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बर्बादी की राह पर एथेंस

बारबरा वेजेल/आईबी२ फ़रवरी २०१५

एथेंस बर्बादी की राह पर निकल पड़ा है, ब्रसेल्स ने जितना सोचा था उससे ज्यादा तेजी से. बारबरा वेजेल का कहना है कि इससे पहले कि ग्रीस की अव्यवस्था पूरे यूरोप को ले डूबे, जल्द ही इसके विरुद्ध कोई रणनीति बनानी होगी.

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सिप्रास और यूरो ग्रुप के प्रमुख डीसेलब्लोएमतस्वीर: Reuters/P. Giannakouris

एथेंस बर्बादी की राह पर निकल पड़ा है, ब्रसेल्स ने जितना सोचा था उससे ज्यादा तेजी से. बारबरा वेजेल का कहना है कि अब एक ही विकल्प है, जल्द ही इसके विरुद्ध कोई रणनीति बनानी होगी, इससे पहले कि ग्रीस की अव्यवस्था पूरे यूरोप को ले डूबे.

कुछ दिनों तक ब्रसेल्स इस गुत्थी को सुलझाता रहा कि ग्रीस की नई सरकार के साथ किस तरह से बातचीत शुरू की जाए, की जाए भी या नहीं. अब खुद एथेंस से ही जवाब आ गया है, नहीं, बिलकुल भी नहीं. वित्त मंत्री यानिस वारोफाकिस ने साफ कर दिया है कि वे कोई बात नहीं करना चाहते. यूरोपीय संघ, यूरोपीय सेंट्रल बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की तिकड़ी से तो कतई नहीं. ये वैसा ही है, जैसे कोई लेनदार उस बैंक से ही बात करने से इंकार कर दे जिसने उसे कर्ज दिया है. और वह भी इसलिए कि उस लेनदार को लगता है कि बैंक और अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था प्रणाली बकवास कर रहे हैं. अगर कोई ऐसा सोचता है, तो उसे रोका नहीं जा सकता. लेकिन इसके बदले उसे नतीजे भुगतने होंगे, अब से उसके खाते में कोई पैसा नहीं आएगा.

दिवालिया होने की कगार पर

यह तिकड़ी ही तय करती है कि कब कहां कितना पैसा जाना है. और अब इसके पास और कोई चारा नहीं बचा है, सिवाए इसके कि पिछले साल की सहायता राशि में से इस साल फरवरी के अंत में जो सात अरब यूरो देने थे, उसे रोक दे. एथेंस ने भी काफी ढिठाई के साथ कह दिया है कि उसे इसकी कोई जरूरत नहीं है. लेकिन फरवरी और मार्च में ग्रीस को अपने कर्ज चुकाने और ब्याज देने के लिए करीब ग्यारह अरब यूरो की जरूरत होगी. क्या यह देश अपनी आर्थिक जिम्मेदारी पूरी नहीं करना चाहता? साथ ही, अगर एथेंस तिकड़ी के साथ नाता तोड़ लेना चाहता है, तो यूरोपीय सेंट्रल बैंक ग्रीस के बैंकों को पैसा कैसे मुहैया कराएगा? इसका मतलब यह होगा कि एटीएम से पैसा निकालना बंद हो जाएगा. प्रधानमंत्री अलेक्सिस सिप्रास का कहना है कि वे किसी भी हालत में अपने देश को ऐसी बुरी स्थिति में नहीं डालना चाहते हैं. लेकिन उनके देशवासियों के लिए जल्द ही एक बुरी सुबह होने वाली है.

Griechenland Gruppenfoto nach der ersten Sitzung des neuen Kabinetts 28.01.2015
सिप्रास और उनकी टुकड़ीतस्वीर: Reuters/A. Konstantinidis

एथेंस की नई सरकार पर हंसी आ सकती थी, अगर सिप्रास और उनकी टीम का मकसद पूरे ईयू को इस भंवर में घसीटना नहीं होता. लंदन, रोम और पेरिस में घूम कर वे मदद की उम्मीद कर रहे हैं. वे बर्लिन के आसपास एक पूरा चक्कर काट रहे हैं. हमला करते हुए स्वर में उन्होंने कहा है कि जर्मनी बहुत से देशों में से सिर्फ एक ही देश है. इसके बदले में जर्मनी के वित्त मंत्री वोल्फगांग शॉएब्ले ने भी कहा कि जर्मनी ग्रीस को जबरन पैसा नहीं देना चाहता है. अगर वे हमसे बात नहीं करना चाहते, तो उनकी मर्जी.

ईयू को तोड़ना चाहते हैं सिप्रास

अब सिप्रास की कोशिश है कि इटली और फ्रांस को बर्लिन के खिलाफ खड़ा करें. इसके अलावा वे लंदन से भी मदद की आस लगा रहे हैं. क्योंकि वहां भी यह विचारधारा है कि जर्मनी को यूरोजोन में पैसे की बाढ़ ले आनी चाहिए ताकि विकास में तेजी लाई जा सके. लेकिन ब्रिटेन को इस मामले में नहीं पड़ना चाहिए और अपना मुंह बंद रखना चाहिए. और रोम और पेरिस में लोग यह विचार रख सकते हैं कि अगर ईयू ज्यादा पैसे दे, तो सब ठीक हो जाएगा लेकिन कर्ज माफ कर देने की बात पर तो इटली और फ्रांस भी सहमत नहीं होंगे. सिर्फ जर्मनी को ही 50 और 60 अरब यूरो के लिए खड़ा नहीं होना है, फ्रांस और इटली को भी इसका बोझ उठाना होगा.

दरअसल एथेंस में नई सरकार चाह रही है कि ग्रीस के कर्ज के एक बड़े हिस्से को माफ कर दिया जाए, जैसा कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी के साथ किया गया था. लेकिन इन दोनों स्थितियों की तुलना नहीं की जा सकती. ग्रीस में हमारे मित्र किसी भूकंप, तूफान या गृह युद्ध का शिकार नहीं हुए हैं, बल्कि अपने ही भ्रष्ट उच्च वर्ग के कारण. उनके अलावा और कोई भी इसके लिए जिम्मेदार नहीं है. बैंकों ने आपको आराम से पैसा दे दिया था और यही सच्चाई है. किसी ने भी आपके साथ जोर जबरदस्ती नहीं की थी कि आप पैसा लें और फिर अपने हिसाब से उसे खर्चें. खुद को पीड़ित के रूप में देखना बंद करें. ग्रीस सरकार आगे भी यूरोपीय संघ के साथ खेल खेलने की अपनी कोशिश जारी रख सकती है. हम देखेंगे कि इससे वह कितना आगे बढ़ पाती है.

और आखिर में, यह सोचा जा सकता है कि चालाकी की जीत होती है. हाथ में नई नई ताकत आने से नशा हो सकता है लेकिन जिन लोगों मेज पर बैठ कर आपको काम करना है, उन्हें आप लगातार बेइज्जत नहीं कर सकते. अंगेला मैर्केल की तुलना हिटलर के साथ नहीं की जानी चाहिए और वोल्फगांग शोएबले का चौथे राइष से कोई लेना देना नहीं है. सिप्रास और उनके लोग विवेक और चेतना की जगह बदतमीजी और बुरा बर्ताव दिखा रहे हैं. ईयू को जल्द ही ऐसी नीतियों के बारे में सोचना होगा जिससे ग्रीस का यूरोपीय संघ से निकलना आसान किया जा सके, इससे पहले की वह पूरे यूरोप को ही ले डूबे. यायावर को रोकना नहीं चाहिए, खास कर इस टाइप के लोगों को.