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बढ़ रही है सोशल गेमिंग की लोकप्रियता

२२ मई २०१०

सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर आपसी मेलजोल बढ़ाने के अलावा अब यंगस्टर्स उसका इस्तेमाल सोशल गोमिंग के लिए भी कर रहे हैं. साथियों के साथ मिलकर गेम्स खेलने की संभावना के कारण इन साइटों की लोकप्रियता बढ़ रही है.

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तस्वीर: picture-alliance/ dpa

मैं थोड़े दिन के लिए बाहर जा रहा हूं लेकिन पीछे से मेरे खेत और भेड़ बकरियों का ध्यान कौन रखेगा? अब आप सोच रहे हैं कि हम किसी किसान की बात कर रहे हैं. नहीं! यहां बात हो रही है 26 साल के सुमित की. जिन्हें सोशल गेमिंग की इतनी बुरी लत लगी है कि घर से बाहर निकलने से पहले उन्हें फे़सबुक पर चल रही गेम- फा़र्मविल के बारे में सोचना पड़ता है.

गेमिंग, एक दिलचस्प प्रक्रिया

वर्ल्ड वाइड वेब पर सोशल नेटवर्किंग साइट्स के ज़रिए आज यंगस्टर्स आपसी मेलजोल बढ़ाने के साथ-साथ खेल को भी अपनी जिंन्दगी का एक अहम हिस्सा बना रहे हैं. सोशल नेटवर्किंग ने ही जन्म दिया है सोशल गेमिंग को.

सोशल गेम्स - जैसे माफि़या वार्स, फा़र्मविले, कैरम, प्लेफि़श और उनो - आजकल के युवा सोशल नेटवर्किंग साइट्स के ज़रिए खेलते हैं. 23 साल की शुचि जैन का मानना है कि बीत गए वो दिन जब सोशल नेटवर्किंग साइट्स की पॉप्यूलैरिटी सिर्फ नेटवर्किंग तक सीमित थी. इन वेबसाइट्स पर अपने दोस्तों से मेलजोल बढ़ाने के साथ-साथ गेम्स खेलने की प्रक्रिया उन्हें दिलचस्प लगती है. "अपने आपको दिन भर की परेशानियों से दूर रखने के लिए ये गेम्स बहुत ज़रूरी हैं. ये एक स्ट्रैस बस्टर की तरह काम करती हैं. आप कितनी नेटवर्किंग कर लेंगे? इन गेम्स को अपने दोस्तों के साथ खेलने से बचपन की यादें भी ताज़ा होती हैं."

सोशल गेमिंग के बढ़ते यूज़र्स

इन साइट्स के पास आज इतनी गेम्स हैं कि जानी मानी ऑनलाइन गेमिंग साइट्स जैसे ज़पैक और मिनिक्लिप इनके सामने फीकी पड़ गई हैं. पिछले एक साल में इन गेम्स से जुड़ने वाले यूज़र्स की संख्या आसमान छूने लगी है. लेकिन इन गेम्स में ऐसा क्या है जो वेब पर मौजूद बाकी ऑनलाइन गेम्स में नहीं हैं? सुमिक कहते हैं, "ज़पैक जैसी गेमिंग साइट्स पर आप अपने दोस्तों के साथ नहीं खेल सकते. सोशल नेटवर्क्स के पास जो आजकल गेम्स हैं जैसा फार्मविले, वहां असलियत दिखाई देती है और आप दोस्तों के साथ मुकाबला कर सकते हो."

तो इन्हें मनोरंजन के लिए खेलना, स्ट्रेस बस्टर समझना, दोस्तों को चैलेंज करने तक तो सही है, लेकिन तब क्या होगा जब आपको इसे खेले बिना नींद न आए, आप खाना और सोना तक भूल जाएं. जी हां, विश्व भर में आज ऐसे भी यूज़र्स हैं जो इन गेम्स के इतने दीवाने हैं कि नींद में भी वो पेड़ लगाते हैं या उनो की गेम में किसी को चैलेंज कर रहे होते हैं. स्रिमौय बताते हैं, " मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जिन्हें इन गेम्स के कारण रात में नींद नहीं आती. तो रिलैक्सेशन और एन्टरटेनमेन्ट तक तो ठीक है लेकिन जब ये परेशानी बनने लगे तो आपको खुद को रोकने की ज़रूरत है."

सोशल नेटवर्किंग साइट्स आज यंगस्टर्स को तस्वीरें दिखाने और बातचीत करने के साथ-साथ, दोस्तों के साथ गेम्स खेलने जैसी आकर्षक सुविधाएं तो दे रही हैं. लेकिन युवा अगर इसकी लत लगने से बचें तो आने वाले दिनों में यह एन्टरटेनमेंट का एक अच्छा और लाभदायक ज़रिया बन कर उभर सकता है.

रिपोर्ट: श्रेया कथूरिया

संपादन: महेश झा