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समाज

बच्चों को लुभाने स्कूल को दिया 'रेलगाड़ी' का रूप

७ अक्टूबर २०१९

बच्चों में रेलगाड़ी के प्रति आकर्षण को ध्यान में रखकर प्रधान अध्यापिका ने विद्यालय की इमारत को ही रेलगाड़ी का रूप दिलवा दिया.

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Indien Kinder fahren weite Strecken mit dem Zug, um Wasser zu holen
तस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas

बच्चों का स्कूल की तरफ आकर्षण बढ़े और वे नियमित रूप से कक्षाओं में आने लगें, इस मकसद से मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले में एक महिला प्रधान अध्यापिका और उनके सहयोगियों ने अनोखा प्रयोग किया है. उन्होंने स्कूल की इमारत को ही 'रेलगाड़ी' का रूप दिलवा दिया. इसका अब फायदा भी नजर आने लगा है. राज्य का डिंडोरा जिला आदिवासी बहुल जिलों में से एक है. यह प्रदेश के गिनती के उन जिलों में से एक है जो विकास की रफ्तार से पिछड़े हुए हैं और यहां आज तक रेल नहीं आई है. यही कारण है कि यहां के बच्चों में रेल के प्रति आज भी आकर्षण बना हुआ है. बच्चों का रेल पर चढ़ने का शौक स्कूल आकर ही पूरा होता है.

राजधानी से लगभग 600 किलोमीटर दूर स्थित डिंडोरी जिले के इस विद्यालय की इमारत को दूर से देखते ही रेल गाड़ी का आभास होने लगता है. इस इमारत को ठीक रेलगाड़ी के ही रंगों से रंग दिया गया है. नीले, पीले और आसमानी रंगों का ऐसा संयोजन किया गया है कि यह इमारत हूबहू रेलगाड़ी की तरह ही नजर आती है. कमरों के प्रवेशद्वार को रेलगाड़ी के द्वार की तरह ही रंग व रूप दिया गया है, साथ ही दीवारों पर खिड़कियों की आकृति बनी है.

विद्यालय की प्रधान अध्यापिका संतोष उईके कहती हैं कि विद्यालय का विकास हो, ज्यादा से ज्यादा बच्चे दाखिला लें और पढ़ने आएं, इसी मकसद से उन्होंने कारीगरों से विद्यालय की इमारत को रेलगाड़ी का स्वरूप देने को कहा. उनका कहना है कि विद्यालय की इमारत को रेलगाड़ी का स्वरूप दिए जाने से स्कूल आने वाले छात्रों की संख्या बढ़ी है, "बच्चे नियमित रूप से विद्यालय आते हैं. इतना ही नहीं, बच्चों के अभिभावक भी पढ़ाई के प्रति जागरूक हुए हैं."

स्कूल रूपी इस रेलगाड़ी को नाम दिया गया है एजुकेशन एक्सप्रेस एमएस खजरी. जिस स्थान पर इसे खड़ा दर्शाया गया है, वह है माध्यमिक शाला, खजरी जंक्शन. इस गाड़ी में अगला हिस्सा पूरी तरह इंजिन की तरह रंगा हुआ है, जिस पर एजुकेशन एक्सप्रेस लिखा है. यहां मध्यान्ह भोजन कक्ष का नाम अन्नपूर्णा कक्ष दिया गया है. विद्यालय की कक्षा सातवीं में पढ़ने वाले अजय कुमार का कहना है, "स्कूल को रेलगाड़ी का रूप दिए जाने से यहां आना अच्छा लगता है. अब तो हर रोज स्कूल आने लगा हूं."

गांव के लोग भी विद्यालय की इमारत को रेलगाड़ी का रूप दिए जाने से खुश हैं. एक निवासी कहते हैं, "दूर से विद्यालय को देखने पर ऐसा लगता है, मानो सच में रेलगाड़ी खड़ी हो. यहां रेलगाड़ी नहीं आई, मगर विद्यालय की प्रधान अध्यापिका और उनके सहयोगियों ने स्कूल की इमारत को ही रेलगाड़ी बनाकर शौक पूरा कर दिया है." महत्वपूर्ण बात यह है कि विद्यालय को आकर्षक बनाने के लिए शिक्षकों ने अपने वेतन से भी इसमें पैसा लगाया है. यह विद्यालय हर किसी के लिए एक नजीर बन गया है कि अगर शिक्षक चाहें तो बच्चों को विद्यालय आने के लिए अपने प्रयासों से प्रेरित कर सकते हैं.

रिपोर्ट: संदीप पौराणिक (आईएएनएस)

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