1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बिहार में स्वास्थ्यकर्मी भी कोरोना की चपेट में

मनीष कुमार, पटना
१३ जुलाई २०२०

लॉकडाउन के बाद अनलॉक-2 के दौरान बिहार में डॉक्टर व अन्य स्वास्थ्यकर्मी भी तेजी से कोरोना की चपेट में आ रहे है. राज्यभर में अब तक चिकित्सकों समेत करीब दो सौ से अधिक स्वास्थ्यकर्मी कोरोना की चपेट में आ चुके हैं.

https://p.dw.com/p/3fGYj
Indien Bihar | Coronavirus | Gefahr für medizinisches Personal
तस्वीर: DW/M. Kumar

इनमें करीब पचास से अधिक तो चिकित्सक हैं. दूसरों के जीवन की रक्षा करने वाले धरती के भगवान कहे जाने वालों की सुरक्षा में कहीं न कहीं हर स्तर पर गंभीर चूक हो रही है जो सिस्टम में खराबी के चलते दिनोंदिन भयावह रूप लेती जा रही है. बिहार में अनलॉक-2 के दौरान कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. ताजा आंकड़ों के अनुसार इस बीमारी की चपेट में अब तक 15,000 से ज्यादा लोग आ चुके हैं जबकि करीब सवा सौ से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. स्थिति यह है कि राज्य में हर दसवां शख्स कोरोना के खतरे में है. हालत की नजाकत भांप कई जिलों में फिर लॉकडाउन करना पड़ा है. इधर संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है उधर, स्वास्थ्यकर्मी भी उतनी ही तेजी से कोरोना की चपेट में आते जा रहे हैं. इलाज करने वाले ही अगर महामारी की गिरफ्त में आने लगे तो मरीजों का क्या होगा. वाकई, यह चिंताजनक स्थिति है.
हालत तो यह है कि पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) के जिस विभाग में कोरोना की जांच की जा रही थी उसके मुखिया समेत चार चिकित्सक व सात कर्मचारी संक्रमित हो गए. नतीजतन जांच का काम बंद करना पड़ा. दस से अधिक विभागों के चिकित्सक, नर्स, टेक्नीशियन और कर्मचारी संक्रमित हो चुके हैं. इसी तरह कर्मचारियों व लैब टेक्नीशियन के संक्रमित होने के हाद राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीच्यूट (आरएमआरआइ) को सैनिटाइज करने के लिए कोरोना जांच का काम रोकना पड़ा. ड्राइवर, स्टाफ व गार्ड समेत 28 कोविड पॉजिटिव पाए जाने के बाद पाटलिपुत्र स्थित 102 एंबुलेंस ऑफिस को सील करना पड़ा. मुजफ्फरपुर व बेगूसराय में कई नामी चिकित्सक इस बीमारी के शिकार हो गए हैं. कुछ डॉक्टर, नर्स व ममता कार्यकर्ता के संक्रमित होने के कारण समस्तीपुर सदर अस्पताल की ओपीडी सेवा बंद करनी पड़ी. यह तो महज बानगी भर है. राज्यभर में हेल्थकेयर स्टाफ की यही स्थिति है. वे भी तेजी से संक्रमण के शिकार हो रहे हैं.

