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बांग्लादेश में बेकाबू होते हालात

प्रभाकर२६ अप्रैल २०१६

बांग्लादेश में तीन दिनों के भीतर एक प्रोफेसर और समलैंगिकों के अधिकारों की वकालत करने वाली एक पत्रिका के संपादक समेत तीन लोगों की हत्या से साफ है कि देश में हालात बेकाबू होते जा रहे हैं.

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Bangladesch Aktivist getötet
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/A.M.Ahad

बांग्लादेश में इससे पहले भी धर्मनिरपेक्षता के समर्थन और कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज उठाने वाले कई ब्लॉगरों की हत्या हो चुकी है. लेकिन अब तक महज एक मामले में अभियुक्तों को सजा हुई है. इन हत्याओं के बाद सरकार और पुलिस की चुप्पी से साफ है कि वह भी या तो कट्टरपंथियों से पंगा नहीं लेना चाहती या फिर वह उनके खिलाफ कार्रवाई में असमर्थ है. वहां बढ़ते इस कट्टरपंथ का असर देर-सबेर पड़ोसी पश्चिम बंगाल समेत पूरे देश पर पड़ना लाजिमी है.

बांगलादेश में बीते साल से ही कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज उठाने वालों की हत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. बीते साल कोई आधा दर्जन लोगों की हत्या कर दी गई थी. लेकिन महज एक मामले में ही कुछ अभियुक्तों को सजा सुनाई गई है. इसके बाद अभी इसी महीने के शुरू में एक छात्र नजीमुद्दीन समद की सरेराह धारदार हथियारों से गोद कर हत्या कर दी गई. अभी तीन दिन पहले बांग्लादेश के राजशाही विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रेजाउल करीम सिद्दीकी की बेहद नृशंसता से हत्या कर दी गई. अब ताजा मामले में समलैंगिकों के हक में आवाज उठाने वाले देश की पहली पत्रिका रूपवान के संपादक जुलहाज मन्नान समेत दो लोगों की सोमवार शाम को उनके घर में घुस कर हत्या कर दी गई. पूरी दुनिया में इन हत्याओं की निंदा हुई है. बांगलादेश सरकार ने भी हत्यारों को किसी भी कीमत पर गिरफ्तार करने की बात कही है. लेकिन ऐसे मामलों में रिकॉर्ड उसके खिलाफ है.

पुलिस की विफलता

देश में इस्लामी कट्टरपंथी तो पहले से ही सक्रिय थे. लेकिन हाल के महीनों में उनकी गतिविधियां तेज हुई हैं. राजधानी ढाका की प्रमुख सड़कों पर दिनदहाड़े होने वाली इन हत्याओं से साफ है कि सरकार और पुलिस चाह कर भी इस मामले में कुछ नहीं कर पा रही है. प्रोफेसर की हत्या के मामले में दो दिन पहले ही एक छात्र को गिरफ्तार किया गया था. ताजा मामले में भी पुलिस ने अहम सुराग मिलने का दावा किया है. लेकिन उसके दावे पर देश के बुद्धिजीवी तबके को संदेह ही है. ब्लॉगरों व बुद्धिजीवियों की हत्या के तमाम मामलों का अब तक खुलासा नहीं हो सका है. इस्लामी चरमपंथियों की सक्रियता को देश में इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) और अल कायदा के बढ़ते असर के साथ भी जोड़ कर देखा जा रहा है.

वर्ष 2013 में राजीव हैदर नामक एक ब्लॉगर की हत्या से शुरू हुआ यह सिलसिला लगातार तेज हो रहा है. अभिजीत राय, वशीकुर रहमान बाबू, अनंत विजय दास और निलय चटर्जी जैसे नाम जुड़ने की वजह से यह सूची लगातार लंबी होती जा रही है. यह तमाम हत्याएं लगभग एक तरीके से ही हुई हैं. इन सबमें अल कायदा की बांग्लादेश शाखा अंसार अल इस्लाम का नाम सामने आया है. बावजूद इसके सरकार ने इस संगठन पर अंकुश लगाने की दिशा में अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है.

रूपवान पत्रिका खुद देश में मानवाधिकारों और प्यार करने की आजादी को बढ़ावा देने वाला एक मंच व प्रकाशन होने का दावा करती थी. फेसबुक पर इस्लाम से संबंधित विभिन्न गुटों की ओर से रूपवान की पूरी टीम को पिछले कुछ समय से लगातार धमकियां मिल रही थीं. देश में समलैंगिक अधिकारों की वकालत करने वाले सबसे बड़े संगठन ब्वायज ऑफ बांग्लादेश ने इसकी पुष्टि की है. मन्नान वर्ष 2005 से ही इस संगठन का प्रमुख सदस्य था. संगठन के कई कार्यकर्ता लंबे अरसे से आतंक के साए में दिन काट रहे हैं.

धार्मिक कट्टरपंथ

देश में धार्मिक कट्टरपंथ की जड़ें काफी पुरानी हैं. हत्याओं का दौर शुरू होने के बाद से ही बांग्लादेश सरकार इनमें आईएस और अल कायदा का हाथ होने का खंडन करती रही है. उसका दावा है कि यह स्थानीय आतंकियों का काम है. बावजूद इसके सरकार इन मामलों में किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकी है. राजीव हैदर की हत्या के मामले में कुछ लोगों को सजा मिलने के बाद अभी सरकार अफनी कामयाबी पर पीठ थपथपा ही रही थी कि कट्टरपंथियों ने तीन लोगों की हत्या कर सरकार को करारा जवाब दे दिया.

देश में हिंदू अस्पसंख्यक भी इस बढ़ते कट्टरपंथ से अछूते नहीं हैं. एक धर्मनिरपेक्ष सामाजिक कार्यकर्ता कमल लोहानी कहते हैं, "वर्ष 1971 में देश की आजादी के समय स्थानीय आबादी में 34 फीसदी हिंदू थे जो अब महज आठ फीसदी रह गए हैं. इनमें से कई तो भारत चले गए लेकिन बाकियों को इस्लामी कट्टरपंथियों का शिकार होना पड़ा है." अल्पसंख्यक आयोग के प्रमुख राणा दासगुप्ता कहते हैं, "अकेले इसी साल जनवरी से मार्च के बीच अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार उल्लंघन के 732 मामले सामने आए हैं. इससे हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है."

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इन हत्याओं से पूरी दुनिया में बांग्लादेश की छवि धूमिल हो रही है. देश की साख बचाने के लिए सरकार को ऐसे तत्वों पर अंकुश लगाने के लिए कठोर उपाय करने होंगे. लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि तमाम प्रतिकूल हालात के बीच किसी तरह सत्ता से चिपकने की कोशिश करने वाला देश का राजनीतिक नेतृत्व क्या इसका साहस दिखा पाएगा? अगर नहीं तो बांग्लादेश में विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने का यह सिलसिला फिलहाल नहीं थमेगा.