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बादलों में छिपे हैं बड़े सवालों के जवाब?

२८ अप्रैल २०१७

आज भी हम इस बात को नहीं जानते कि उमड़ते, घुमड़ते बादल, आखिर बनते कैसे हैं? वे कब बरसते हैं? जर्मन वैज्ञानिक इन सवालों का जबाव ढूंढ रहे हैं.

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NASA Operation IceBridge
तस्वीर: Getty Images/M.Tama

हमारी जलवायु पर धरती पर मौजूद चीजों के अलावा आकाश का भी बहुत असर होता है. इसीलिए आल्प्स की पहाड़ियों में तीन हजार मीटर ऊंची चोटी त्सुगश्पित्से पर बने जर्मन रिसर्च सेंटर श्नीफेर्नेरहाउस में वैज्ञानिक आकाश के कई रहस्यों को समझने में भी जुटे हैं. लेजर तकनीक की मदद से बादलों को समझने की कोशिश हो रही है. क्या पता बादल ही हमारी धरती और वायुमंडल को ठंडा रखने में काम आ सकें.

मौसम विज्ञानी प्रोफेसर मानफ्रेड वेनडिश कहते हैं, "बादलों में क्या होता है और सौर विकिरण पर इनका क्या असर होता है, ये ऐसे बड़े सलाल हैं जो जलवायु संबंधी रिसर्च के सामने चुनौती हैं."

अक्सर बादल रिसर्च सेंटर के लेवल पर ही होते हैं. वैज्ञानिक इस दौरान उनका नमूना भी लेते हैं. एक लैब में वाष्पीकरण से बने बादलों की भाप का विश्लेषण किया जाएगा. आंकड़े बता सकते हैं कि कब बारिश वाले बादल बन रहे हैं और बादल कितने सौर विकिरण को परावर्तित कर रहे हैं.

पर्यावरण रसायन विज्ञानी श्टेफान मेर्टैस कहते हैं, "बादल वायुमंडल के विकिरण संबंधी व्यवहार पर गहरा असर डालते हैं. जलवायु पर उनका बहुत बड़ा असर होता है, लेकिन उनके बारे में बहुत कम जानकारी है."

श्नीफेर्नेरहाउस में लगे ज्यादातर मीटर साल भर ऑटोमैटिकली चलते हैं. इन मीटरों की वजह से वहां हर वक्त मौजूद न रहने के बावजूद वैज्ञानिकों को डाटा मिलता रहता है. इस दौरान पहाड़ी की भी जांच होती हैं. त्सुगश्पित्से चूना पत्थर की चट्टान है. सर्दी के कारण साल भर यह जमी रहती है. चट्टान अगर गर्म हुई तो वह चटक कर टूटने लगेगी.

वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन को लेकर एक वैश्विक तस्वीर बनाना चाहते हैं. अत्याधुनिक मशीनों के जरिए सटीक जानकारियां मिल रही हैं. पता चल रहा है कि मौसम कैसे मिजाज बदलता है और जलवायु पर इसका क्या असर होता है. बेहद सटीक लेजर बादलों में समाए मिलीमीटर जितने छोटे कणों को मापते हैं. बादल भी ग्लोबल वॉर्मिंग के असर को कम करते हुए धरती और वायुमंडल को ठंडा रख सकते हैं. वैज्ञानियों का बड़ा लक्ष्य यह भी जानना है कि भविष्य में पृथ्वी पर कितनी बारिश होगी.

ओएसजे/एके