अभी भी डॉक्टरों को नहीं मिल रहा है जरूरत के हिसाब से मास्क

हेल्थकेयर स्टाफ की एक पूरी श्रृंखला होती है जिसमें डॉक्टर-नर्स से लेकर वार्ड ब्यॉय तक शामिल हैं. इस श्रृंखला की कड़ी का एक हिस्सा भी कोरोना की चपेट में आता है तो वह पूरी कड़ी को प्रभावित कर सकता है. इसलिए इनकी सुरक्षा बहुत मायने रखती है. लेकिन हालत यह है कि अपनी सुरक्षा के लिए इन्हें हड़ताल करना पड़ रहा है. कहीं मास्क तो कहीं पीपीई किट की तो कहीं आवश्यक अन्य उपकरणों की कमी है. इसी मुद्दे को लेकर पीएमसीएच के जूनियर डॉक्टरों ने सोमवार को काम का  बहिष्कार कर दिया. जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन (जेडीए) के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. हरेंद्र कहते हैं, "सुनने में आता है कि यहां पीपीई किट, मास्क व ग्लव्स की पर्याप्त सप्लाई है लेकिन पिछले पंद्रह दिनों से हमें  मास्क, पीपीई किट व ग्लव्स नहीं मिला है. हमलोग केवल आश्वासन पर काम करते आ रहे हैं. जो मिलता भी है वह पर्याप्त नहीं है.” जूनियर डॉक्टरों की शिकायत है कि उन्हें एक ही मास्क को बार-बार इस्तेमाल करना पड़ता है. जिस विभाग में वीकली इमरजेंसी डूयूटी लगती है वहां उसी दिन मास्क मिलता है.

डॉ. हरेंद्र कहते हैं, "हमारे पास जो मरीज आते हैं, वे कोरोना पॉजिटिव हैं या निगेटिव, इसका पता तो जांच के बाद चलता है. हम तो यही मानकर चलते हैं कि जो मरीज आया है वह कोरोना संक्रमित है. इसके लिए तो हमें पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था रखनी ही होगी. लेकिन जिन चीजों के लिए तीन महीने से मांग की जा रही है वह अभी तक सुचारु रुप से हमें नहीं मिलती. इसलिए हमें कार्य बहिष्कार का निर्णय लेना पड़ा.” मरीजों की बढ़ती संख्या के कारण डॉक्टरों पर दबाव बढ़ता जा रहा है किंतु उस अनुपात में इनकी सुविधाओं में इजाफा नहीं हो रहा. ऐसे भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रति एक हजार आबादी पर स्वास्थ्य के मामले में बिहार आखिरी पायदान पर है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों के अनुसार प्रति एक हजार की जनसंख्या पर एक चिकित्सक होना चाहिए लेकिन बिहार में यह अनुपात तीन हजार दो सौ सात है. ग्रामीण क्षेत्र में प्रति 17 हजार 685 लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल का जिम्मा एक डॉक्टर पर है. राज्य सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद चिकित्सकों की यहां घोर कमी है.

Indien Bihar | Coronavirus | Gefahr für medizinisches Personal
पूरी तरह तैयार नहीं बिहार के अस्पतालतस्वीर: DW/M. Kumar

डॉक्टरों को इलाज के लिए आमलोगों की तरह लगाना पड़ रहा चक्कर

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) के अनुसार राज्यभर में पचास से अधिक डॉक्टर कोविड पॉजिटिव पाए गए हैं जिनमें कम से कम आधे पटना के हैं. राजधानी पटना के डेडिकेटेड कोविड अस्पताल नालंदा मेडिकल कॉलेज (एनएमसीएच) व अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के स्वास्थ्यकर्मी भी कोरोना संक्रमित होते जा रहे हैं. पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) के अधीक्षक डॉ. विमल कारक कहते हैं, ”पीएमसीएच के 25 से ज्यादा चिकित्सक व करीब इतने ही पारामेडिकल स्टॉफ इस बीमारी की चपेट में आ चुके हैं.” इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आइजीआइएमएस) के निदेशक एनआर विश्वास खुद इसकी चपेट में आ चुके हैं और गंभीर स्थिति देखते हुए उन्हें शनिवार को पटना एम्स रेफर किया गया है. छह अन्य हेल्थकेयर स्टाफ पहले ही कोविड संक्रमित हो चुके हैं. संस्थान के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. मनीष मंडल का कहना है, ”संक्रमितों में अधिकतर स्टाफ स्वस्थ होकर काम पर लौट चुके हैं." इनका स्वस्थ होना सुकून की बात है किंतु चिंता का विषय यह है कि आखिर ये संक्रमित होते ही क्यों हैं.

