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बर्लिन में लगा अक्षरों का अनूठा मेला

३ दिसम्बर २०१०

जर्मनी की राजधानी बर्लिन के एक म्यूजियम में नामों का मेला लगा हुआ है. वहां एक बड़े से एच और एक छोटे से सफेद ई समेत सैकड़ों व्यापारिक नाम प्रदर्शित किए गए हैं. इन नामों को इतिहास के पन्नों से खोजकर लाया गया है.

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बर्लिन का एक और अनूठा म्यूजियमतस्वीर: AP

एच जर्मन शब्द हॉप्टबानहोफ को प्रदर्शित करता है जिसका अर्थ है सेंट्रल स्टेशन यानी केंद्रीय स्टेशन जो हर शहर में पाया जाता है. इसके अलावा एक शब्द फुंक (रेडियो) भी है जो जर्मनी के एकीकरण से पहले की जिंदगी से जुड़ा है. यह जर्मन डेमोक्रैटिक रेडियो को दिखाता है.

इस प्रदर्शनी का मकसद अक्षरों को समर्पित है. इसके पीछे भावना यह है कि इंसान और घटनाएं ही नहीं बल्कि अक्षर और उनसे बने शब्द भी इतिहास में अहम होते हैं. मसलन जब जर्मनी दो हिस्सों में बंटा हुआ था तब बर्लिन की मशहूर जगह आलेक्सांद्र प्लात्स के बाजार में 2 मीटर ऊंचा एम लिखा हुआ था.

इसी तरह पश्चिमी जर्मनी के लोग डिपार्टमेंटल स्टोर हेरती को इसके अक्षर एच और उसके लिखे जाने के खास तरीके से अच्छी तरह पहचानते थे. जब 2008 में यह कंपनी दीवालिया घोषित की गई तो इसके नाराज कर्मचारियों ने विरोध जताने के लिए वैसे ही एक बड़े से एच को बर्लिन की स्प्री नदी में डुबो दिया.

पुराने जमाने के ये दो अक्षर इतिहास के दो पन्नों की तरह हैं इसलिए बर्लिन के म्यूजियम में लगाई गई प्रदर्शनी में इनकी अहम जगह है. अक्षरों का यह संग्रह इतना बड़ा है कि कुछ सालों में इसके लिए अलग से एक म्यूजियम बनाए जाने की योजना है. इसका मकसद जर्मनी के इतिहास को एक अलग तरीके से संभाल कर रखने का है.

अक्षरों के संग्रह का यह विचार पांच साल पहले दो महिलाओं के दिमाग में आया. कम्यूनिकेशन डिजाइनर बारबरा डेशांट और बर्लिन के सिटी म्यूजियम में काम करने वालीं उनकी साथी अन्या शूल्त्स ने अक्षर जमा करने शुरू किए और तीन साल में उनके पास 50 ऐसी चीजें हो गईं. अगले दो साल में उनके इस अभियान को जबर्दस्त समर्थन मिला और उनका संग्रह 10 गुना बढ़कर 500 तक पहुंच गया.

अब इस संग्रह को देखने के लिए जर्मन ही नहीं बल्कि दुनियाभर से पर्यटक पहुंच रहे हैं. इनमें फिनलैंड, जापान, रूस और अमेरिकी सैलानियों की तादाद तो बढ़ती ही जा रही है. कला प्रेमियों के अलावा अक्षरों से जुड़े पेशों के लोग मसलन टाइपोग्राफरों और डिजाइनरों को भी यह प्रदर्शन खूब लुभा रही है.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः ए कुमार

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