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बार बार पढ़ी रिपोर्ट

१६ सितम्बर २०१३

हिन्दी के विकास में इंटरनेट का योगदान, मंथन द्वारा विज्ञान, पर्यावरण व तकनीक की जानकारियों पर पाठकों से मिली प्रतिक्रियाओं को आपसे शेयर करते हैं...

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16.06.2012 hin und weg colorit schwarzwald

हर हफ्ते की तरह आज का मंथन भी खास लगा. जंगल बचाने का जर्मन फार्मूला हमें बहुत अच्छा और प्रेरणादायक लगा. जंगलों की सुरक्षा को लेकर जर्मन कानून काफी सख्त और पर्यावरण के अनुकूल है. भारत में जंगलों का आकार कम होता जा रहा है लेकिन इस विनाश की ओर न तो सरकार और न ही आम आदमी गंभीर है. हमें जंगल बचाने के जर्मन फार्मूला से सीख लेनी होगी. पर्यावरण के अनुकूल नंबर सेवन साइकिल का कंसेप्ट आकर्षक लगा. भारत जैसे देशों, जहां अधिकांश लोग गरीब हैं, उनके लिए 600 रुपये की साइकिल शान की सवारी बन जाएगी. वैज्ञानिकों को दिए जाने वाले नोबल पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया की जानकारी भी दिलचस्प और सूचनाप्रद थी. विज्ञान और पर्यावरण से जुड़े विविध विषयों की जानकारी हम तक घर बैठे पहुंचाने के लिए मंथन की पूरी टीम को बधाई और धन्यवाद.

चुन्नीलाल कैवर्त, ग्रीन पीस डी-एक्स क्लब, जिला बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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दिल्ली गैंगरेप के शेष चार दोषियों को तो न्यायालय द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन उस संगीन वारदात का प्रमुख अपराधी नाबालिग होने की स्थिति में माकूल सजा नहीं पा सका. यहां यह तर्क दिया जा सकता है कि प्रमुख अपराधी उम्र की लिहाज से नाबालिग हो सकता है, परन्तु उसमें नाबालिग वाली मासूमियत नहीं. इसलिए सजा में किसी प्रकार की रियायत अथवा उसके प्रति रहम प्रदर्शित किया जाना संतोषजनक जान नहीं पड़ता. वारदात की गंभीरता के मद्देनजर उसे भी वही सजा मिलनी चाहिए, जो किसी जघन्य कृत्य के लिए दी जाती है. ऐसे असाधारण मामलों में रियायत नहीं, बल्कि सजा का ऐसा सख्त प्रावधान होना चाहिए जिसकी मिसाल से अपराध करने से पहले अपराधी की रूह कांप उठे.

Police escort men (face covered) accused of a gang rape, outside a police station in Noida on the outskirts of New Delhi August 31, 2013. According to the local media, police have arrested four persons including two police constables over the gang rape of a woman in an apartment in Noida on Saturday. REUTERS/Stringer (INDIA - Tags: CRIME LAW TPX IMAGES OF THE DAY)
तस्वीर: Reuters

डॉ. हेमंत कुमार, प्रियदर्शिनी रेडियो लिस्नर्स क्लब, भागलपुर, बिहार

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Kepler-62 and the Solar System The diagram compares the planets of the inner solar system to Kepler-62, a five-planet system about 1,200 light-years from Earth in the constellation Lyra. The five planets of Kepler-62 orbit a star classified as a K2 dwarf, measuring just two thirds the size of the sun and only one fifth as bright. At seven billion years old, the star is somewhat older than the sun. Much like our solar system, Kepler-62 is home to two habitable zone worlds, Kepler-62f and Kepler-62e. Kepler-62f orbits every 267 days and is only 40 percent larger than Earth, making it the smallest exoplanet known in the habitable zone of another star. The other habitable zone planet, Kepler-62e, orbits every 122 days and is roughly 60 percent larger than Earth. The size of Kepler-62f is known, but its mass and composition are not. However, based on previous exoplanet discoveries of similar size that are rocky, scientists are able to determine its mass by association. The two habitable zone worlds orbiting Kepler-62 have three interior companions, two larger than the size of Earth and one about the size of Mars. Kepler-62b, Kepler-62c and Kepler-62d, orbit every five, 12, and 18 days, respectively, making them very hot and inhospitable for life as we know it. The artistic concepts of the Kepler-62 planets are the result of scientists and artists collaborating to help imagine the appearance of these distant worlds. The Kepler space telescope, which simultaneously and continuously measures the brightness of more than 150,000 stars, is NASA's first mission capable of detecting Earth-size planets around stars like our sun.
तस्वीर: NASA Ames/JPL-Caltech

