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जलवायु परिवर्तन का असर बच्चों पर सबसे अधिक

आइरीन बानोस रुइज
१५ नवम्बर २०१९

वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से कम नहीं रखा जाता है तो यह पूरी पीढ़ी के भविष्य के स्वरूप पर असर डालेगा

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Malaria in Afghanistan
तस्वीर: Paula Bronstein/Getty Images

जलवायु परिवर्तन दुनिया भर के बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन गया है. अगर वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से कम नहीं रखा जाता है तो यह पूरी पीढ़ी के भविष्य के स्वरूप पर असर डालेगा. यह बातें एक नए शोध में कही गई है.

भारत की राजधानी दिल्ली के बाल रोग विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों के फेफड़े अब गुलाबी नहीं काले हो गए हैं. लांसेट पत्रिका में स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक गर्म होती पृथ्वी का प्रभाव दुनिया के बच्चों पर पहले से ही पड़ रहा है और अगर हम पृथ्वी का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने में नाकाम होते हैं तो यह पूरी पीढ़ी के भविष्य पर असर डालेगा.

China Smog Kinder Symbolbild
तस्वीर: Reuters

द लांसेट काउंटडाउन के सह-अध्यक्ष एंथोनी कॉस्टेलो ने डीडब्ल्यू से कहा, "पिछले तीस सालों में हमने सभी लोगों और निश्चित तौर पर बच्चों की मौतों की संख्या में गिरावट देखी है. लेकिन हमें इस बात की चिंता है कि अगर हम जलवायु परिवर्तन की समस्या से तत्काल नहीं निपटते हैं तो यह लाभ उलट जाएगा."

इस शोध को विश्व के 35 संस्थानों ने संकलित किया है, जिसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन और वर्ल्ड बैंक शामिल है. शोध साफ तौर पर जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण विनाश और स्वास्थ्य  के बीच रिश्तों को दर्शाता है.

बढ़ता तापमान, ईंधन की भूख, कुपोषण, संक्रामक रोग का स्तर और फैलाव, तेजी से बदलते मौसम के साथ वायु प्रदूषण इंसानों के फेफड़ों के लिए उसी तरह से जानलेवा हो गया है जैसे धूम्रपान.

भोजन तक पहुंच कठिन

आज पैदा होने वाला बच्चा अपने जीवन की शुरुआत के पहले ही दिन से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के संपर्क में आ जाएगा. बढ़ते तापमान के साथ सूखे और बाढ़ से फसलें तबाह हो रही हैं, जिस कारण वैश्विक पैदावार में गिरावट आई है. इसका परिणाम  भुखमरी और कुपोषण है,  विशेष तौर पर बुर्किना फासो जैसे देश में.

मैडागास्कर में राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम के सलाहकार और बुर्किना फासो के रहने वाले मौरिस ये कहते हैं, "बुर्किना फासो में 5 साल से कम उम्र के बच्चों में घातक कुपोषण अधिक है. अगर इस समस्या को सुलझाने पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह और गंभीर होगा."

 लांसेट की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पांच साल के उम्र के बच्चों की दो तिहाई मृत्यु के लिए कुपोषण जिम्मेदार है. हालांकि अक्सर कुपोषण को भूख से जोड़ा जाता है लेकिन बहुत अधिक हानिकारक भोजन भी इसके लिए जिम्मेदार है.

Überschwemmungen in Kenia
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/A. Kasuku

अनाज के महंगे होने के कारण कई बार उपभोक्ता प्रसंस्कृत भोजन खरीदने को मजबूर हो जाते हैं. पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया में  सेंटर फॉर एनवायरमेंटल हेल्थ की उप निदेशक पूर्णिमा प्रभाकरण ने डीडब्ल्यू से कहा, "यह कुपोषण विस्तार के दूसरे छोर की ओर ले जाता है, जो कि अधिक वजन और मोटापा है."

पांच साल से कम उम्र के बच्चों पर बढ़ते तापमान, संक्रामक रोग, बारिश के मौसम में बदलाव और आर्द्रता के कारण बैक्टीरिया तेजी से फैल रहा है.  इस तरह के मौसम डेंगू, मलेरिया और हैजा जैसी बीमारियों को बढ़ने में मदद करते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 2017 में मलेरिया ने चार लाख पैंतीस हजार लोगों की जान ली, जिनमें से अधिकतर अफ्रीका में पांच साल से कम उम्र के बच्चे थे.

बुर्किना फासो जैसे देश के लिए यह अधिक चिंता का विषय है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के मुताबिक मलेरिया के कारण वहां 2018 में ही सिर्फ 28,000 मौत हुई. लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण बीमारी फैलाने वाले मच्छर नए देश पहुंच जाएंगे जैसे दक्षिणी यूरोपीय देश. लांसेट की रिपोर्ट कहती है कि दुनिया की करीब आधी आबादी पर डेंगू बीमारी का खतरा है.

गर्मी और सर्दी की मार

Portugal Waldbrände Feuerwehr Anwohner
तस्वीर: Getty Images/F.Leong

आज पैदा होने वाले शिशुओं की सेहत पर  तेजी से बदलते मौसम जैसे गर्म हवा और जंगलों की आग का असर पड़ेगा. 2001 से अब तक 196 में से 152 देशों ने जंगल की आग के संपर्क में आने वाले लोगों की संख्या में इजाफा का अनुभव किया है. 65 साल के अधिक उम्र के लोगों पर रिकॉर्ड तोड़ते तापमान का असर चिंता का विषय है. प्रभाकरण कहती हैं, "गर्म तापमान का असर थकान, लू, पहले से ही मौजूद  हृदय रोग और सांस संबंधी बीमारियों में बढ़ोतरी शामिल है."

तत्काल प्रभाव से कोयले का इस्तेमाल बंद हो

प्रभाकरण को उम्मीद है स्वास्थ्य प्रभाव अनिच्छुक नीति निर्माताओं के लिए महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा, वह कहती हैं, "हमें जरुरत है कि हम अपनी चर्चा के केंद्र में स्वास्थ्य को लाएं. सेहत पर जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल का असर कोयले के उपयोग को खत्म करने के लिए मजबूत तर्क साबित हो सकता है. "

विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि आज जन्म लेने वाले हर बच्चे की पीड़ा को कम करने के लिए पहला कदम दुनिया को डिकार्बोनाइज्ड करना है. उनका कहना है कि यह तकनीकी रूप से संभव है. लेकिन वे कहते हैं कि इसके लिए कठोर नीतियों की जरुरत होगी और साथ ही राजनीतिक इच्छाशक्ति भी चाहिए. इस मामले में सुस्ती विकल्प नहीं हो सकती.

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