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बाढ़ से बन आई है चरमपंथियों की

७ अगस्त २०१०

पाकिस्तान में आई भयानक बाढ़ इस हफ़्ते जर्मन मीडिया का एक प्रमुख विषय रहा. रेडियो व टीवी में विस्तृत रिपोर्टें दी गईं. समाचार पत्रों में भी रिपोर्टों के अलावा उस पर टिप्पणियां की गई हैं.

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पाकिस्तान में बाढ़तस्वीर: AP

संयुक्त राष्ट्र बाल संस्था यूनिसेफ़ के अनुसार उत्तर पाकिस्तान में आई इस भयानक बाढ़ से लगभग 30 लाख लोग प्रभावित हैं. मृतकों की संख्या 1600 बताई जा रही है, लेकिन राहतकर्मियों का कहना है कि यह संख्या तीन हज़ार तक पहुंच सकती है. इस इलाके में सेना और तालिबान विद्रोहियों के बीच लड़ाई चल रही थी. सरकार राहत पहुंचाने की स्थिति में नहीं है और ऐसी स्थिति में पूरा इलाका चरमपंथियों के हाथों में जा सकता है. समाचार पत्र सुएडडॉएचे त्साइटुंग में इस सिलसिले में लिखा गया है -

रिटायर्ड जनरल तलत मसूद का कहना है कि अफ़सोस की बात है कि सरकार लाचार लगती है. हालांकि बचाव के काम में 30 हज़ार सैनिकों को भेजा गया है, लेकिन बाढ़ग्रस्त इलाकों के बहुत से लोगों को शिकायत है कि उन्हें मदद नहीं मिली है. इस बीच पाकिस्तान के अनेक लोग पूछ रहे हैं कि बाढ़ पीड़ितों के प्रति राष्ट्रपति का समर्थन नदारद क्यों हैं. जनरल मसूद कहते हैं कि उन्हें डर है कि अब चरमपंथी संगठन मैदान में कूदेंगे. और यही हो रहा है. इस्लामपंथी फ़लाह-इ-इंसानियत प्रतिष्ठान की ओर से 13 फ़ील्ड कैंप और 6 क्लिनक खोले गए हैं. सरकारी महकमों में इससे बेचैनी फ़ैल गई है.

अमेरिका और चीन ने पाकिस्तान के बाढ़ पीड़ितों के लिए मदद की घोषणा की है. दोनों देश पाकिस्तान में अपनी छवि बनाए रखने या सुधारने की कोशिश कर रहे हैं. चरमपंथी संगठन तो सक्रिय हैं ही. समाचार पत्र नोय त्स्युरिषर त्साइटुंग की राय में छवि बनाने की होड़ लगी हुई है. एक लेख में कहा गया है -

पाकिस्तान के लिए यह आपदा एक कसौटी है. चरमपंथियों के इन तथाकथित राहत संगठनों में से कुछ एक के आतंकवादियों के साथ संपर्क हैं. वैसे अनेक प्रेक्षकों को संदेह है कि वे बाढ़ से बहुत अधिक फ़ायदा उठा पाएंगे. लेकिन उन्हें अपने काम की वजह से सम्मान मिल सकता है. पांच साल पहले भी ऐसा देखा गया था. पाकिस्तानी कश्मीर में आए भयानक भूकंप के बाद सन 2005 में चरमपंथी संगठनों ने तुरंत राहत संगठनों के रूप में काम करना शुरू कर दिया था. उसके बाद उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ गई थी.

और राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी ब्रिटेन की यात्रा पर थे. इस यात्रा के लिए उन्होंने 6 दिन का समय लिया. लेकिन बाढ़ के दौरान ऐसी विदेश यात्रा की जमकर आलोचना शुरू हो गई. इस सिलसिले में समाचार पत्र फ़्रांकफ़ुर्टर रुंडशाऊ का कहना है -

यात्रा के लिए ऐसे समय को चुनने के ख़िलाफ़ अपना विरोध स्पष्ट करने के लिए पाकिस्तानी मूल के दो ब्रिटिश नेताओं ने ज़रदारी के साथ मुलाकात को रद्द कर दिया. लेबर पार्टी के सांसद खालिद महमूद का कहना था कि बाढ़ की भयानक स्थिति को देखते हुए उन्हें देश में रहना चाहिए था. उन्होंने कहा कि फ़्रांस और इंगलैंड में सैलानी के बदले उन्हें देश में लोगों की मदद करनी चाहिए थी. इस्लामाबाद में भी विरोधी नेताओं ने उनकी वापसी की मांग की. सरकार की ओर से इसका विरोध किया गया है. लंदन में पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने कहा कि इससे क्षेत्रीय शांति खतरे में पड़ सकती है.

समाचार पत्र नोय त्स्युरिषर त्साइटुंग में कराची में भड़की हिंसा की भी रिपोर्ट दी गई, जिसमें दर्जनों की मौत हो चुकी है. रिपोर्ट में कहा गया है -

सोमवार शाम को चार आततायियों ने एक मस्जिद में गोली चलाकर सिंध की प्रादेशिक विधायिका के सदस्य रज़ा हैदर की हत्या कर दी. हैदर मुत्ताहिदा क़ौमी मूवमेंट के नेता थे. हत्या के तुरंत बाद शहर में दंगाई निकल पड़े, और उन्होंने चुन-चुनकर पश्तूनों को मारना शुरू किया. कई सालों से कराची में एमक्युएम और पश्तूनों की पार्टी एएनपी के सदस्यों के बीच खूनी झड़पें जारी हैं. स्थिति नियंत्रण से बाहर है. एमक्यूएम के नेताओं ने एलान किया है कि वे इस ख़ून का बदला लेंगे. इस साल मुहाजिरों और पश्तूनों के बीच झड़पों में कराची में लगभग 300 लोगों की मौत हो चुकी है.

बर्लिन से प्रकाशित दैनिक डी वेल्ट में दिल्ली की ट्रैफ़िक पर एक रिपोर्ट दी गई है. दो महीने पहले दिल्ली की पुलिस ने नागरिकों से अपील की थी कि वे फ़ेसबुक पर ट्रैफ़िक की स्थिति में बेहतरी के लिए अपने सुझाव दें. अब तक दिल्ली पुलिस के पेज के 17 हज़ार से अधिक मित्र हो चुके हैं. डी वेल्ट का इस सिलसिले में कहना है -

डिजिटल सूचनाओं की मदद से पुलिस ने अब तक जुर्माने के 665 नोटिस भेजे हैं. अगर पास में कोई सिपाही न भी हो, तब भी ट्रैफ़िक कानून तोड़ने पर सज़ा मिल सकती है. मोबाइल कैमरे की मदद से हर कोई पुलिस की मुखबिरी कर सकता है. पुलिस के फ़ेसबुक पेज पर दर्जनों वीडियो और लगभग तीन हज़ार तस्वीरें भेजी गई हैं. शायद दिल्ली के लोग सोशल नेटवर्क की मदद से भविष्य में दुर्घटनाओं में कमी ला पाएंगे.

संकलन: युलिया थिएनहाउस

संपादन: उभ/वी कुमार

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