सिलिकॉन की परत बिछी होती है. इस पर पराबैंगनी किरणें पड़ने पर यह पॉलीक्रिस्टलीन सिलिकॉन में बदल जाती है. डेल्मडाल अपने आईफोन की स्क्रीन पर हल्के से अंगुली रखते हैं जिसमें पॉलीक्रिस्टलीन की मदद से उच्च स्तरीय डिस्प्ले मिलता है.

हर पिक्सेल के पीछे किसी स्विच की तरह एक मिनी ट्रांजिस्टर लगा होता है. यही हर एक पिक्सेल में प्रकाश भरता है. फोन स्क्रीन का डिस्प्ले जितना ज्यादा होगा, उसमें उतने ही ज्यादा पिक्सेल और मिनी ट्रांजिस्टर लगे होंगे.

बढ़िया डिस्प्ले के लिए पॉलीक्रिस्टलीन सिलिकॉन ट्रांजिस्टर बेहतरीन होते हैं. इन्हें सिलिकॉन ट्रांजिस्टर के मुकाबले काफी छोटा बनाया जा सकता है. इसके अलावा इनमें से इलेक्ट्रॉन प्रवाह भी ज्यादा तेजी से होता है.

बेहतर डिस्प्ले

कंपनी के ज्यादातर ग्राहक एशिया के स्मार्टफोन डिस्प्ले उत्पादक हैं. कोहेरेंट अब तक 100 से ज्यादा लेजर सिस्टम बेच चुके हैं. उनका मानना है कि स्मार्टफोन डिस्प्ले का बाजार तो अभी बस खुला ही है. आगे उन्हें और भी सफलता की उम्मीद है.

डेल्मडाल ने बताया कि डिजिटल डिस्प्ले की ताकत उसकी रफ्तार भी होती है, "तेज रफ्तार वाले डिस्प्ले युवाओं के लिए अच्छे हैं. वे इसे गेमिंग के लिए इस्तेमाल करते हैं. ये बूढ़े लोगों के लिए भी अच्छे हैं क्योंकि स्क्रीन पर लिखावट साफ होने की वजह से वे इसे आसानी से पढ़ सकते हैं." उनका मानना है जैसे जैसे फोन का बेहतर डिस्प्ले हमारी जिंदगी का हिस्सा बनता जाएगा, हर कोई इसका फायदा देखेगा.

बुलंद हौसले

कोहेरेंट के मार्केटिंग प्रमुख राइनर पेटसेल ने कहा कि वे ऐसी तकनीक विकसित कर रहे हैं जिसमें स्क्रीन ओएलईडी की बन सकेगी.

ओएलईडी टीवी बनाने के लिए पास पॉली क्रिस्टलीन सिलिकॉन डिस्प्ले की जरूरत होती है. उन्होंने कहा, "हम उस जगह आ चुके हैं." हालांकि उन्होंने माना कि ऑटोमेशन जैसी कई दूसरी चीजों का काम अभी बाकी है. वे इस दिशा में आगे रिसर्च कर रहे हैं.

रिपोर्टः डानिएला कोरेना/एसएफ

संपादनः ए जमाल

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