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समाज

बलात्कारियों से आखिर कैसे मिलेगा छुटकारा?

शिवप्रसाद जोशी
१७ सितम्बर २०१८

हरियाणा में आए दिन हत्या, बलात्कार और अपहरण के मामले आ रहे हैं. रेवाड़ी के गैंगरेप मामले ने तो क्रूरता की हदें पार कर दीं हैं जिसमें एक सैनिक भी आरोपी बताया जाता है. 

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Symbolbild Protest gegen Vergewaltigungen in Indien
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Saurabh Das

कल्पना चावला और विमेश फोगाट का हरियाणा अजीब विरोधाभासों का राज्य है. खेलों में सबसे ज्यादा मेडल लाने वाला राज्य, खराब लिंगानुपात में सुधार करता राज्य, बेटियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी बनाता राज्य, आज महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध वाला राज्य भी बन गया है.

अपराधियों को कानून का डर नहीं रह गया है और वे अपनी मर्दवादी खूंखारी में खुलेआम घूम रहे हैं. बलात्कार जैसी बर्बरताएं सिर्फ हवस का मामला नहीं, ये वर्चस्ववादी पुरुष कुंठा भी है. वे महिलाओं की जीत और उनकी बुलंदी बर्दाश्त ही नही कर पा रहे हैं. बलात्कार की शिकार, सीबीएसई परीक्षा में टॉप करने वाली लड़की को भारत सरकार ने सम्मानित भी किया था. अपनी बेटी के लिए इंसाफ मांगती, लड़की की मां ने मीडिया से कहा, "सरकार बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की बात करती है, लेकिन हमें अपनी बेटियों को पढ़ाने के लिए क्या यही कीमत चुकानी होगी?" इस सवाल का जवाब शायद किसी के पास नहीं है.

बेशक हरियाणा को अपनी पीठ थपथपानी चाहिए. राज्य के खिलाड़ियों ने एशियाई खेलों में पांच गोल्ड, पांच रजत और आठ कांस्य के साथ कुल 18 पदक जीते हैं. इसी तरह हरियाणा कॉमनवेल्थ खेलों में 22 पदकों के साथ देश में सबसे टॉप का राज्य है. लेकिन इन सुनहरी सफलताओं की रोशनी तले अंधेरा भी देखना चाहिए.

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हरियाणा में औरतों के खिलाफ हिंसा के मामलों में चिंताजनक बढ़ोत्तरी देखी गई है. 2015-16 में बलात्कार के 1026 मामले थे. 2016-17 में 1193 और 2017-18 में 1413. 2014-15 से अब तक बलात्कार के मामलों में 47 प्रतिशत और अपहरण के मामलों में 100 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है. सितंबर 2014 से लेकर सिंतबर 2018 तक यौन उत्पीड़न के मामले 26 प्रतिशत बढ़ गए हैं.

सरकार ने माना कि अपराध बढ़ रहे हैं और महिला पुलिस थाने खोलने के बावजूद हालात सुधरे नहीं है. गैंगरेप के मामले में भी हरियाणा पूरे देश में सबसे बुरी स्थिति में है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक 2016 में राज्य में हर दो दिन में एक गैंगरेप मामला दर्ज हुआ है. इसी तरह हर रोज तीन मामले बलात्कार के भी पाए गए हैं. 2014 से एनसीआरबी ने गैंगरेप को बलात्कार की एक सब-कैटगरी के रूप में चिंहित करना शुरू किया था.

पुलिस का दावा है कि हरियाणा में अपराधों की संख्या में अधिकता दिखाती है कि एफआईआर ज्यादा लिखाई जा रही हैं. पुलिस के मुताबिक 20 प्रतिशत रेप के मामले खारिज भी हुए हैं क्योंकि वे जांच के बाद सही नहीं पाए जाते. 2017 में ऐसी 327 एफआईआर रद्द की गईं और इस साल जून तक 138 रद्द हुई. हरियाणा लिंगानुपात के मामले में कुख्यात रहा है. लेकिन इसे कुछ कम करते हुए हरियाणा ने 2017 में प्रति हजार लड़कों पर 914 लड़कियों का अनुपात बनाया है. इससे पहले के सालों में ये प्रति हजार पुरुष पर क्रमशः 900 और 871 स्त्रियों का था. 2011 में ये 834 था.

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कुल मिलाकर आंकड़े डराते हैं और बड़ा दुख और अवसाद होता है कि आखिर ये देश किस ढलान में फिसल रहा है. महसूस होता है मानो प्रकट-अप्रकट खूंखार, घात लगाए घूम रहे हैं. अभियुक्त मुश्किल से पकड़े जाते हैं और एफआईआर लिखाने के खून पसीना एक कर देना होता है. पुलिस भी सत्ता और राजनीति के दबावों में घिरी है. अपराधियों को लगता है कि कोई उनका क्या बिगाड़ लेगा. बलात्कार जैसे अपराधों की दर बढ़ने की एक प्रमुख वजह ये भी है.

अव्वल तो पीड़ित पक्ष ही कई बार लोकलाज के भय में आगे नहीं आता, फिर रिपोर्ट दर्ज कराने को लेकर जो झेलना पड़ता है, वो किसी यातना से कम नहीं, फिर अदालतों का चक्कर. समाज के ताने, फब्तियां, नैतिकता की ठेकेदारी- पीड़ितों को इस तरह शारीरिक और मानसिक यंत्रणाओं से गुजरना पड़ता है. बलात्कारी जानते हैं कि समाज उन्हें आंख दिखाने की हिम्मत नहीं करेगा. और ये सब तब भी हो रहा है जबकि कड़े कानून बन गए हैं, अदालतों को फास्ट ट्रैक चलाने के आदेश हैं.

इधर कुछ मामलों में अपराधियों को सजाएं भी हुई हैं लेकिन इन सजाओं और सख्तियों का कोई संदेश, अपराधियों को डराने या उन्हें काबू में करने में सफल होता नहीं दिखता. हरियाणा हो या केरल, जहां भी आप नजर दौड़ाएं, बलात्कार जैसी घटनाओं की रोकथाम के लिए वैधानिक, दंडात्मक, नैतिक, सामाजिक जो भी उपाय या उपकरण हैं, वे फीके ही नजर आते हैं. ऐसे में यही उम्मीद करनी चाहिए कि अपराध से लड़ने का साहस और प्रतिरोध बना रहे.

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