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समाज

बच्चों के सोशल मीडिया अकाउंट क्यों बनाते हैं पैरेंट

अपूर्वा अग्रवाल
१८ सितम्बर २०२०

सोशल मीडिया पर नवजात और छोटे बच्चों की तस्वीरें और वीडियो आए दिन वायरल होती हैं. शायद यही कारण है कि जन्म के तुरंत बाद ही कुछ मां-बाप को अपने बच्चों का सोशल मीडिया पर लाने की जल्दी होती है. आखिर क्यों?

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Instagram Ausstellung in Kolkata Praveen Chetri
तस्वीर: Instagram/praveenche

बेंगलूरु में रहने वाली नेहा अग्रवाल ने अपने बेटे वेदांत का इंस्टाग्राम अकाउंट उसके जन्म के तीन दिन बाद ही बना दिया. आज तीन महीने के वेदांत की इंस्टाग्राम पर 75 से भी ज्यादा फोटो और वीडियो है. कुछ ऐसी ही कहानी झांसी में रहने वाले दो साल के अयांश की है जो लगभग छह महीने की उम्र से ही इंस्टाग्राम पर एक्टिव है. वेदांत की तरह अयांश का इंस्टाग्राम अकाउंट भी उनकी मम्मी नमिता हैंडल करती हैं. ऐसे में सवाल यह है कि बच्चों को सोशल मीडिया पर लाने वाले माता-पिता ऐसा क्यों कर रहे हैं? और क्या वे इसके प्रभावों के बारे में जानते हैं.

कैसे आया था आइडिया

अधिकतर मामलों में मां-बाप खुद ही सोशल मीडिया पर इतने एक्टिव रहते हैं कि जिंदगी की हर छोटी-बड़ी चीज को वे वर्चुअल वर्ल्ड में शेयर करना चाहते हैं. नेहा कहती हैं कि इंस्टाग्राम के जरिए वे अपने बच्चे का डिजिटल अलबम तैयार कर रही हैं. वे सोचती हैं कि जब उनका बच्चा बड़ा हो जाएगा तो वे उसे पूरा अकाउंट हैंडओवर कर देगी. कुछ ऐसा ही सोच नमिता की भी है. नमिता बहुत ख्याल रखती है कि उनके बच्चे की तस्वीरों को लाइक और कमेंट मिल रहे हैं या नहीं. उनका ध्यान इस बात पर भी होता है कि वे ऐसी क्या एक्टिवटी बच्चे से कराएं जो सबसे अलग हो और अच्छी भी लगे. सोशल मीडिया पर प्रोफाइल की लोगों तक पहुंच बढ़ाने के लिए नमिता हैशटैग भी बहुत सोच-समझ कर इस्तेमाल करती हैं.

नेहा ने प्रेंग्नेंसी के दौरान अपने कई सारे वीडियो अपलोड किए थे. जिस पर उन्हें काफी अच्छा रिस्पांस मिला. टिकटॉक पर नेहा के तकरीबन 75 हजार फॉलोअर्स थे इसलिए बच्चे का प्रोफाइल बनाना उन्हें एक अच्छा आइडिया लगा. हालांकि इसके लिए उन्होंने कई सारे सेलिब्रिटी मांओं के ब्लॉग भी देखे और समझा कि इंस्टाग्राम पर क्या कुछ चल सकता है. वहीं नमिता बताती है कि प्रेंग्नेंसी के दौरान वह कई सारी चीजों को इंटरनेट पर पढ़ती थी. कुछ मॉम ब्लॉगर्स को फॉलो करती थीं. फिर उन्हें पता चला कि सोशल मीडिया पर फॉलोअर्स अगर बढ़ जाते हैं तो इससे पैसे भी कमाए जा सकते हैं. उन्होंने बताया, "एक फ्रेंड ने कहा कि तुम्हारा बच्चा बहुत सुंदर दिखता है और इसे मॉडलिंग के ऑफर मिल सकते हैं.” इस सलाह को नमिता ने बेहद ही संजीदगी से लिया और नतीजतन अयांश को कुछ ही समय में मॉडलिंग के ऑफर भी आए.

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वायरल हो जाती हैं बच्चों की तस्वीरेंतस्वीर: Anna Jost, „Eltern vom Mars“ Blog/Knesebeck Verlag

कितना घातक है सोशल मीडिया

ऐसा नहीं है कि बच्चों की सोशल मीडिया पर मौजूदगी को गलत मानने वाले लोगों की संख्या कम है. रायपुर में रहने वाले अमित भगत की छह महीने की बेटी है. कई बार उनसे लोग कहते हैं कि वह अपनी बेटी के साथ कोई फोटो शेयर नहीं करते. इस मामले में अमित और उनकी पत्नी कहते हैं कि बच्चे के लिए बिल्कुल भी सेफ नहीं है. इससे चाइल्ड ट्रैफिकिंग, पोर्नोग्राफी का खतरा बढ़ सकता है. अमित ने बताया कि हाल में उनके सामने एक ऐसा मामला आया था जहां एक बच्चे का अपहरण सिर्फ सोशल मीडिया एक्टिवटी के कारण ही संभव हो सका. जिस गैंग ने अपहरण किया था वह सोशल मीडिया पर एक्टिव था और पैरेंट्स समेत बच्चे की हर छोटी-बड़ी जानकारी को इकट्ठा कर रहा था.

