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शिक्षा

बिना बिजली, बिना टीचरों के कैसे बनेंगी स्मार्ट क्लासेस

शोभा शमी
२४ जुलाई २०१७

जी20 का 2030 तक का लक्ष्य स्कूली शिक्षा को बेहतर करना और स्मार्ट क्लासेस तैयार करना है. लेकिन क्या भारत के सरकारी स्कूलों की स्थिति इस लायक है कि वे स्मार्ट क्लासेस बना पाएंगे!

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Indien Schüler Symbolbild
तस्वीर: AFP/Getty Images/S. Hussain

हरियाणा के सीनियर सेकंडरी स्कूल में पढ़ा रहे शिक्षक राम प्रकाश बड़ी मायूसी से कहते हैं कि "मेरे पास 12वीं कक्षा की साइंस विषय में 30 बच्चे हैं. लेकिन लड़कियों को उनके घरों में काम करना पड़ता है और पढ़ने का वक्त कम मिलता है. इसीलिए वे साइंस विषय नहीं पढ़ पातीं और जो पढ़ती हैं वे असाधारण हैं."

शायद रामप्रकाश के पास जी20 के हैम्बर्ग शहर के बारे में सोच पाने की गुंजाइश नहीं है. जहां दुनिया भर के प्रतिनिधियों ने ई स्किल और डिजिटल साक्षरता की बात की है. जहां 2030 तक का लक्ष्य लड़कियों के लिए ऐसी स्कूली शिक्षा तैयार करना है कि जिसमें तकनीक को शामिल किया जा सके. इसके साथ ही और मौके बनाने की भी बात है जिससे कि लड़कियां विज्ञान और गणित जैसे विषयों को चुन सकें.

दूसरी तरफ टेक्नोलॉजी की बात पर राम प्रकाश बड़ी झल्लाहट से कहते हैं कि 'न बिजली है, न साधन. बिजली आती है तो रात के वक्त. सरकार ग्रांट नहीं भेजती कि जनरेटर में तेल डालकर कम्प्यूटर चला सकें.'

सवाल भी यही है कि भारत के लगभग 15 लाख सरकारी स्कूलों की हालत कैसी है? उन गावों और छोटे कस्बों की कक्षाएं स्मार्ट कैसे बनेंगी जहां न बैठने के लिए पर्याप्त कमरे हैं, न स्कूली टीचर. सब बता रहे हैं कि लड़कियां तो पढ़ना चाह रही हैं लेकिन इन्फास्ट्रक्चर और सामाजिक ढांचा बेहतर होता नहीं दिख रहा.

उत्तरप्रदेश के मऊ जिले में एक प्राथमिक सरकारी विद्यालय में पढ़ा रही रंजना सिंह कहती हैं, 'कई बार माता पिता हमारे पास शिकायत लेकर आते हैं कि  घर में कोई काम होता है तो भी लड़कियां रुकने को राजी नहीं होती और स्कूल चली आती हैं. '

भारत में लड़कियों के स्कूल न पहुंचने के कई कारण हैं, जिसमें एक वजह घरेलू काम काज भी है. खेती किसानी वाले क्षेत्रों में फसल बोने और काटने के वक्त कई बार लड़कियों को स्कूल भेजने से पूरी तरह मना कर दिया जाता है. 

हालांकि, रंजना कहती हैं कि चीजें बदल रही हैं. उनके स्कूल में लड़कों से ज्यादा लड़कियां है और उनकी उपस्थिति भी अच्छी रहती है. प्राइमरी स्कूल के बाद लड़कियों की पढ़ाई न छूटे इसके लिए उनके विद्यालय के टीचर माता पिता से बात करते हैं और उन्हें प्रोत्साहित करते हैं ताकि वे आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को स्कूल जरूर भेजें.

लेकिन ऐसा बड़े स्तर पर या सभी विद्यालयों में नहीं हो रहा है क्योंकि ये कोई सरकारी योजना नहीं बल्कि उस स्कूल के शिक्षकों की अपनी पहल है. 

स्कूलों में कम्प्यूटर और तकनीक की पहुंच के बारे में वे कहती हैं 'कोई नयी योजना लागू होती है तो उसके लिए शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाता है, तो अगर ट्रेनिंग दे जी जाए तो सभी टीचर्स बच्चों को पढ़ाने में सक्षम हैं.'

लेकिन इसके साथ वह यह भी बताती हैं कि फिलहाल उनके स्कूल में एक भी कम्प्यूटर नहीं है. 

वहीं शिक्षा के क्षेत्र में राजस्थान में काम कर रहे रिसर्चर अभिषेक कुमार बताते हैं कि राजस्थान के कई सरकारी स्कूलों में बच्चों के बैठने की भी ठीक व्यवस्था नहीं है. 7-8 कक्षाओं के लिए सिर्फ 3 या 4 ही कमरे हैं. कम्प्यूटर और इन्फ्रास्ट्रक्चर की बात पर वे कहते हैं कि कई स्कूलों में कम्प्यूटर तो हैं लेकिन इस पूरी प्रकिया के साथ एक परेशानी यह भी है कि अगर वे खराब हों तो ठीक करवाने की कोई व्यवस्था नहीं है या वह प्रकिया इतनी लंबी है कि स्कूल में टीचर्स और बच्चे इस खतरे को सोचते हुए भी कम्प्यूटर का इस्तेमाल नहीं करते कि एक सरकारी मशीन अगर खराब हो गयी तो उसके बाद क्या होगा.

तो भारत जी20 के साथ तय किए गए लक्ष्य को कैसे हासिल करेगा? जहां एक तरफ राज्य सरकारों के साथ मिलकर नयी योजनाओं को लागू करना है, दूसरी तरफ इन्फ्रास्ट्रक्चर से बड़ी चुनौती वो सामाजिक ढांचा है जहां लड़कियां रह रही हैं.

एक और समस्या जो पिछले कुछ सालों में बड़ी होती दिख रही है वो यह है माता-पिता सरकारी स्कूलों की बजाय बच्चों का दाखिला प्राइवेट स्कूलों में करा रहे हैं. लंदन के शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय विकास संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार यह आंकड़ा इतना बड़ा है कि पिछले पांच सालों में भारत के सरकारी स्कूलों के दाखिलों में 13 लाख की गिरावट दर्ज की गयी. वहीं प्राइवेट स्कूलों को 17 लाख नए दाखिले मिले.

इंडियास्पेंड की 2016 की रिपोर्ट कहती है कि 2009 से 2014 के बीच सर्व शिक्षा अभियान पर खर्च किए गए 1.16 लाख करोड़ रुपये (17.7 अरब डॉलर) के बावजूद शिक्षा की गुणवत्ता में कमी आई है.

आज की स्थिति में भारत जी20 देशों के साथ मिलकर डिजिटल साक्षरता और ई स्किल के सपने देख तो रहा है, लेकिन हकीकत बताते हुए ये भयानक आंकड़े और परिस्थितियां भारत की ओर ढेरों सवाल लिए ताक रहे हैं.