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ठाकरे के अंतिम संस्कार में थमी मुंबई

१८ नवम्बर २०१२

शिव सेना प्रमुख और विवादित नेता बाल ठाकरे की अंतिम यात्रा में लाखों लोग शामिल हुए. मुंबई की सड़कों पर विशालकाय जनसैलाब निकल आया और चौबीसों घंटे भागती दौड़ती मुंबई कुछ समय के लिए थम गई. तोड़ फोड़ के डर से कारोबार बंद रहा.

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तस्वीर: Reuters

हिन्दूवादी विचारधारा के नेता बाल ठाकरे पर कई बार क्षेत्रीय और सांप्रदायिक नफरत फैलाने का आरोप लगा. कुछ दिनों की बीमारी के बाद शनिवार को 86 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. विवादस्पद शख्सियत होने के बाद भी मुंबई की बहुत बड़ी जनता उन्हें प्रेम करती थी और उनके आखिरी दीदार के लिए वह सड़कों पर उतर आई. उनके पार्थिव शरीर पर भी उनका ट्रेडमार्क काला चश्मा लगा था. शव को तिरंगे में लपेटा गया, जिस पर विवाद शुरू हो गया है क्योंकि बाल ठाकरे कभी भी किसी सरकारी पद पर नहीं रहे, न ही वह राज्य के मुख्यमंत्री या कोई मंत्री रहे.

उनके शरीर को ले जा रहे ट्रक को धीमी गति से मुंबई पर ले जाया गया और स्थिति को संभालने के लिए हजारों पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है. 1990 के दशक में मुंबई में भड़के सांप्रदायिक दंगों के लिए शिव सेना को जिम्मेदार ठहराया गया. हालांकि ठाकरे पर कभी कोई दोष नहीं लगा. इस घटना के बाद जहां मुसलमान लोगों ने शिव सेना से दूरी बना ली, वहीं हिन्दू कट्टरवादियों ने बाल ठाकरे को खुला समर्थन देने का फैसला किया.

शायद यही वजह है कि अंतिम यात्रा के समय भारी मात्रा में आम लोग भी शामिल हुए. मुंबई में सरकारी बाबू के पद पर काम करने वाले गणेश सावंत का कहना है, "मैं अपने 'भगवान' को श्रद्धांजलि देकर कृतार्थ महसूस कर रहा हूं. हमने अपना गॉडफादर खो दिया है."

Bal Thackeray Vorsitzender Shiv Sena Partei
तस्वीर: AFP/Getty Images

मुंबई की एक गृहिणी ज्योत्सना परब का कहना है कि उसकी जिन्दगी "हमेशा के लिए" बदल गई है, "मैं इस बात को मान ही नहीं पा रही हूं कि अब वे नहीं हैं. वह ऐसे व्यक्ति थे, जिनकी पूरी दुनिया हमारे अधिकारों को सुरक्षित करने के आस पास घूमती थी."

भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई के कारोबारियों ने तोड़ फोड़ के डर से अपने प्रतिष्ठान बंद रखे हैं. जावेरी बाजार सहित कई कारोबारी इलाके सोमवार को भी बंद रहेंगे. कारोबारियों को डर है कि अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो शिव सैनिक जबरन तोड़ फोड़ करके उनकी दुकानें बंद करा सकते हैं. शिव सैनिकों ने कई बार सड़कों पर हिंसा की है.

अखबारों में भी बाल ठाकरे के निधन की खबर ही छाई हुई है. मुंबई के डेली मिरर ने लिखा, "मुंबई लूसेस इट्स बॉस". मिड डे ने लिखा है, "कई उनसे नफरत करते थे. कई उनसे डरते थे. लेकिन कई उनके काम की वजह से उन्हें प्यार करते थे."

बाल ठाकरे मराठियों के हक की लड़ाई के बल पर अपनी राजनीति करते थे और कहते थे कि मुंबई और महाराष्ट्र में पहला अधिकार मराठियों का होना चाहिए. उनकी वजह से कई बार बिहार, गुजरात और दूसरे भारतीय राज्य से आए लोगों को हिंसा का सामना करना पड़ा.

भारत में आम तौर पर बीजेपी को छोड़ कर ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां खुले आम बाल ठाकरे का विरोध और निंदा किया करती हैं लेकिन आश्चर्य की बात है कि उनके निधन के बाद वे उन्हें "महान" नेता बता रही हैं. कई कांग्रेसी नेता भी उनके अंतिम यात्रा में शामिल हैं.

कांग्रेस नेता और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी श्रद्धांजली में कहा, "वह एक शानदार संवादकर्ता थे, जिनकी महाराष्ट्र की राजनीति में अद्भुत जगह थी."

मुंबई पुलिस ने आम लोगों से अपील की है कि वे सिर्फ जरूरत पड़ने और आपात स्थिति में ही यात्रा करें. सड़कों पर से टैक्सियां गायब हैं और दुकानदारों ने बाल ठाकरे के निधन की खबर के बाद से ही अपनी दुकानें बंद कर दी हैं. शनिवार की शाम कई बसों को नुकसान पहुंचाया गया. हालांकि इसके अलावा किसी अप्रिय घटना की खबर नहीं है.

बाल ठाकरे अपने कट्टरवादी विचारधारा की वजह से कई बार निंदा और सरकारी कार्रवाई के शिकार हुए. उन्होंने कभी भी कोई भी पद नहीं अपनाया लेकिन भारतीय चुनाव आयोग ने 1999 में उनके मत देने और चुनाव में खड़ा होने का अधिकार छीन लिया. यह पाबंदी छह साल तक रही.

उनकी अंतिम यात्रा के दौरान आम लोगों को हो रही दिक्कत पर कुछ लोगों ने सवाल भी उठाए हैं. गैंग्स ऑफ वासेपुर फिल्म बनाने वाले अनुराग कश्यप ने ट्वीट किया है, "शिव सेना ने शहर को बंधक क्यों बना लिया है. क्या सिर्फ यही रास्ता है."

एजेए/एएम (एपी, एएफपी)

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