अमित की पत्नी सिविल कोर्ट में जज हैं. वह कहती है कि आईटी सेफ्टी से जुड़े कई सारे नियम-कानून बच्चों के लिए भी हैं लेकिन माता-पिता बिल्कुल अंजान हैं और इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता. लेकिन सभी मां-बाप इससे इत्तेफाक नहीं रखते है. नमिता कहती हैं कि अगर उनकी बेटी होती तो शायद वह ज्यादा सोचती लेकिन बेटे की एक-दो तस्वीरें डालने में उन्हें कुछ बुराई नहीं लगती. वहीं नेहा को लगता है कि अगर उन्हें सब सच पता है तो कितना ही और क्या ही गलत हो सकता है.

बच्चे पर असर

सोशल मीडिया 5 साल तक के बच्चों के मानसिक विकास में भी बाधा है. डॉक्टर मानते हैं कि बच्चों के लिए 5 साल तक की उम्र सबसे ज्यादा अनुभवों को ग्रहण करने वाली उम्र होती है. इस उम्र में बच्चा हर चीज को छूकर महसूस करना चाहता है. ऐसे में अगर माता-पिता बच्चे की मौजूदगी में अधिक वक्त फोन या सोशल मीडिया पर बिताते हैं तो वह बच्चे के साथ क्वालिटी टाइम नहीं बिता पाते और और उनका ध्यान भटकता है. इंदौर के बाल मनोचिकित्सक डॉक्टर हीरल कोटाडिया बताते हैं कि सोशल मीडिया का असर 2 साल तक के बच्चों पर अप्रत्यक्ष रूप से पड़ता है. वहीं 3 से 5 साल के बच्चों पर असर अधिक प्रत्यक्ष नजर आता है.

Safer Internet Day
सोशल मीडिया पर मांएंतस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Kalaene

अप्रत्यक्ष रूप से अर्थ है कि बच्चे में जो ह्यूमन स्टीमुलेशन (मानवीय उत्तेजनाएं) उम्र के साथ विकसित होना चाहिए वह धीमा पड़ सकता है. नतीजतन, बच्चा देर से बोलना सीखता है, अच्छे से सो नहीं पाता, किसी भाव को समझने में देरी लग सकती है. वहीं 3-5 साल के बच्चे व्यावहारिक परेशानियों से जूझते नजर आते हैं. मसलन उनमें बैचेनी बढ़ती है, बात-बात पर गुस्सा आ सकता है. उन्हें लगता है कि जो वर्चुअल वर्ल्ड में चल रहा है वही सही है. बेंगलूरु की एक महिला मनोचिकित्सक बताती हैं कि कुछ स्टडीज में यह भी कहा गया है कि सोशल मीडिया के अधिक इस्तेमाल से बच्चों में ऑटिज्म का खतरा बढ़ता है. हालांकि ऑटिज्म एक अनुवांशिक बीमारी है लेकिन सोशल मीडिया इस बीमारी के जोखिम को बढ़ा देती है.

मां-बाप की भूमिका

अगर मां-बाप चाहते हैं कि उनके बच्चे सोशल मीडिया और फोन से दूर रहें तो उन्हें अपने साथ भी यही करना होगा. डॉक्टर कहते हैं कि ऐसा नहीं हो सकता कि मां-बाप खुद सोशल मीडिया पर एक्टिव रहे और बच्चे को उससे दूर करें. अगर ऐसा किया जाता है तो इससे बच्चों में विरोधाभास पैदा होता है. वहीं पैरेंट्स की मानसिक अवस्था की बात करें तो मनोचिकित्सक मानते हैं कि हर एक व्यक्ति के दिमाग में सामाजिक स्वीकृति और सामाजिक मान्यता की भावनाएं प्रबल होती हैं. ऐसे में जब बच्चों की तस्वीरों को सोशल मीडिया पर अच्छा रिस्पांस मिलता है तो मांओं को बहुत अच्छा लगता है. इनमें एक बड़ा तबका ऐसी मांओं का है जो करियर ब्रेक पर हैं और इन्हें इस सब से खुशी मिलती है. नमिता बताती हैं कि जब उनके बेटे अयांश की तस्वीरों को ज्यादा लाइक या कमेंट नहीं मिलते तो उन्हें बहुत बुरा लगता है, और फिर वह कोशिश करती है कुछ नया करने की.

एक्सपर्ट्स की राय में इस विषय पर समाज में जागरूकता की कमी है. इसलिए ने वीडियो कॉल के अलावा जहां तक संभव हो बच्चे को फोन और सोशल मीडिया से दूर रखने की हिदायत देते हैं ताकि उन्हें किसी भी तरह का दबाव महसूस ना हो. इसके साथ ही बहुत अधिक फोटो लेने के लिए भी उन पर दबाव बनाना अच्छा नहीं है. वहीं सुरक्षा संबंधी नियमों की जानकारी भी मां-बाप के पास होना बहुत जरूरी है.

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