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बस्तर के बांसुरी के दीवाने

३० मार्च २०१५

छत्तीसगढ़ की बांसुरी की धुन अब इटली समेत कई पश्चिमी देशों तक पहुंच गई है. बस्तर के शिल्पग्राम को हाल ही में दिल्ली की एक निर्यात कंपनी की ओर से दो हजार बांसुरियां बनाने का ऑर्डर मिला है.

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स्कूलों में बांसुरी का प्रशिक्षणतस्वीर: DW/S. Cords

बस्तर में बनने वाली इस बांसुरी की खासियत है कि इसे फूंककर बजाने के अलावा इसे लहराने से भी मधुर ध्वनि निकलती है. नारायणपुर स्थित छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प बोर्ड के क्षेत्रीय प्रबंधक बीके साहू के अनुसार बांसुरी की मांग न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी खूब है. इटली, स्वीडन, फ्रांस, मेडागास्कर और कई अन्य देशों में इसे भेजा जाता है. नई दिल्ली की एक निर्यात कंपनी ने हाल ही में दो हजार बांसुरियों का ऑर्डर दिया है.

शिल्पग्राम में शिल्पी बांसुरी तैयार कर रहे हैं. वहीं बांसुरी के प्रशिक्षक संतोष पॉल और प्राणजीत देव बर्मन ने बताया कि इस बांसुरी पर चित्रकारी करने के बाद इसकी मांग और ज्यादा बढ़ जाती है.

Deutschland Archäologie Eine 35.000 Jahre alte Schwanenflügelknochen-Flöte aus der Eiszeit
35 हजार साल पुरानी बांसुरीतस्वीर: picture-alliance/dpa

गढ़बेंगाल के पंडीराम मण्डावी बांसुरी कला के प्रदर्शन के लिए दो बार इटली और दो बार रूस की यात्रा कर चुके हैं. इस बांसुरी को मुख्यतः बस्तर के कलाकार तैयार करते हैं. साथ ही इसे महानगरों में संचालित छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प बोर्ड के स्टॉल में बिक्री के लिए रखा जाता है.

बस्तर में इस बांसुरी की कीमत महज सौ रूपये तक है. मगर विदेशों में इसे एक हजार रूपये तक बेचा जाता है. इस कला का एक पहलू यह भी है कि शिल्पग्राम में रहने वाले बहुत से लोग नक्सल पीड़ित हैं. इन्हें रोजी रोटी कमाने के लिए बांस की कलाकृति बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है. इनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा है.

एमजे/आईबी (वार्ता)