इस प्रश्न के जवाब में बिहार राज्य स्वास्थ्य सेवा संघ के सलाहकार डॉ. अजय कुमार का कहना है, "राज्य के अस्पतालों में पर्याप्त मात्रा में और गुणवत्तापूर्ण पर्सनल प्रोटेक्शन किट व मास्क नहीं हैं. राज्यभर से लगातार इस संबंध में डॉक्टरों की शिकायतें आ रहीं हैं. जाहिर है एक मास्क को धो-धोकर कब तक काम चलाया जा सकता है. सरकार से मांग की गई है कि चिकित्सक समेत सभी स्वास्थ्यकर्मियों या जो भी उपलब्ध मानव बल है उसे आधा-आधा बांटकर उनकी रोटेशनल ड्यूटी लगाई जाए. इन्हें छुट्टियां नहीं दी जा रहीं." डॉ. अजय कुमार का कहना है कि डॉक्टरों को पर्याप्त आराम दिया जाना चाहिए और उन्हें एक ही साथ ड्यूटी पर नहीं बुलाया जाना चाहिए. वे कहते हैं, ”एक निश्चित अंतराल पर इनकी जांच नहीं हो रही. कोरोना संक्रमित चिकित्सकों या स्वास्थ्यकर्मियों के लिए अलग से इलाज की व्यवस्था नहीं है. महामारी से लड़ने के लिए डॉक्टरों को बचाना बहुत जरूरी है.” हालांकि स्टेट सर्विलांस अफसर रागिनी मिश्रा कहती हैं, ”चिंता की कोई बात नहीं है. हमारे पास चिकित्सकों की दो टीमें है. पहली फ्रंटलाइन टीम और दूसरी सेकेंड लाइन टीम. अगर पहली टीम को क्वारंटीन होना पड़ा तो दूसरी टीम स्वत: काम संभाल लेगी.” प्रदेश में करीब बीस हजार चिकित्सक और चालीस से पचास हजार अन्य स्वास्थ्यकर्मी हैं.

वहीं आइएमए के बिहार चैप्टर के वाइस प्रेसिडेंट डॉ सुनील कुमार की मांग है कि हर अस्पताल में कोरोना वार्ड बनाया जाना चाहिए जहां कम से कम उस अस्पताल के चिकित्साकर्मियों का संक्रमित होने पर इलाज हो सके. वे कहते हैं, ”मरीजों का इलाज करते वक्त लाख परहेज करते हुए भी चूकवश किसी न किसी रूप में डॉक्टर संक्रमित हो ही जा रहे हैं. लेकिन सरकार का दायित्व बनता है कि उनकी समय पर समुचित चिकित्सा की व्यवस्था की जाए. उनकी इलाज की व्यवस्था उसी अस्पताल में होनी चाहिए जहां काम करते हुए वे संक्रमित हुए हैं." हाल के दिनों में पटना मेडिकल कॉलेज के एक डॉक्टर संक्रमित होने के बाद एम्स गए लेकिन उन्हें वहां बेड नहीं मिला. जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ेगा, वैसे-वैसे डॉक्टर समेत हेल्थकेयर स्टाफ भी ज्यादा संक्रमित होंगे. इस स्थिति में उनके इलाज पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है ताकि वे स्वस्थ होकर फिर से लोगों का इलाज कर सकें. डॉ. सुनील कुमार चाहते हैं कि सभी मेडिकल कॉलेज अस्पताल, रेफरल अस्पताल और प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के हेल्थकेयर स्टाफ की पंद्रह दिन के अंतराल पर जांच की जानी चाहिए. इससे चिकित्साकर्मियों के साथ उनके मरीजों को भी सुरक्षित रखा जा सकेगा.

