1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बीजेपी में उम्मीद की किरण

१७ जनवरी २०१५

बीते एक साल से सरकार के बिना सियासी गोते खा रही दिल्ली में चुनाव की बिसात बिछ गई है. चुनाव के एलान के साथ ही अब दिल्ली का चुनावी दंगल दिलचस्प मोड़ पर आ गया है. दिल्ली की राजनीति की नब्ज टटोलता निर्मल यादव का ब्लॉग.

https://p.dw.com/p/1ELiU
तस्वीर: dapd

दिल्ली दिलवालों की कहलाती है. लेकिन पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में दिल्लीवालों ने बीजेपी को वोट देने में दरियादिली दिखाने के बजाए थोड़ी सी कंजूसी बरत दी. नतीजतन सत्ता की दहलीज पर दस्तक दे कर भी बीजेपी सिंहासन तक नहीं पहुंच सकी.

एक साल राष्ट्रपति शासन में गुजारने के बाद दिल्ली में विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है. तीन बड़े दावेदारों में बीजेपी और आम आदमी पार्टी सत्ता हासिल करने के लिए लड़ रहे हैं. वहीं 15 साल तक दिल्ली की सत्ता में रही कांग्रेस अब सर्वहारा की तरह अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है. दिल्ली का दंगल कहने को तो त्रिकोणीय है मगर असल लड़ाई नई नवेली किंतु तेज तर्रार आप और सियासत की घाघ बीजेपी के बीच ही है.

जहां तक बीजेपी का सवाल है तो दिल्ली उसके लिए अब नाक की बात गई है. पार्टी के चतुर सुजान अध्यक्ष अमित शाह की चिंता है कि कश्मीर सहित तमाम राज्य फतह करने वाले मोदी का अश्वमेघ अगर कहीं रुक सकता है तो दिल्ली में. वह जानते हैं कि इसे रोकने की कुव्वत केजरीवाल की पार्टी आप में है.

Indien Arvind Kejriwal
इस बार कितनी कड़ी टक्करतस्वीर: STR/AFP/Getty Images

दूसरी ओर आप के लिए अपनी पहली ही पारी में बनाए गए शानदार स्कोर को दुहरा कर कांग्रेस से झटकी गई सियासी जमीन को बरकरार रखने की चुनौती है.

यूं तो प्रचार अभियान में छह महीने से जुटी आप ने दोनों विरोधी दलों को साइबर मीडिया से लेकर गली कूचे तक काफी पीछे छोड़ दिया है, लेकिन चुनावी अखाड़े में राजनीतिक पैंतरेबाजी का दौर अब शुरु हुआ है जिसमें दोनों एक दूसरे को पटखनी देने में जुटे हैं. एक ओर 70 सीटों पर आप और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं मगर बीजेपी एक एक कर पत्ते खोल रही है. सबसे दिलचस्प मुकाबला हॉट सीट बन चुकी नई दिल्ली पर है. जहां केजरीवाल ने पिछली बार शीला दीक्षित का 15 साल पुराना किला फतह किया था. आंतरिक गुटबाजी और लचर संगठन से जूझ रही बीजेपी ने अब किरण बेदी को तुरुप के पत्ते की तरह इस्तेमाल किया है. यह देखना दिलचस्प होगा कि केजरीवाल को उनके अपने ही घर में घेरने के लिए बीजेपी बेदी को उनके सामने मैदान में उतारती है या फिर ब्र्रह्मास्त्र के तौर पर केजरीवाल की पूर्व सहयोगी शाजिया इल्मी को आजमाएगी.

हालांकि बीजेपी ने न तो अभी किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया है और ना ही शाजिया ने केजरीवाल के खिलाफ दो दो हाथ करने को हामी भरी है. साथ ही बीजेपी को पता है कि सियासी पैंतरेबाजी में बेदी और शाजिया, टीम केजरीवाल के मुकाबले अभी नौसिखिया ही हैं. ऐसे में पार्टी इन दोनों को केजरीवाल की कमजोरी के तौर पर इस्तेमाल भले ही कर ले मगर इनके नाम पर सत्ता का दांव लगाने का जोखिम शायद नहीं उठाएगी.

Indien Wahlen in Delhi Sheila Dikshit
दिल्ली की राजनीति से दूर शीला दीक्षिततस्वीर: Reuters

जहां तक बात मुद्दों की है तो पिछले चुनाव की ही तरह कम कीमत पर बिजली और पानी की उपलब्धता को आप ने अपना हथियार बनाया है. जबकि कच्ची कालोनियों को नियमित कर इनमें बसे 40 लाख मतदाताओं को रिझाने का बीजेपी ने दांव चला है. ऐसे में विधानसभा का रास्ता एक बार फिर अल्पसंख्यक बहुल 15 सीटों और अनुसूचित जातियों की बहुलता वाली 13 सीटों से होकर गुजरेगा. मौजूदा हालात में इन सीटों पर आप का दावा मजबूत दिख रहा है. हिंदू कट्टरपंथी ताकतों का असर दिल्ली में हो नहीं रहा है इसलिए बीजेपी को मतों के ध्रुवीकरण का आसरा नहीं है. वहीं शहरी, ग्रामीण, झुग्गी झोपड़ी और अल्पसंख्यक मतों में पैठ रखने वाली कांग्रेस एक बार फिर मूकदर्शक बनी नजर आ रही है. जो आप के लिए मददगार साबित हो सकती है.

वैसे तो चुनाव का एलान हुए जुमा जुमा चार दिन ही हुए हैं मगर आप और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर ने चुनावी पंडितों को भी सिर खुजाने के लिए मजबूर कर दिया है. इसमें कोई शक नहीं है कि दिल्ली का सियासी पारा हर पल शेयर बाजार के सूचकांक की माफिक अनिश्चितता भरे उतार चढ़ाव देख रहा है. मगर मतदाता किसे सिरमाथे पर बिठाता है इसे स्पष्ट होने में 10 फरवरी तक इंतजार करना पड़ेगा.

ब्लॉग: निर्मल यादव