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बातचीत का अनंत सिलसिला

बैर्न्ड रीगर्ट/एमजे२३ जून २०१५

यह इरादा था या नाकामी? कहना मुश्किल है कि ग्रीस पर ताजा शिखर सम्मेलन भी विफल क्यों हो गया. डॉयचे वेले के बैर्न्ड रीगर्ट का कहना है कि वार्ता का अनंत सिलसिला चल रहा है, लेकिन कोई हल नहीं निकल रहा.

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तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/G.V. Wijngaert

ग्रीस की सरकार में कट्टर वामपंथी विचारकों के मन में उल्टी गिनती की समाप्ति से पहले कुछ विवेक आता लग रहा है. प्रधानमंत्री सिप्रास द्वारा देश को दिवालियेपन की ओर धकेलने के बाद, जबकि अर्थव्यवस्था फिर से सिकुड़ रही है, लोग खातों से पैसा निकाल रहे हैं, बैंक आगा पीछा सोच रहे हैं और पर्यटक बुकिंग करने से बच रहे हैं, एथेंस के खिलाड़ियों ने आखिरकार बातचीत के लिए एक और पेशकश मेज पर रखने का फैसला किया है.

हालांकि इस नाटकीयता की कोई जरूरत ही नहीं थी. जो समाधान अब सामने आ रहा है उसपर ग्रीस की सरकार अप्रैल में भी सहमत हो सकती थी. बातचीत की अपनी रणनीति के चलते ग्रीस ने यूरोपीय सहयोगियों, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और यूरोपीय केंद्रीय बैंक के अलावा विदेशी निवेशकों का भी भरोसा खो दिया. जबकि भरोसा इस कच्चे माल से महरूम देश का एकमात्र संसाधन है.

वार्ता के लिए अपनी पेशकश देने में देर कर ग्रीस सरकार ने फैसला लेने में भी देर करवा दी है. यूरोजोन के वित्तमंत्रियों ने कोई फैसला नहीं लिया क्योंकि फैसले के लायक दस्तावेज ही नहीं थे. राज्य व सरकार प्रमुखों की शिखर भेंट को समझौते का मंच होना था, गैरपेशेवर निर्देशन की वजह से परामर्शदायी सम्मेलन भेंट ही बनकर रह गया. यह शिखर भेंट की एक नई श्रेणी है जिसे चांसलर अंगेला मैर्केल ने जमावड़े की विफलता से ध्यान हटाने के लिए ईजाद किया. यदि ग्रीस और यूरोजोन की हालत इतनी खराब न होती, तो यह हंसने की बात होती.

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बैर्न्ड रीगर्ट

यूरोप की सबसे पुरानी सरकार प्रमुख संकटमोचक होने की अपनी छवि के साथ न्याय नहीं कर पाई. बहुत सारे सवाल थे, लेकिन जवावों की कमी थी, वे असहाय दिख रही थीं. अलेक्सिस सिप्रास ने अपने यूरोपीय सहयोगियों को फिर से इंतजार कराया और अपनी मनमानी चलाई. उन्हें पता है कि अंत में यूरोपीय देश ग्रीस को दिवालिया नहीं होने देंगे, क्योंकि एकीकृत मुद्रा के लिए उसके नतीजे अकलनीय होंगे. मतलब वार्ता का एक और दौर, गुरुवार को एक और शिखर भेंट.

इस बीच सच्चाई की घड़ी करीब आती जा रही है. 30 जून के बाद यूरो जोन से विदाई का खतरा. कम से कम ग्रीस सरकार ने समझ लिया लगता है कि मौजूदा बेलआउट पैकेज को बढ़ाना जरूरी है ताकि तकनीकि रूप से पैसे का भुगतान किया जा सके. इसके लिए जरूरी है कि अगले 48 घंटों में ग्रीस और दाता संस्थानों के बीच सहमति हो जाए. ग्रीक प्रधानमंत्री सिप्रास को यूरोजोन के बाकी 18 सरकार प्रमुखों ने ठोकर मारी है. लिथुएनिया की राष्ट्रपति ग्रायबाउसकाइटे का कहना है कि उन्हें अब जिम्मेदारी लेनी होगी, वे सिर्फ और धन की मांग नहीं कर सकते. क्या इस चेतावनी का असर होगा? क्या सिप्रास किए गए वादों को देश में मनवा पाएंगे? इसका जवाब कोई देने की हालत में नहीं है.

सिर्फ एक बात तय है. ग्रीक त्रासदी का अंत नहीं हुआ है. दूसरे बेलआउट पैकेज पर सहमति हो जाने के बाद आर्थिक रूप से खस्ताहाल ग्रीस कुछ और हफ्ते राहत की सांस ले सकता है. उसके बाद कर्ज समस्या के टिकाऊ समाधान पर मुश्किल वार्ता की बारी है. उसके बाद शायद कर्जमाफी पर बात करनी होगी और सरकारी संरचनाओं में गहन सुधारों की भी. हालात आगे और खराब होंगे.