नहीं दी गई कोरोना के इलाज की ट्रेनिंग

इस बीट ये शिकायतें भी सामने आ रही हैं कि चिकित्साकर्मियों की सही तरीके से कोरोना का इलाज करने के लिए ट्रेनिंग भी नहीं हुई है. नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर स्वास्थ्य विभाग के एक आला अधिकारी कहते हैं, ”सरकारी अस्पतालों की हालत किसी से छिपी नहीं है. सरकार ने अस्पताल के नाम पर इमारतें तो खड़ी कर दीं, एक हद तक चुनिंदा जगहों पर उपकरण भी उपलब्ध करा दिया लेकिन चिकित्सकों समेत अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की काफी कमी है. जो हैं भी उन्हें इस बीमारी के इलाज की प्रॉपर ट्रेनिंग नहीं दी गई. मिलिट्री ऑर्डर की तरह आदेश जारी कर उन्हें काम में धकेल दिया गया." अस्पतालों में सुरक्षा उपकरणों यथा पीपीई किट, एन-95 मास्क आदि का अभाव को है ही, अस्पतालों में सही तरीके से सैनिटाइजेशन का काम भी नहीं हो रहा है. एक बेड से कोरोना के मरीज के हटने के बाद उस बेड को पूरी तरह सैनिटाइज नहीं किया जा रहा स्वास्थ्यकर्मियों के संक्रमित होने पर पटना एम्स के नोडल अफसर डॉ संजीव कुमार कहते हैं, ”बहुत सारे मरीज जो चिकित्सकों या अन्य स्वास्थ्यकर्मियों के संपर्क में आते हैं, उनके कोरोना स्टेटस का पता नहीं होता है. डॉक्टर भी इलाज के धुन में सावधानी नहीं बरतते और पूरा प्रोटेक्शन नहीं लेते हैं और अंतत: संक्रमित हो जाते हैं.”

Indien Bihar | Coronavirus | Gefahr für medizinisches Personal
प्लास्टिक के पीछे से मरीज से बाततस्वीर: DW/M. Kumar

इससे इतर पीएमसीएच के न्यूरोलॉजी विभाग के वरीय चिकित्सक डॉ. संजय कुमार का मानना है कि ”सुरक्षा उपकरणों का अभाव विवाद का मुद्दा हो सकता है लेकिन यह सच है कि इलाज के दौरान हम और हमारे सहयोगी कोरोना प्रोटोकॉल का शत-प्रतिशत पालन नहीं कर पाते हैं. हालांकि इसकी कई वजहें हैं. इस बीमारी को लेकर सोशल फोबिया भी है. जिस वजह से लोग तबतक अपनी बीमारी की बात डॉक्टर को नहीं बताते जबतक उनकी स्थिति बिगड़ नहीं जाती. इस बीच वे बगैर लक्षण वाले कोरोना वाहक बने रहते हैं. यह एक खतरनाक स्थिति है. इस फोबिया के शिकार चिकित्सक भी हैं. समाज के हर वर्ग के लोगों को समझना होगा कि यह एक बीमारी मात्र है, इसके कारण किसी की सामाजिक स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता इसलिए इससे छिपने-छुपाने की कोई जरूरत नहीं.” वहीं जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन बिहार के पूर्व कोर्डिनेटर आर. रमण कहते हैं, ”आजकल गर्मी के मौसम में पीपीई किट पहन कर ड्यूटी करने में काफी परेशानी होती है और फिर थोड़ी सी चूक संक्रमित कर देती है.” जो भी हो, इतना तो तय है कि राज्यभर में चिकित्सक चाहे किसी भी वजह से पीपीई किट, मास्क या अन्य सुविधाओं के अभाव में इलाज करने को विवश हैं. किसी एजेंसी के जरिए आउटसोर्स किए गए ट्रॉलीमैन, सफाईकर्मी, सुरक्षा गार्ड या फिर कांट्रैक्ट पर नियुक्त किए गए अन्य कर्मचारी जो रोगियों के इलाज व देखरेख में अहम भूमिका निभाते हैं वे भी संसाधनों के अभाव व नियोक्ता की लापरवाही की वजह से कोरोना वारियर की बजाए कोरोना वाहक बनते जा रहे हैं.