आपकी वेबसाइट पर विज्ञान के अन्तर्गत 'सौरमण्डल से बाहर निकलता इंसान' शीर्षक रिपोर्ट में दी गयी अदभुत जानकारी मेरे लिए एकदम नई, बेहद रोचक और बहुत ही महत्तवपूर्ण थी. डीडब्ल्यू की यह रिपोर्ट मुझे इतनी पसंद आई कि इसे न चाहकर भी कई बार पढ़ चुका हूं और बार-बार पढ़ने का यह सिलसिला अब तक जारी है. गत्ते से बनी साइकिल, कैसे दिए जाते हैं नोबेल पुरस्कार इस विषय पर नोबेल विजेताओं का चयन, नोबेल पुरस्कार की शुरूआत और उसे दिए जाने की प्रक्रिया के बारे में सटीक और महत्तवपूर्ण जानकारी मंथन में देखने और समझने को मिली. ऑटिज्म बीमारी के बारे में जानकर हैरत हुई. इस बार के मंथन में जो सबसे खास लगा वह थी जंगल बचाने की जर्मन तकनीक, जानने को मिला कि किस तरह से जर्मनी में लोग पर्यावरण के प्रति समर्पित हैं. 40 सालों में कई लाख हैक्टर जंगल का बढ़ना अपने आप में अदभुत और दुनियां के लिए एक मिसाल है. जर्मनी की इस सराहनीय और उपयोगी उपलब्धि से आज भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व को प्रेरणा लेने की जरुरत है.

आबिद अली मंसूरी, देशप्रेमी रेडियो लिस्नर्स क्लब, बरेली, उत्तर प्रदेश

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शिवप्रसाद जोशी का लेख ‘किस हिन्दी को याद करें' आपकी वेबसाइट पर पढ़ा. हिन्दी के वर्तमान ढांचे पर उनकी तल्खी कुछ हद तक सही कही जा सकती है, पर मेरी समझ में हिन्दी भाषा का वर्तमान दौर कहीं ज्यादा समर्थ और सुघड़ हुआ है. इंटरनेट ने हिन्दी के विकास और प्रसार में खूब योगदान दिया है. अब वर्चुअल दुनिया में हिन्दी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं पर ज्यादा प्रयोग होने लगे हैं. हिन्दी के मौजूदा रूप को प्रपंच अथवा खुराफाती कहना भी उचित नहीं है क्योंकि कोई भी भाषा अपने मूल स्वरूप में आगे नहीं बढ़ सकती है, उसमें लचीलापन होना ही चाहिए. उसका विकास तभी संभव है. अपने नए प्रतिमानों-प्रयोगों के साथ हिन्दी भी आगे बढ़ रही है. खोट भाषा में नहीं हमारी अभिव्यक्ति में है. मैं तो यह मानता हूं कि आज हिन्दी पहले से कहीं ज्यादा सहज, मानक और लोकप्रिय हुई है.

#21837484 - old book © Gennady Shingarev
तस्वीर: Fotolia/Gennady Shingarev

माधव शर्मा, एसएनके स्कूल, राजकोट, गुजरात

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मंथन का 53 वां एपिसोड भी हर बार की तरह डीडी1 पर नहीं देखा पाया क्योंकि यहां पाकिस्तान में जिस वक्त मंथन पेश होने का समय होता है तभी बिजली बंद होने का भी शेड्यूल है. जब कि मैंने अपने केबल टीवी वालों को हफ्ते में केवल एक घंटे के लिए ही सही डीडी1 चलाने को भी कह रखा है, लेकिन बिजली बंद होने के कारण मंथन नहीं देख पाता. आपकी वेबसाइट पर यह शो सोमवार को अपलोड होता है, डीडब्ल्यू के फेसबुक पेज पर आपकी ये मंथन वाली रिपोर्टस इसलिए नहीं देख पाता क्योंकि वे यूट्यूब पर चलती हैं और हमारे यहां यूट्यूब पिछले काफी समय से सरकारी तौर पर ब्लॉक है. इसलिए कोशिश करूंगा सोमवार से मंथन की सब रिपोर्टों को देख कर ही कुछ लिखूं .आई मिस यू माए मंथन नंबर 53, सी यू वेरी सून.
आजम अली सूमरो, ईगल इंटरनेशनल रेडियो लिस्नर्स क्लब, खैरपुर मीरस सिंध, पाकिस्तान

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संकलनः विनोद चड्ढा

संपादनः आभा मोंढे