भारी पड़ रही है चिकित्सा व्यवस्था की खामियां

हाल ही में नीति आयोग ने बिहार में सबसे कम जांच की बात उठाई गई थी. आयोग का कहना था प्रति दस लाख लोगों पर बिहार में महज 2197 लोगों की जांच हो रही है जबकि दिल्ली में यह आंकड़ा पंद्रह गुणा ज्यादा है. दिल्ली में जांच की यह दर दस लाख पर 32,863 है. कांग्रेसी विधायक प्रेमचंद्र मिश्रा की मांग है, ”मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बताना चाहिए कि राज्य में सबसे कम कोविड जांच दर की वजह क्या है. उन्हें जांच की क्षमता तत्काल बढ़ानी चाहिए. आंकड़े ही वास्तविक स्थिति की गवाही दे रहे हैं. वास्तव में बड़ी ही भयावह स्थिति है.” हालांकि ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार पूरी तरह शिथिल है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आग्रह पर केंद्र सरकार ने हाल में ही बिहार को पचास हजार रैपिड एंटीजन किट भेजी है. जिससे महज आधे घंटे में कोरोना जांच की रिपोर्ट मिल जाएगी. इसके अलावा प्रदेश के सभी नौ मेडिकल कालेज अस्पतालों में कोविड मरीजों के लिए पचास फीसद बेड रखने का निर्णय लिया गया है. शनिवार को पटना एम्स को भी डेडिकेटेड कोरोना अस्पताल घोषित कर दिया गया है जहां हजार बेड की सुविधा उपलब्ध रहेगी. इन व्यवस्थाओं के बावजूद सिस्टम की खामी कहीं न कहीं भारी पड़ जा रही है.

हाल में ही राज्य के पहले कोरोना विशेष अस्पताल एनएमसीएच का एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें मरीजों के वार्ड में दो बेड पर दो शव दो दिन तक पड़े रहे. मनी सिंह राजपूत नामक एक शख्स ने यह वीडियो वायरल किया था जो अस्पताल की कुव्यवस्था के कारण कोरोना संक्रमित अपने पिता के साथ वार्ड में ही रह रहा था. पीएमसीएच में भी रविवार को एक साथ तीन मौतों के बाद शव न तो परिजनों को सौंपे गए और न ही शवगृह भेजे गए. दुर्गंध व शवों की स्थिति देख परिजनों ने हंगामा किया. हालांकि इस संबंध में पीएमसीएच के नोडल अफसर डॉ पीएन झा का कहना है, ”कोरोना रिपोर्ट आने में तीन दिन लग जाते हैं. शवगृह की क्षमता भी सीमित है. आनन-फानन में तो इसकी क्षमता नहीं बढ़ाई जा सकती है और न ही रिपोर्ट आने के पहले शवों को डिस्पोज किया जा सकता है. यदि हरेक शव को कोविड संक्रमित मानकर नियमानुसार अंत्येष्टि की इजाजत दे दी जाती है तब जाकर ही इस स्थिति से निजात मिल सकती है.” स्पष्ट है कि ऐसी स्थिति न तो मरीज के लिए और न ही स्वास्थ्यकर्मियों के लिए मुफीद है. इसे लेकर विपक्ष ने हो-हल्ला भी किया. बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव कोरोना से लड़ाई के नीतीश सरकार के तरीके पर तंज कसते रहे हैं. वे कहते हैं, ”बिहार सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था भी बीते पंद्रह सालों में इंटेंसिव केयर यूनिट (आइसीयू) में चली गई है. डॉक्टर-मरीज का अनुपात अन्य राज्यों की तुलना में सबसे खराब है. केंद्र सरकार की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य के मामले में बिहार फिसड्डी है. लेकिन मुख्यमंत्री हैं जो कोरोना को परास्त करने की चिंता करने की बजाए विधानसभा चुनाव लड़ने की चिंता में हैं.” 

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें